नई दिल्ली, 26 मई (आईएएनएस)| हिंदुस्तान में अमूमन
'खाकी-वर्दी' पर यही आरोप लगते, साबित होते सुने देखे जाते हैं कि वह
वसूली, उगाही और कमाई में मशरुफ रहती है। दिल्ली के एक दारोगा ने इन आरोपों
को झूठा, वाहियात और बकवास साबित करने के लिए जो किया है, वो भी शायद कोई
बिरला पुलिस वाला ही अब तक हिंदुस्तानी पुलिस में कर सका हो। कोरोना काल सी
मुसीबत में तो कम से कम दिल्ली पुलिस यानि राष्ट्रीय राजधानी की खाकी के
माथे ऐसी लानत-मलामतें न लगें। यही सोचकर हम यहां जिस दारोगा का जिक्र नीचे
करने जा रहे हैं उसने वो सब किया, जिसे देख-सुनकर दिल्ली से लेकर
गांव-गलियारे तक उसकी वाह-वाही हो रही है।
यह वही दारोगा है जिसने, लॉकडाउन और कोरोना काल में दिल्ली पुलिस
को बेदाग रखने की सनक में 48 दिन एक अनजान किशोरी को अपने घर में
पाला-पोसा। बात जब दिल्ली पुलिस की आन-बान-शान की आयी तो, दारोगा ने न अपने
परिवार की सोची। न अपनी जिंदगी की। न जेब पर पड़ने वाले बोझ की सोची। मतलब
सबकुछ दांव पर लगा दिया। महज एक अदद दिल्ली की 'खाकी' (दिल्ली पुलिस) को
खुबसूरती देकर उसे बनाने संवारने में खुद पूण्य कमाने की चाहत में। भले ही
पुलिस महकमे में दारोगा का पद 'कुर्सी' और 'पॉवर' की नजर से ज्यादा भारी न
हो, अदना से दारोगा समझे जाने वाले इस शख्स ने आम-ओ-खास क्या? क्या देश के
बाकी राज्यों की पुलिस या फिर आम इंसान। हर किसी से खुद-ब-खुद ही इज्जतदार
'सैल्यूट' का हक/रुतबा तो अपनी पुलिसिया जिंदगी में कायम कर ही लिया। शायद
यही वजह होगी कि, महकमे के मुखिया यानि दिल्ली पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद
श्रीवास्तव ने भी मातहत दारोगा से दिल्ली पुलिस को हासिल इज्जत और हौसला
अफजाई को 'ब-हिफाजत' रखने में कहीं कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी।
'वर्दी
को बेदाग' रखने की ललक में खुद का सबकुछ दांव पर लगा देने वाले दारोगा का
नाम है अरविंद कुमार यादव (47)। अरविंद वर्तमान में पश्चिमी जिले के
मोतीनगर थाने में बहैसियत सहायक उप-निरीक्षक (असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर)
तैनात हैं। लॉकडाउन शुरू हुआ तो अरविंद की बेटी रतन प्रभा ने एक दिन फोन पर
उन्हें बताया कि, 'जनकपुरी में जिस पीजी में वह सहेली सुष्मिता शॉ के साथ
रह रही थी, उसे तुरंत रुम खाली करने को कहा गया है। मुश्किल यह है कि वो,
परदेसी सहेली सुष्मिता को रात के वक्त राजधानी की सूनी सड़कों पर अकेला
छोड़कर खुद घर नहीं आना चाहती।'
बकौल अरविंद कुमार यादव, "मैं उसी
वक्त रात में अपनी कार से गया। बेटी और उसकी सहेली को घर ले आया। बेटी और
उसकी सहेली नीट परीक्षा की तैयारी हॉस्टल में रहकर कर रही हैं। यह बात है
लॉकडाउन घोषित होने के पहले या दूसरे दिन की। सुष्मिता (बेटी की सहेली)
मूलत: कोलकता की रहने वाली है। सुष्मिता के परिवार वालों को मैंने बता दिया
कि, आपकी बेटी मेरी बेटी के पास सुरक्षित है।'
किसी अनजान किशोरी
