अंत 2021 : विद्या बालन की शेरनी से लेकर कृति सेनन की मिमी तक, मजबूत महिलाओं के नेतृत्व वाली फिल्में

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 21 दिसम्बर 2021, 12:36 PM (IST)

हिन्दी सिनेमा के इतिहास में हमें समय-समय पर मजबूत महिला किरदार दिखाई दिए हैं। फिल्म निर्माताओं ने कई ऐसी फिल्मों का निर्माण किया है, जिनमें महिला किरदार ही केन्द्र में रहे हैं। बीते जमाने पर नजर डालें तो कई ऐसी फिल्में जेहन में दौडऩे लगती हैं जिनमें महिला किरदार न सिर्फ केन्द्र में अपितु चरित्र भूमिका में होते हुए भी फिल्म के नायक नायिका से ज्यादा भारी रहे हैं। उदाहरण के तौर पर नर्गिस की फिल्म मदर इंडिया, राखी की फिल्म सौंगध और रामलखन, रेखा की फिल्म खिलाडिय़ों का खिलाड़ी, सुचित्रा सेन की आंधी, विद्या बालन की डर्टी पिक्चर, ऐसी कई फिल्में हैं। अस्सी के दशक को जरूर हम अपवाद के रूप में ले सकते हैं जब फिल्मों में महिला किरदार फिर गुडिया की तरह नजर आते थे। बदलते सिनेमा में एक बार फिर से महिलाओं को केन्द्र में रखकर निर्माताओं ने कई फिल्मों का निर्माण किया है। इन फिल्मों को दर्शकों ने पसन्द भी किया और सफल भी बनाया। कोरोना काल में जब सिनेमाघर बंद थे ओटीटी प्लेटफार्म ने निर्माताओं को अपनी बात कहने का खुला विकल्प दिया जिसके फलस्वरूप गत वर्ष और इस वर्ष हमारे सामने कुछ ऐसी महिला केन्द्रित फिल्मों का पर्दापण हुआ जिन्होंने हमें झकझोर कर रख दिया। इन फिल्मों में महिलाओं का किरदार केन्द्र में था।
डालते हैं एक नजर गत वर्ष व इस वर्ष प्रदर्शित हुई कुछ ऐसी फिल्मों पर जिनमें महिलाओं ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई—

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शेरनी
शेरनी में विद्या बालन ने एक वन अधिकारी की भूमिका निभाई है जो मानव-पशु संघर्ष को सुलझाने की कोशिश कर रहा है। अमित मसुरकर के निर्देशन में बनी इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे उसे एक आदमी की दुनिया में अपनी जगह बनानी होती है। काम और घर पर पितृसत्तात्मक मानसिकता को चुनौती देते हुए विद्या साहसिक बयान नहीं देती हैं। लेकिन, अपने सूक्ष्म और संयमित व्यवहार में भी, वह अपनी जमीन रखती है।

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मिमी
कृति सनोन की मिमी ने सामाजिक वर्जना - सरोगेसी को शिद्दत के साथ प्रस्तुत किया। अभिनेत्री ने एक छोटे शहर की लडक़ी की भूमिका निभाई है जो बॉलीवुड में कुछ बड़ा करने का सपना देखती है। हालांकि, सपनों को हकीकत में बदलने के लिए उसे पैसे की जरूरत है। वह एक विदेशी जोड़े के लिए सरोगेट बनने के लिए सहमत हो जाती है, लेकिन अप्रत्याशित परिणाम सामने आते हैं और वह खुद ही बच्चे की परवरिश करती है।

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रश्मि रॉकेट
तापसी पन्नू की रश्मि रॉकेट एक छोटे शहर की लडक़ी के बारे में है जो एक एथलीट बनने की ख्वाहिश रखती है। वह राष्ट्रीय स्तर की तेज-धावक बनने में सफल हो जाती है, लेकिन उसकी खुशी और महिमा में बाधा आती है क्योंकि उसे लिंग परीक्षण कराने के लिए कहा जाता है। तापसी ने इस किरदार को संजीदगी के साथ परदे पर पेश। उन्होंने बेहतरीन अंदाज में किरदार के भावों को चेहरे पर उकेरने में सफलता प्राप्त की थी। आकर्ष खुराना द्वारा निर्देशित, स्पोट्र्स ड्रामा में अभिषेक बनर्जी और प्रियांशु पेन्युली भी हैं।

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त्रिभंगा
त्रिभंगा एक तीन पीढ़ी की कहानी है जिसमें काजोल, तन्वी आजमी और मिथिला पालकर मुख्य भूमिकाओं में हैं। ये हठी महिलाएं अपने लिए चुनी हुई जिंदगी जीना चाहती हैं, चाहे उन पर किसी भी तरह की उम्मीदें और फैसले क्यों न फेंके जाएं। त्रिभंगा अपने सभी अपूर्ण वैभव में मातृत्व को दर्शाता है।

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छोरी
नुसरत भरुचा-स्टारर छोरी मराठी फिल्म लपाछापी (2017) का हिंदी रीमेक है। फिल्म एक गर्भवती महिला के बारे में है जो अपने बच्चे को अलौकिक और सामाजिक बुराइयों से बचाने की कोशिश कर रही है। फिल्म एक दिलचस्प तरीके से ऐसा करती है और एक ऐसी कहानी पर मंथन करती है जो एक ही समय में रोमांचकारी और द्रुतशीतन है।

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पगलैट
सान्या मल्होत्रा पगलैट में अपने पति की मौत का शोक मनाने के लिए संघर्ष कर रही एक युवा विधवा की भूमिका निभा रही हैं। वह दु:ख में खुद को खोने के बजाय त्रासदी के सामने अपनी पहचान खोजने की कोशिश करती हैं। उमेश बिष्ट द्वारा निर्देशित, सामाजिक नाटक हमारे विवाह-ग्रस्त समाज के लिए एक उपयुक्त उत्तर है।

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साइना
साइना बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल की बायोपिक है और खेल में विश्व मंच पर हरियाणा से रैंकिंग नंबर 1 तक की उनकी यात्रा का वर्णन करती है। परिणीति फिल्म में मुख्य भूमिका निभाती हैं और साइना के करियर में आए उतार-चढ़ाव को दिखाती हैं।

उम्मीद है आप सभी ने इस फिल्म को घर बैठे जरूर देखा होगा। यदि नहीं देखा तो इन फिल्मों को जरूर देखें और महिला किरदारों को सशक्त तरीके से परदे पर पेश करने के लिए इन अभिनेत्रियों की खुलकर तारीफ करें।

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