पुस्तक समीक्षा - विधवा संघर्ष की गाथा, यहां पढ़ें

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 16 सितम्बर 2020, 4:29 PM (IST)

नई दिल्ली । ‘ए प्लेट ऑफ व्हाइट मार्बल’,बानी बासु द्वारासन 1990 में लिखित मूल बांग्ला उपन्यास का अंग्रेज़ी में किया गया अनुवाद है, जिसे नंदिनी गुहा ने अपने शब्दों में पिरोया है। नियोगी बुक्स द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास की कहानी 1950 के मध्य के आसपास की है, जब देश को तो आज़ादी मिल गई थी, मगर एक स्त्री अब भी सामाजिक रीति-रिवाज़ों की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी। हर युवा स्त्री के सपनों की तरह मुख्य पात्र बंदना का शादी का सपना भी साकार हुआ। मगर शादी के तीन-चार वर्ष उपरांत ही उसके पति की मृत्यु हो जाती है। एक ओर पति की मृत्यु का दुख और दूसरी ओर एक बच्चे की परवरिश की चिंता। उस पर पारिवारिक सीमाएँऔर अनेक प्रकार का मानसिक दबाव, इस आधुनिक विचारों वाली स्त्री के लिए असहनीय हो जाता है।खानपान से लेकर सफ़ेद पोशाक के प्रतिबंधों में बँधा अभिशापपूर्ण विधवा-जीवन, विधवा संघर्ष की गाथा ही तो बन गया उसके लिए। कुछ वर्षों तक जीवन इसी ढर्रे पर चला। इसी दौरान उसके अविवाहित चाचा विदेशी दौरे से लौटे और ससुराल में जाकर उसके जीवन जीने के तरीक़ों में बदलाव की वकालत की। मगर सब बेकार, क्योंकि वर्षों की जड़ों को हिलाना इतना आसान नहीं होता। बेटी अपने बच्चे को लेकर चाचा के साथ लौट आई। कुछ साल बाद चाचा भी गुज़र गए। बेटे ने हाई स्कूल से कॉलेज तक का सफ़र तय किया। फिर नौकरी, शादी और घर-गृहस्थी के चक्कर में विधवा माँ को वह सम्मान, प्यार और दर्जा न दे पाया, जिस पर उसका पहला अधिकार था। फिर भी उसने कदम-कदम पर हुएअपने तिरस्कार, उपहास और कठिनाइयों को एक चुनौती की तरह स्वीकार किया और उम्र के एक पड़ाव पर आकर ही सही, अपना मुकाम ख़ुद हासिल किया।अपने को पहचाना और जीवन में हर संभव बदलाव के सरोकार को एक नया आयाम दिया। अतः कहा जा सकता है कि यह एक ज़िदादिल, हिम्मती और प्रेरक किरदार की कहानी है, जिसने समाज को ऐसी महिलाओं के जीवन के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया, जो सिर्फ़ न उपेक्षित थीं, बल्कि समाज की मुख्यधारा से भी कटी हुई थीं।
बानी बासु (1939) एक शिक्षाविद्, कवियित्री, उपन्यासकार, निबंधकार, आलोचक एवं अनुवादक के रूप में काफ़ी प्रसिद्ध हैं।उन्होंने इतिहास, पौराणिक कथाओं, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक पहलुओं के साथ-साथ, स्त्री-विषयक मुद्दों को बेहतर ढंग से उभारा है। जैसा कि हाल ही में नियोगी बुक्स द्वारा प्रकाशित उनका यह उपन्यास ‘ए प्लेट ऑफ व्हाइट मार्बल’ बेहद चर्चा में है। बानी बासु को उनके विशिष्ट लेखन के लिए तारा शंकरपुरस्कार (1991), शिरोमणि पुरस्कार (1997), आनंद पुरस्कार (1998), बंकिम पुरस्कार (1998), कथा पुरस्कार (2003), सहित साहित्य अकादमी पुरस्कार (2010) भी प्राप्त हो चुका है।
नंदिनी गुहा, दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ वोकेशनल से अंग्रेज़ी की एक सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
नियोगी बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में न केवल सचित्र पुस्तकें बल्कि अनुवादित, काल्पनिक एवं ग़ैर काल्पनिक पुस्तकें ने भी ख़ास जगह बनाई है। वर्ष 2004 में शुरू की गई इस पुस्तक प्रकाशन की श्रृंखला में सैकड़ों पुस्तकेंशामिल हैं, जो कम क़ीमत एवं गुणवत्ता के मानकों परसर्वोत्तमहैं एवं पाठकों तक उनकी व्यापक पहुँच है।


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