को आपने घर में लाने से पहले कुछ नहीं सोचा? पूछने पर दारोगा अरविंद बोले,
"पुलिस वाला हूं। कायदा कानून सब जानता हूं। बस इतना सोचा था कि, अगर
सुष्मिता की जगह मेरी बेटी दिल्ली से 12-1500 किलोमीटर दूर कोलकता में फंसी
होती तो, मैं और मेरी बेटी पर क्या गुजरती? अफसरों को पूरा मामला बता
दिया। जैसे रतनप्रभा (दारोगा अरविंद की बेटी) घर में रहती है, उससे अच्छी
तरह से सुष्मिता को रखने की कोशिश की। उसके मां-बाप को भी बता दिया था।"
अभी
तो लॉकडाउन 4 चल रहा है, फिर घर में रह रही सुष्मिता शॉ को आखिर कोलकता
अचानक क्यों छोड़ने जाना पड़ा? पूछने पर अरविंद बोले, "कुछ दिन पहले कोलकता
से उसकी मां का फोन आया। बोलीं सुष्मिता अब हर हाल में कोलकता आना चाहती
है। आपका जो भी खर्चा लगेगा वो हम लोग आपके एकाउंट में डाल देंगे। आप पुलिस
अफसर हैं। किसी तरह मेरी बेटी हमारे पास भेज दो। मैंने कहा चूंकि मैं
पुलिस की नौकरी करता हूं। दिल्ली के हालात कोरोना को लेकर गंभीर हैं। आप
हमारे (दिल्ली पुलिस) अफसरान से बात करें। तभी कुछ संभव होगा।"
बकौल
दारोगा अरविंद, "सुष्मिता की मां ने हमारे कमिश्नर साहब (एसएन श्रीवास्तव)
से संपर्क किया। तब हमारे अफसरान और पुलिस मुख्यालय को पूरी बात पता लगी।
सीपी साहब ने खुद फोन करके सुष्मिता की मां-पिता को आश्वस्त किया कि वे,
परेशान न हों। जैसा वे चाहेंगीं वैसा ही होगा। इसके बाद दिल्ली पुलिस
कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव ने खुद ही कोलकता पुलिस के मुखिया से बात की।"
अरविंद
बताते हैं, "जैसे ही पीएचक्यू (दिल्ली पुलिस मुख्यालय) और व्हिस्की वन
(डीसीपी पश्चिमी जिला दीपक पुरोहित) से इजाजत मिली मैं सुष्मिता को कोलकता
पहुंचाने की तैयारी में जुट गया।"
जब सीपी (दिल्ली पुलिस आयुक्त) को
सुष्मिता की मां से पूरा वाकया पता चला तो, उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
पूछने पर अरविंद कहते हैं, "गॉल्फ-वन साहब की प्रतिक्रिया (दिल्ली पुलिस
आयुक्त) में मेरे पास उनके स्टाफ अफसर डीसीपी विक्रम पोरवाल साहब का संदेश
आया।उन्होंने कहा कि सीपी साहब ने मुझे 10 हजार के नकद इनाम (कैश रिवार्ड)
से सम्मानित किया है।"
बाद में डीसीपी दीपक पुरोहित ने, एडिश्नल
डीसीपी समीर शर्मा, सुबोध कांत, एसीपी पंजाबी बाग कुमार अभिषेक और एसएचओ
इंस्पेक्टर संदीप कुमार आर्य (थाना मोती नगर) की मौजूदगी में मुझे सीपी
साहब की ओर से मिला वो 10 हजार कैश रिवार्ड दिया गया।
दस हजार
रिवार्ड मनी का क्या किया? पूछने पर एएसआई अरविंद कुमार यादव ने कहा, "दस
हजार मिले हैं यह भूल गया। सुष्मिता को उनकी मां से जल्दी से जल्दी कैसे
मिलवाऊं? इसमें जुट गया। सोच रहा था कि अब सुष्मिता को सुरक्षित दिल्ली से
कोलकता पहुचाने पर ही, सीपी साहब से मिली रिवार्ड मनी और दिल्ली पुलिस की
इज्जत टिकी हुई थी। सोच रहा था ऐसा न हो कि कहीं मेरी अब तक की मेहनत को
कोई नजर न लग जाये।"
बकौल अरविंद, "गुरुग्राम में रहने वाले रिश्ते
