प्रतिभागियों ने ट्राइबल पेंटिंग की कला सीखी

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 22 जून 2020, 8:39 PM (IST)

जयपुर। जवाहर कला केंद्र(जेकेके) के 'ऑनलाइन लर्निंग - चिल्ड्रन्स समर फेस्टिवल' के तहत प्रतिभागियों ने भोपाल के कलाकार वेंकट रमन सिंह श्याम से ट्राइबल पेंटिंग के गुर सीखे। इस सेशन का उद्देश्य युवा पीढ़ी के मध्य ट्राइबल पेंटिंग्स को बढ़ावा देना था। वर्कशॉप में न केवल ट्राइबल पेंटिंग तकनीक पर चर्चा की गई, बल्कि कला के इस स्वरूप की उत्पत्ति की कहानियां भी बताई गई।

गोंड आर्ट शैली का परिचय देते हुए, कलाकार ने कहा कि गोंड कला 1980 के दशक में भारत में अस्तित्व में आई, जब प्रमुख कलाकार, श्री जगदीश स्वामीनाथन ने एक युवा गोंड कलाकार, जनगढ़ सिंह श्याम के घर की मिट्टी की दीवारों पर इस पेंटिंग को देखा। श्याम प्रथम जाने माने आधुनिक गोंड कलाकार बने। भारत की गोंड जनजाति ये पेंटिंग्स बनाती हैं। ये पेंटिंग्स कृषि गतिविधियां, प्रकृति, पशु, पक्षी आदि विषयों पर बनाई जाती हैं। कलाकार ने कहा कि इस शैली में अंडाकार, वृत्त, अर्ध-चंद्रमाकार, रेखाएं और बिंदु जैसी बेसिक जियोमेट्रिक आकृतियों का उपयोग किया जाता है। इन आकृतियों में पीले, लाल, नीले, हरे, नारंगी, आदि जीवंत रंगों का उपयोग करके इनसे सुंदर कलाकृति बनाई जाती है।

कलाकार ने पेपर पर टाईगर बनाना सिखाया। उन्होंने समझाया कि इन पेंटिंग्स को बनाने से पूर्व कलाकार के दिमाग में सर्वप्रथम किसी विषय की संकल्पना होनी चाहिए, क्योंकि इससे उस पेंटिंग को बेहतर ढंग से बनाने में मदद मिलेगी। कलाकार ने बेसिक जियोमेट्रिक शेप्स का उपयोग करके बाघ का स्केच बनाना शुरू किया। इसके बाद, उन्होंने इन स्केच में जीवंत ऐक्रेलिक रंग भरे। फिर उन्होंने रंगीन पैटर्न्स बनाए। उन्होंने बताया कि गोंड कला में हालांकि विभिन्न कलाकारों की आकृतियां और विषय समान हो सकते हैं, लेकिन उनके पैटर्न हमेशा भिन्न होंगे। आमतौर पर गोंड कलाकार के पैटर्न और डिज़ाइन उसकी अनूठी विशेषता होती है। इस प्रकार की कलाकृतियों में डुप्लिकेशन की अनुमति नहीं होती है। बनाई गई कलाकृतियां मौलिक होनी चाहिए और यह कलाकार की विशिष्ट शैली को दर्शाती है।

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