यह बात हम सभी जानते है कि मंगलवार का दिन संकट मोचन हनुमान को समर्पित है। बंजरग बली के भक्त पूरी श्रद्धा-भाव से पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि मंगलवार को हनुमान जी की पूजा-अर्चना से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं। इन्हे बजरंग बलि, बाला जी, पवन पुत्र, मारूति आदि नामों से भी जाना जाता है। कहते हैं बजरंग बलि बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं। उनकी पूजा पाठ में ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती है।
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हनुमानजी का पंचमुखी अवतार
कहा जाता है कि
हनुमान जी के पंचमुखी अवतार ज्यादा चमत्कारी है। हनुमान जी का ये पंचमुखी
रूप पांच दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है। आइए जानते हैं हनुमान के पंचमुखी
अवतार के बारे में
हनुमान जी का ये पंचमुखी अवतार हर दिशा का
प्रतिनिधित्व करता है। इनके पांच मुख- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और
ऊर्ध्व दिशा में प्रधान माने जाते हैं। हनुमान जी के पूर्व वाले मुख को
वानर कहा गया है जिसकी चमक सैकड़ों सूर्यों के वैभव के समान है। धार्मिक
मान्यता है कि पूर्व मुख का पूजन करने से शत्रुओं पर विजय पाई जा सकती है।
रामायण
के अनुसार हनुमान जी के प्रत्येक मुख में त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंख और
दो भुजाएं हैं। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है।
पैरिणिक कथा के मुताबिक हनुमान के पांच मुख का अवतार भक्तों के कल्याण के
लिए हुआ है। पश्चिम दिशा की ओर वाला मुख गरुड का हैं जो भक्तिप्रद, संकट,
विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने
जाते हैं।
बजरंग बलि का उत्तर दिशा वाला मुख शूकर का है और इनकी
आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु और उत्तम
स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। अतः दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है
जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं।
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जानिए हनुमानजी ने क्यों लिया था पंचमुखी अवतार
रामायण
के प्रसंग के अनुरूप, लंका युद्ध के समय जब रावण के भाई अहिरावण ने अपनी
मायवी शक्ति से स्वयं भगवान श्री राम और लक्ष्मण को मूर्क्षित कर पाताल लोक
लेकर चला गया था। जहां अहिरावण ने पांच दिशाओं में पांच दिए जला रखे थे।
उसे वरदान था कि जब तक कोई इन पांचों दीपक को एक साथ नहीं बुझएगा, अहिरावण
का वध नहीं होगा। अहिरावण की इसी माया को सामाप्त करने के लिए हनुमान जी ने
पांच दिशाओं में मुख किए पंचमुखी हनुमान का अवतार लिया और पांचों दीपक को
एक साथ बुझाकर अहिरावण का वध किया। इसके फलस्वरूप भगवान राम और लक्ष्मण
उसके बंधन से मुक्त हुए।
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