में ताऊ के बेटे वेदप्रकाश से बात की। उसके पास कार थी। मैंने उसकी कार में
दिल्ली से कोलकता जाने के वक्त तेल की टंकी फुल करवा ली। उसके बाद मैं
सुष्मिता को लेकर 8 मई 2020 को दिल्ली से तड़के करीब चार बजे कोलकता के लिए
निकल गया। रात करीब 12 बजे (8-9 मई 2020 की मध्य रात्रि) हम तीनों कार से
आसनसोल बार्डर पहुंच गये। अगले दिन हम तीनों (9 मई) को दिन में करीब डेढ़
बजे कोलकता में सुष्मिता के साथ उसके परिवार के सामने खड़े थे।"
जिस सुष्मिता से दिल्ली के दारोगा अरविंद कुमार यादव का कोई रिश्ता नहीं
था। उसे दिल्ली से 1550 (दोनो तरफ से आना जाना करीब 3300 किलोमीटर)
किलोमीटर दूर छोड़ने चले गये। रास्ते में कुछ हो जाता तब? पीछे आपके अपने
बच्चे अपना परिवार भी तो है? पूछने पर अरविंद कहते हैं, "दुनिया अपने बारे
में सोचती है तो सोचे। दिल्ली पुलिस सबके बारे में पहले और अपने बारे में
बाद में सोचती है। मैं सिर्फ अरविंद कुमार यादव हूं। वर्दी मुझे दिल्ली
पुलिस ने पहनाई है। दारोगा वर्दी ने बनाया है। मैं पाप करने नहीं पूण्य
करने निकला था। कुछ हो कैसे जाता? फिर यह सब तो उस वक्त सोचने समझने में
मैंने वक्त लगाया ही नहीं। अगर यह सब सोचता तो शायद मैं करीब 70-75 घंटे
में करीब 33-34 सौ किलोमीटर का सफर करके सुष्मिता को छोड़ने ही नहीं जा
पाता।"
दिल्ली से कोलकता आने-जाने में आपने कितना पैसा खर्च कर
दिया? पूछने पर अरविंद बोले, "यह आपका सवाल गलत है। पूण्य को पैसे के तराजू
में तोलेंगे तो वो पाप बन जायेगा।"
हांलांकि एक अनुमान के हिसाब से
जितनी दूरी कार से अरविंद ने अपने तैयरे भाई और सुष्मिता के साथ
(दिल्ली-कोलकता-दिल्ली) नापी उस हिसाब से उनका अनुमानत: 35-36 हजार रुपये
जेब से खर्च हुआ होगा। इसे दिल्ली के दारोगा का बड़प्पन ही कहेंगे कि वे,
इस पूरे प्रकरण में किये हुए को यह कहकर टाल जाते हैं कि, 'मैंने जो किया
खुद और अपने बच्चों के लिए किया।'
दिल्ली पुलिस में सन 1995 में
सिपाही पद पर भर्ती होने वाले अरविंद कुमार यादव मूल रुप से गांव मिलकपुर,
बहरोड़, अलवर (राजस्थान) के मूल निवासी हैं। मां चांदबाई और पिता दयानंद
यादव का देहांत हो चुका है। पांच भाई बहन (कृष्णा, रामअवतार, प्रेम और
माया) में अरविंद सबसे छोटे हैं। फिलहाल दिल्ली के नजफगढ़ इलाके के राणा जी
इंक्लेव, सकरावती इलाके में रहने वाले दारोगा अरविंद बेटी रतन प्रभा को
दिल्ली में नीट की तैयारी कराने में जुटे हैं। जबकि बेटे मोहित ने इस साल
बारहवीं का इम्तिहान दिया है। पत्नी सुषमा गांव में ही रहती है।
इस
बारे में पश्चिमी परिक्षेत्र की संयुक्त पुलिस आयुक्त शालिनी सिंह कहती
हैं, "अरविंद के काम और सोच को सैल्यूट है। उन्होंने एक इंसान और एक पुलिस
जवान की हैसियत से जो कुछ किया है, उससे बड़ा या महत्वपूर्ण मैं उनके बारे
में और कुछ कह ही नहीं सकती हूं। अरविंद हमारी फोर्स के (दिल्ली पुलिस) के
'रोल-मॉडल' हैं।"
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