'वर्ली पेंटिंग' के जरिए आदिवासी जीवनशैली को दर्शाया

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 16 जून 2020, 4:43 PM (IST)

जयपुर। जवाहर कला केंद्र (जेकेके) के 'ऑनलाइन लर्निंग - चिल्ड्रन्स समर फेस्टिवल' में ऑनलाइन लर्निंग सेशन के तहत महाराष्ट्र के कलाकार अनिल वांगड़ ने 'वर्ली पेंटिंग' सेशन का संचालन किया। इस आर्ट सेशन में कलाकार ने वर्ली पेंटिंग की मूल जानकारी और गावों की जीवन शैली का विवरण दिया।

सेशन की शुरूआत में कलाकार ने 'वर्ली पेंटिंग' के बारे में संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया कि यह आदिवासी कला शैली है जो सामान्यतः भारत की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक वर्ली जनजाति ही बनाती है। वर्ली पेंटिंग्स में मुख्य रूप से प्रकृति और उसके तत्वों को दर्शाया जाता है। इस जनजाति की आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि है। वे संसाधन प्रदान करने के लिए प्रकृति और वन्य जीवन का आदर करते हैं। वृत्त, त्रिकोण, वर्ग के साथ-साथ डॉट्स और लाइनों जैसे बुनियादी ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग करते हुए, इन पेंटिंग्स में शिकार करने, मछली पकड़ने और खेती के साथ-साथ पेड़ों एवं जानवरों जैसी रोजमर्रा की गतिविधियों को दर्शाया जाता हैं। उन्होंने बताया कि ये लोग आमतौर पर विभिन्न प्रकार के त्योहारों और नृत्यों को भी चित्रित करते हैं।

कलाकार ने कैनवास पर गाय के गोबर और फेविकोल से तैयार एक परत पर सफेद पोस्टर पिगमेंट और एक नुकीली बांस की छड़ी का उपयोग करते हुए खेती का एक दृश्य बनाया। उन्होंने बताया कि ये आमतौर पर बड़ी पेंटिंग्स होती हैं जिन्हें बनाने में काफी समय लग जाता है। वर्ली कलाकार प्रायः पेंटिंग बनाने के लिए कोई योजना नहीं बनाता। वे प्रवाह के साथ पेंटिंग्स बनाते जाते हैं और आवश्यकतानुसार इसमें तत्वों को जोड़ते जाते हैं। शादियां या फसल कटाई जैसे विशेष अवसरों पर दीवारों पर वर्ली पेंटिंग की जाती है। अब इन पेंटिंग्स को दीवारों पर न बनाकर, पोस्टर पेंट के उपयोग से कैनवास के कपड़े और कागज पर बनाया जा रहा है, जिससे यह कला दूर दूर और व्यापक लोगों तक पहुंचने में सक्षम हुई है। ‘वर्ली पेंटिंग’ को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने की आवश्यकता है। कलाकार ने कहा कि लोगों को कला के इस स्वरूप का अभ्यास करने एवं आदिवासी समुदाय के बारे में और अधिक जानने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।


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