फिल्म समीक्षा बॉब बिस्वास : अभिषेक का दमदार अभिनय

www.khaskhabar.com | Published : शनिवार, 04 दिसम्बर 2021, 1:06 PM (IST)

फिल्म समीक्षा
बॉब बिस्वास
निर्माता—गौरी खान, सुजॉय घोष, गौरव वर्मा
निर्देशक—दिव्या अन्नपूर्णा घोष
लेखक—सुजॉय घोष, राज वसंत
अवधि—2 घंटे 12 मिनट
प्लेटफार्म- जी5

अतीत कभी पीछा नहीं छोड़ता है। गलत काम का गलत नतीजा ही मिलता है। हां, अगर जीवन में कुछ अच्छा किए हो, तब उसका भी फल जरूर मिलता है। एक लाइन की इस कहानी को लेखक निर्देशक की जोड़ी बेहतरीन कथानक के साथ पेश किया है। फिल्म 2012 में प्रदर्शित हुई सुजॉय घोष की कहानी के किरदार बॉब बिस्वास का स्पिन ऑफ है। ओटीटी प्लेटफॉम्र्स पर प्रदर्शित हुई अभिषेक बच्चन की फिल्म बॉब बिस्वास को सिर्फ और सिर्फ अभिषेक बच्चन के दमदार अभिनय के कारण देखना पसन्द किया जा सकता है। अन्नपूर्णा घोष के निर्देशन में बनी बॉब बिस्वास जासूसी एक्शन थ्रिलर फिल्म है जिसमें रहस्य को अन्त तक बरकरार रखा गया है। फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी धीमी गति के साथ पूर्वाद्र्ध का बोरिंग होना भी है।
फिल्म की कहानी मध्यान्तर से पूर्व थोड़ा बोरिंग लगती है, क्योंकि किरदार के एक-दूसरे के साथ रिश्ते और बॉब क्यों एक के बाद एक मर्डर कर रहा है, यह समझ से परे होता है। लेकिन ज्यों-ज्यों कहानी आगे बढ़ती और परत-दर-परत बिस्वास की जिन्दगी के बारे में खुलासा होता है, त्यों-त्यों कहानी रोचक बन पड़ती है। मध्यान्तर के बाद फिल्म गति पकडऩे के साथ ही रोचक हो जाती है।

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फिल्म की कहानी की शुरुआत ब्लू ड्रग्स स्मगलिंग से होती है, जहां एक ड्रग्स स्मैगलर इस धंधे के बारे में दूसरे आदमी को बताता है कि इसका भविष्य कितना फायदेमंद है। वह एक नमूना पेश करते हुए कहता है कि देखिए, आजकल के बच्चे अपने मां-बाप की एक नहीं सुनते, पर ब्लू ड्रग के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। लेकिन ड्रग्स के साइड इफेक्ट को लेकर सिस्टम अपना काम करता है। कहानी आगे बढ़ते हुए वहां पहुंचती है, जिस हॉस्पिटल में बॉब बिस्वास (अभिषेक बच्चन) कोमा में होता है। डॉक्टर उसे यह कहते हुए डिस्चार्ज करते हैं कि तुम्हारा कितना बड़ा एक्सीडेंट हुआ था। 8 साल कोमा में रहे। अब धीरे-धीरे याददाश्त भी वापस आ जाएगी। मेरी बिस्वास (चित्रांगदा सिंह) और उसका बेटा, बॉब को रिसीव करके पहले चर्च ले जाते हैं और वहां कैंडल जलाकर वापस घर आते हैं। बॉब अपनी वाइफ मेरी (चित्रांगदा सिंह) और बच्चों को लेकर बहुत पजेसिव है। साथ ही वह अपनी याद्दाश्त वापस लाने की कोशिश करता है। जब उसकी याद्दाश्त वापस आती है तो वह दुविधा में पड़ जाता है। वह कांट्रैक्ट किलर का काम शुरू करता है। दूसरी तरफ उसकी वाइफ मेरी एक बैंक में काम करती है, जहां पर उसका मैनेजर उससे फ्लर्ट करने की कोशिश करता है। वह नौकरी और लाइफ मैनेज करने की कोशिश करती है। इसके बाद कहानी में कई रोचक मोड़ हैं।

अभिनय की बात करें तो अभिषेक बच्चन और चित्रांगदा सिंह का काम सराहनीय है। अभिषेक ने अपने किरदार में जान डालने के लिए 20 किलो वजन बढ़ाया हैं, जो उनकी बॉडी, हाव-भाव, चाल-ढाल में साफ नजर आता है। किरदार की आवश्यकतानुसार उन्होंने अपने चेहरे पर भाव प्रदर्शित किए हैं। अभिषेक बेहतरीन अभिनेता हैं लेकिन अभी तक उनके अंदर से कोई भी निर्देशक वो नहीं निकलवा पाया जो उनके पास है।

2 घंटे 12 मिनट की कहानी कुल मिलाकर अच्छी बन पड़ी है। जिन दर्शकों को जासूसी किलिंग एक्शन की कहानियाँ पसन्द आती हैं वे इसे जरूर देखना पसन्द करेंगे।

—राजेश कुमार भगताणी