पूसा की इजाद, दिल्ली में पराली बन गई खाद

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 04 नवम्बर 2020, 4:46 PM (IST)

नई दिल्ली| मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के साथ दिल्ली के हिरनकी गांव का दौरा किया। यहां मुख्यमंत्री ने बॉयो डीकंपोजर केमिकल के छिड़काव का पराली पर पड़ने वाले प्रभावों का जायजा लिया। इन खेतों में पराली गलकर खाद बन चुकी है। दिल्ली ने पराली का बहुत ही सस्ता और आसान सामधान दिया है। सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा, "पड़ोसी राज्यों ने पराली के समाधान के लिए कुछ नहीं किया, इसलिए किसान मजबूर होकर पराली जलाते हैं। पूसा इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार किए गए बॉयो डीकंपोजर केमिकल के छिड़काव से पराली खाद में बदल रही है। अभी तक सरकारें पराली के समाधान पर बहानेबाजी कर रही थीं, लेकिन अब इनके पास कोई बहाना नहीं बचा है। सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट को भी बताएंगे कि पराली के समाधान के लिए बॉयो डीकंपोजर केमिकल का छिड़काव बहुत ही प्रभावशाली है।"

पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा, "पड़ोसी राज्यों ने पराली के समाधान को लेकर कदम उठाया होता, तो आज दिल्ली के लोगों को कोरोना काल में प्रदूषण का जहर नहीं पीना पड़ता। दिल्ली के प्रदूषण में करीब 40 प्रतिशत योगदान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जलाई जाने वाली पराली का है।"

हिरनकी गांव में बॉयो डीकंपोजर प्रक्रिया का निरीक्षण करने के दौरान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, "हर साल पराली जलने की वजह से जो धुंआ उठता है, उससे प्रदूषण बढ़ता है। मीडिया की रिपोर्ट और सेटेलाइट की फोटो से पता चलता है कि आसपास के राज्यों में, खासकर पंजाब में काफी मात्रा में पराली जलने की घटनाएं हो रही हैं। एक तरफ, किसान खुद भी बहुत दुखी है। जब किसान पराली जलाता है, उसको खुद भी काफी प्रदूषण बर्दाश्त करना पड़ता है और उस पूरे गांव को बहुत ज्यादा प्रदूषण बर्दाश्त करना पड़ता है। आसपास के राज्यों की सरकारों ने उन किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया। इसलिए किसानों को पराली जलाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।"

पड़ोसी राज्यों में जलाई जा रही पराली का सारा धुंआ पूरे उत्तर भारत में फैल जाता है। इस दिशा में दिल्ली सरकार ने पूसा इंस्टीट्यूट के साथ मिल कर इस बार एक अहम कदम उठाया है। दिल्ली सरकार ने दिल्ली के सारे खेतों के अंदर पूसा इंस्टीट्यूट ने जो बॉयो डीकंपोजर केमिकल बनाया है, उसका छिड़काव किया। खेतों में केमिकल का छिड़काव बीते 13 अक्टूबर को किया था और आज 4 नवंबर है।

खेतों में पूरी पराली गल चुकी है और पूरी तरह से खाद में बदल चुकी है। अब किसान अपने खेत में बुवाई का काम कर सकते हैं।

पूसा इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कहा, "वे बॉयो डीकंपोजर केमिकल के परिणाम से बहुत ही संतुष्ट हैं। इसलिए अब पराली का समाधान है। अब सभी सरकारों को दिल्ली की तरह ही पराली का समाधान करना चाहिए। पराली का समाधान करने की अब सरकारों की जिम्मेदारी है, अब कोई सरकार यह बहाना नहीं बना सकती है कि हमारे पास समाधान नहीं है। यह समाधान इतना सस्ता है कि दिल्ली के अंदर केवल 20 लाख रुपए की लागत से ही बॉडो डीकंपोजर केमिकल का छिड़काव हो गया है, यह लागत ज्यादा नहीं है।"

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा, "अगर केन्द्र सरकार और हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने समय पर दिल्ली सरकार की तरह पराली से निपटने को लेकर कदम उठाया होता और लापरवाही नहीं बरती होती तो दिल्ली के लोगों को इस करोना काल में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का जहर नहीं पीना पड़ता। दिल्ली के प्रदूषण में लगभग 40 प्रतिशत योगदान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जलाई जाने वाली पराली का ही है।"

--आईएएनएस

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