फिल्म समीक्षा : अंतिम: द फाइनल ट्रूथ
राजेश कुमार भगताणी
निर्माता—सलमा खान
निर्देशक—महेश वी. मांजरेकर
प्रस्तुतकर्ता—एसकेएफ फिल्म्स
कलाकार—सलमान खान, आयुष शर्मा, महिमा मकवाना, सचिन खेडकर, सयाजी शिंदे, जीशु सेन गुप्ता, उपेन्द्र लिमये
सेंसर सर्टिफिकेट—यूए
अवधि—2 घंटे 22 मिनट
रेटिंग—3/5
इस सप्ताह दो एक्शन पैक्ड फिल्मों को देखने का मौका सिनेमाघरों में मिला। कोविड-19 के बाद सुधरे हालातों में दर्शक सिनेमाघरों में आ रहा है लेकिन उसी फिल्म को देखने के लिए जिसमें बड़े सितारे हैं। सूर्यवंशी की सफलता के बाद बंटी और बबली-2 का हश्र बुरा हुआ और अब एक साथ प्रदर्शित हुई सत्यमेव जयते-2 और अंतिम: द फाइनल ट्रूथ में सत्यमेव जयते-2 का हश्र बुरा हुआ है। अंतिम को दर्शक पसन्द करेंगे यह जरूर महसूस हुआ है। आइए डालते हैं एक नजर अंतिम पर जिसे महेश वी. मांजरेकर ने निर्देशित किया है और सलमान खान ने निर्मित किया है।
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अंतिम : द फाइनल ट्रूथ मराठी फिल्म मुलगी पैटर्न पर आधारित है जिसे थोड़े
बदलाव के साथ बनाया गया है। प्रवीण तरडे की कहानी पर महेश वी. मांजरेकर,
अभिजीत देशपांडे और सिद्धार्थ साल्वी ने मिलकर इसकी पटकथा को लिखा है।
कहानी में कोई नई बात नहीं है, कई फिल्मों में देख चुके हैं। इसके बावजूद
अंतिम: द फाइनल ट्रूथ को एक बार इसके प्रस्तुतिकरण और अभिनय के कारण देखा
जा सकता है।
पटकथा लेखकों ने किरदारों पर मेहनत की है और फिल्म में वे
उभर कर आते हैं। राहुल और उसके पिता की उसूलों की टक्कर हालांकि लंबी खींची
गई है, लेकिन कुछ अच्छे सीन बन पड़े हैं। राहुल की प्रेमिका मंदा (महिमा
मकवाना) का रोल छोटा है, इसके बावजूद उसे कुछ अच्छे दृश्य मिले हैं जिससे
फिल्म में उसकी सशक्त उपस्थिति झलकती है।
फिल्म में एक और मजबूत
किरदार है, राजवीर सिंह नामक पुलिस ऑफिसर का, जिसे सलमान खान ने अदा किया
है, जो महाभारत के कृष्ण की तरह इस गैंगवार को संचालित करता है और बिना कुछ
किए ही बहुत कुछ कर जाता है। सलमान और आयुष के बीच टकराव वाले सीन में
ताली बजाऊ संवाद हैं। राहुल की बहन अपने भाई के शक्तिशाली होने के बावजूद
घरों में काम करती है और जब राजवीर उसे कहता है कि उसे इस बात पर बहुत गर्व
है, यह फिल्म का सबसे बेहतरीन दृश्य है। किसान आंदोलन पिछले एक वर्ष से
चर्चा में है। फिल्म किसानों की दुर्दशा को बैकड्रॉप में दिखाती है कि
बहुराष्ट्रीय कंपनियां और भ्रष्ट राजनेता किस तरह से भूमि को हथियाने के
खेल खेलते हैं और वर्षों बीतने के बावजूद किसानों की हालत जस की तस है।
निर्देशक
के रूप में महेश मांजरेकर ने एक सामान्य सी कहानी को दिलचस्प तरीके से पेश
किया है। कहानी में जरूरी टर्न और ट्विस्ट देकर ड्रामे में दर्शकों की
रूचि बनाए रखी। राहुल और राजवीर के किरदारों को वे दर्शकों से कनेक्ट करने
में सफल रहे हैं। राहुल का निगेटिव किरदार होने के बावजूद भी वो दर्शकों की
हमदर्दी जीत लेता है। साथ ही राजवीर का ठोस किरदार भी दर्शकों को अपील
करता है। फिल्म का पूर्वाद्र्ध तेज गति से दौड़ता है, लेकिन उत्तराद्र्ध
कुछ धीमा होने के साथ ही खिंचा हुआ सा महसूस होता है।
फिल्म खास तौर
पर आयुष शर्मा के लिए बनाई गई है और इसके लिए सलमान खान ने भी पीछे जाकर
आयुष को आगे आने का मौका दिया है। एक फिल्म पुराने आयुष में जबदरस्त सुधार
नजर आया है। राहुल के किरदार को जो ऊर्जा और पागलपन चाहिए था वो उन्होंने
दिया और बेहतरीन अभिनय किया है। उन्होंने अपनी बॉडी पर भी मेहनत की है और
शर्टलेस होकर शर्टलेस सलमान के साथ फाइट भी की है। हालांकि यह सीन पटकथा
में फिट नहीं बैठता है, लेकिन सलमान के चहेतों के लिए इसे जगह दी गई है।
सलमान खान ने अपनी शख्सियत की मजबूती अपने किरदार को दी है। संवाद बोलने का
अंदाज भी बदला है और बहुत ही शांत तरीके से अपने किरदार को निभाया है।
कैरेक्टर रोल में होने के बावजूद वे हीरो से कम नहीं हैं और पूरी फिल्म में
उनका दबदबा नजर आता है।
महिमा मकवाना ने इस फिल्म से शुरुआत की है
और उन्होंने अपना काम अच्छे से किया है। सचिन खेडक़र, उपेन्द्र लिमये, सयाजी
शिंदे, जीशु सेन गुप्ता का उम्दा अभिनय भी फिल्म के स्तर को उठाने में
सहायक रहा है। वरुण धवन और वलूश्चा डिसूजा एक-एक गाने में दिखाई दिए हैं।
फिल्म के कुछ गाने अच्छे हैं और तकनीकी पक्ष सशक्त है। एक्शन दृश्यों को
अच्छे से डिजाइन किया गया है। फिल्म में हिंसा का अतिरेक है, कहानी साधारण
सी है लेकिन यह ऐसी फिल्म भी नहीं है जिसे नहीं देखा जा सकता है।