श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में दायर याचिका खारिज

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 30 सितम्बर 2020, 9:18 PM (IST)

मथुरा । श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच विवाद को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई के बाद सिविल कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। श्रीकृष्ण जन्मस्थान मामले में सिविल जज सीनियर डिवीजन छाया शर्मा ने याचिकाकर्ताओं की सभी दलीलें अस्वीकार कर दीं। वकील हरिशंकर जैन व विष्णुशंकर जैन ने 57 पेज के दावे में सन् 1968 के समझौते को चुनौती दी थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। दावा खारिज होने के बाद वादी पक्ष के अधिवक्ता ने कहा है वे अब हाईकोर्ट में अपील करेंगे।

13.37 एकड़ जमीन पर 1973 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही ईदगाह मस्जिद के बीच हुए समझौते और उसके बाद की गई न्यायिक निर्णय (डिक्री) को रद्द करने संबंधी याचिका डाली गई थी। कोर्ट में सुनवाई के लिए दोनों पक्षों ने बहस की।

वादी पक्ष की आरे से वरिष्ठ वकील हरीशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने बताया कि याचिका की सुनवाई के लिए अदालत में राम मंदिर से संबंधित मामले में न्यायालय के फैसले के पैरा 116 का हवाला दिया और कहा कि मंदिर निर्माण की संकल्पना अमिट ओर अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। महामना मदन मोहन मालवीय आदि द्वारा ली गई यह संकल्पना मंदिर निर्माण के बाद भी कायम है।

उन्होंने बुधवार की सुनवाई में श्रीकृष्ण जन्मस्थान और कटरा केशवदेव परिसर में भगवान कृष्ण का भव्य मंदिर बनाए जाने से संबंधित इतिहास का सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए कहा कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को शाही ईदगाह प्रबंधन समिति से किसी भी प्रकार का कोई हक ही नहीं था। इसलिए उसके द्वारा किया गया कोई भी समझौता अवैध है, जिसके साथ शाही ईदगाह निर्माण के लिए कब्जाई गई भूमि पर उसका कब्जा अनधिकृत है।

उन्होंने कृष्ण सखी के रूप में याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री की मांग का समर्थन करते हुए संपूर्ण भूमि का कब्जा श्रीकृष्ण विराजमान को सौंपने का अनुरोध किया था। हालांकि अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।

श्रीकृष्ण विराजमान, अस्थान श्रीकृष्ण जन्मस्थान, रंजना अग्निहोत्री समेत आठ लोगों ने इस मामले में अदालत में 25 सितंबर को दावा दायर किया था। इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के बीच 1968 में हुए समझौते को गलत बताया। इसमें समझौता हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, वह बनी रहेगी। जबकि मंदिर जहां बना हैं, वहां बना रहेगा। दावा में इस समझौते को अवैध करार दिया गया है।

--आईएएनएस

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