जयपुर। दिवाली के पावन उत्सव पर धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी और गणपति महाराज की पूजा होती है। मां लक्ष्मी समृद्धि की देवी हैं और इस दिन इनकी आराधना की जाती है। दीवाली के दिन उत्तर दिशा में नीले और पीले बल्व लगाने से घर में लक्ष्मी का आगमन होता है। दीयों का भी विशेष महत्व है। दीये की संख्या का ध्यान देना बहुत जरूरी है।
11, 21, 51 यह शुभ संख्या मानी जाती है। इस संख्या में दिये जलायें और लक्ष्मी माँ का पूजन करते समय 11 घी के दीये अवश्य जलाने चाहिये। इससे घर हमेशा धन धान्य से भरपूर रहता है। उत्तर दिशा कुबेर दिशा मानी जाती है। इस दिशा को साफ सुथरा कर यहां पानी से भरा कटोरा या फव्वारा आदि रखें। इससे घर में कभी भी धन की कमी नहीं होगी।
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मां लक्ष्मी को आमंत्रित करने के लिये घर के द्वार को तोरण से सजायें।
आम के पत्तों या अशोक के पत्तों से बनी तोरण शुभ मानी जाती है। मुख्य द्वार
पर चावल और सिंदूर के मिश्रण से तैयार किये माँ लक्ष्मी के पैरों के चिन्ह
जरूर अंकित करें। इनकी दिशा घर के अन्दर की तरफ होनी चाहिये। दरवाजे पर
हल्दी से ॐ या स्वास्तिक का चिन्ह जरूर बनाएं।
धन-वैभव, ऐश्वर्य और
सौभाग्य प्राप्ति के लिए दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए
सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना गया है, लेकिन मां लक्ष्मी की पूजा में वास्तु के
नियमों को ध्यान में रखना भी बेहद आवश्यक होता है। पूजन कक्ष साफ-सुथरा,
उसकी दीवारें हल्के पीले, गुलाबी या हरे रंग की हों तो अच्छा है क्योंकि ये
रंग सकारात्मक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते हैं। वास्तु विज्ञान के अनुसार
मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा की दिशा उत्तर-पूर्व (ईशान) पूजा करने के लिए
आदर्श स्थान है। यह कोण पूर्व एवं उत्तर दिशा के शुभ प्रभावों से युक्त
होता है। घर के इसी क्षेत्र में सत्व ऊर्जा का प्रभाव शत-प्रतिशत होता है।
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ईशान कोण में रखें पूजा सामग्री -
दीपावली पूजन में मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां अथवा चित्र आदि
छवियां नई हों। चांदी की मूर्तियों को साफ़ करके पुन: पूजा के काम में लिया
जा सकता है। पूजन करते समय मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
उत्तर दिशा चूंकि धन का क्षेत्र है इसलिए यह क्षेत्र यक्ष साधना (कुबेर),
लक्ष्मी पूजन और गणेश पूजन के लिए आदर्श स्थान है।
पूजा कलश व अन्य
पूजन सामग्री जैसे खील-पताशा, सिन्दूर, गंगाजल, अक्षत-रोली, मोली,
फल-मिठाई, पान-सुपारी, इलाइची आदि उत्तर-पूर्व में ही रखा जाना शुभ फलों
में वृद्धि करेगा। देवी लक्ष्मी को लाल रंग अत्यधिक प्रिय है। लाल रंग को
वास्तु में भी शक्ति और शौर्य का प्रतीक माना गया है अत: माता को अर्पित
किए जाने वाले वस्त्र, श्रृंगार की वस्तुएं एवं पुष्प यथा संभव लाल रंग के
होने चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार शंख ध्वनि व घंटानाद करने से
देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और आस-पास का वातावरण शुद्ध और पवित्र होकर
मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
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