राजस्थान में वन्यजीवों का हुआ क्वारेंटाईन, फिर हुआ पुनर्वास, देखें तस्वीरें

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 24 मई 2020, 3:28 PM (IST)

जयपुर । वनक्षेत्र की संख्या में कमी होने तथा अनुकूल वातावरण उपलब्ध नहीं होने के कारण वन्यजीवों के क्षेत्र-विशेष से विलुप्त होना कोई नई बात नहीं है परंतु ऐसे ही वन्यजीवों के वनक्षेत्र से विलुप्त हो जाने के बाद सफल पुनर्वास किया जाना वास्तव में अनूठा प्रयास है। ऐसा ही तीन सफल प्रयास उदयपुर के वन विभागीय अधिकारियों द्वारा किए जा चुके हैं, जिनमें से एक प्रयास का एक वर्ष मई माह में ही पूर्ण हो रहा है।

जयसमंद अभयारण्य में हुई थी पुनर्वास की कवायद





उदयपुर शहर से लगभग पचास किलोमीटर दूर 50 वर्ग किलोमीटर में पसरे जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य कभी 1950 में अधिसूचित किया गया था। यह क्षेत्र कभी मेवाड़ राज्य के तत्कालीन शासकों के लिए खेल रिजर्व था और मेवाड़ के महाराणा द्वारा की जाने वाली वार्षिक बाघ शूटिंग इस रिजर्व से शुरू होती थी। गेम रिजर्व होने वाला क्षेत्र वन्यजीवों से समृद्ध था, जिसमें टाईगर, पैंथर, हाइना, भेडि़या, सियार, जंगल बिल्ली, जंगली सूअर, चिंकारा, सांभर, चित्तीदार हिरण और अन्य जानवर शामिल थे। आजादी के बाद, कई कारणों से, इस रिजर्व में टाइगर के साथ अन्य वन्यजीवों में एक खतरनाक गिरावट देखी। हालात तो यह हो गए कि इस अभयारण्य में सांभर और चीतल पूरी तरह से समाप्त हो गए और केवल कुछ चिंकारा और नील गाय ही बचे थे। इन स्थितियों में चीतल और सांभर के पुनर्वास के लिए पहल की भारतीय वन सेवा के अधिकारी और तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) राहुल भटनागर ने और यहां पर लुप्तप्राय हो चुके चीतल और सांभर का पुनर्वास किया गया।


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इस तरह हुआ 18 चीतल और 23 सांभर का पुनर्वास

पुनर्वास पहल के सूत्रधार राहुल भटनागर बताते हैं कि वे वर्ष 1984 से लगातार जयसमंद अभयारण्य में जाते रहे हैं परतु यहां कभी भी चीतल और सांभर की साईटिंग नहीं हुई। इन जीवों के लिए अनुकूल क्षेत्र में इनकी गैर मौजूदगी दुःखद थी सो एक कार्ययोजना बनाई गई और वर्ष 2014 में 18 चीतल और वर्ष 2017 व 2019 में 23 सांभर इस अभयारण्य में पुनर्वास के लिए मुक्त किए गए। उन्होंने बताया कि 2 सितंबर 2014 को शिकाराबाड़ी मिनी चिडि़याघर से 18 चीतल (10 नर और 8 मादा) को तथा 30 अप्रैल 2017 से 7 मई 2017 तक के बैच में 5 सांभर (2 नर और 3 मादा) को दिल्ली गोल्फ कोर्स से तथा 10 सांभर (3 नर और 7 मादा) को 11 मई 2019 को और 8 सांभर (3 नर और 5 मादा) को 18 मई 2019 को दिल्ली चिडि़याघर से जयसमंद अभयारण्य में लाया गया।

21 दिन क्वारेंटाईन के बाद ही वन्यजीवों को छोड़ने के थे निर्देश

भटनागर ने बताया कि इन समस्त वन्यजीवों को यहां अभयारण्य में मुक्त करने के लिए केन्द्रीय चिडि़याघर प्राधिकरण के निर्देशों के अनुरूप पहले 21 दिन क्वारेंटाईन में रखना जरूरी था। इसके लिए जयसमंद अभयारण्य स्थित डिमड़ा बाग में पुनर्वास केन्द्र स्थापित करते हुए इन जीवों को यहां रखने की समस्त व्यवस्थाएं की गई। इस अभयारण्य में पैंथर्स की बड़ी संख्या को देखते हुए पुनर्वास केन्द्र को पैंथर प्रूफिंग किया गया। शिफ्ट किए गए वन्यजीवों के लिए वॉटरहॉल बनाए गए और सांभर के लिए पुनर्वास केंद्र के अंदर बाड़ा भी बनाया गया। वन्यजीवों को स्थानांतरित करने से दो महीने पहले, पैच में हरा चारा भी उगाया गया और बाड़े में इनके लिए झाडि़यां और छायादार वृक्ष भी थे। इन समस्त वन्यजीवों को इस क्षेत्र के साथ अनुकूलन बनाने के लिए भोजन, पानी इत्यादि की निर्देशानुसार व्यवस्था की गई और डिमड़ा बाग पुनर्वास केन्द्र में 21 दिन रखने के बाद जंगल में मुक्त कर दिया गया।





इस टीम के प्रयासों ने दिलाई सफलता
चीतल और सांभर के पुनर्वासों के प्रयास तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक राहुल भटनागर के नेतृत्व में विभाग के कई अधिकारियों व कार्मिकों की मेहनत का परिणाम है। इस टीम में वन्यजीव विशेषज्ञ व पर्यावरण विज्ञानी डॉ. सतीश शर्मा, पशु चिकित्साधिकारी डॉ. प्रदीप प्रधान, तत्कालीन उप वन संरक्षक टी मोहनराज, सहायक वन संरक्षक केसरसिंह राठौड़, तत्कालीन रेंजर गणेश गोठवाल, शूटर सतनामसिंह, फारेस्टर लालसिंह व वाहनचालक मांगीदास के साथ विभाग के अन्य कार्मिक थे।



पांच साल में लगभग दोगुने हुए चीतल
भटनागर बताते हैं कि वर्ष 2010 से 2014 की वन्यजीव गणना में चीतल की मौजूदगी नहीं देखी गई वहीं वर्ष 2018 व 2019 की वन्यजीव गणना के आंकड़ों में इस अभयारण्य में 32 चीतल देखे गए हैं। इधर, सांभर के बारे में जयसमंद अभयारण्य के रेंजर गौतमलाल मीणा की रिपोर्ट के अनुसार, अभयारण्य में दो नए जन्में और 15-16 सांभर के दो झुंड जंगली में नियमित रूप से देखे जाते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि 2019 की वॉटर हॉल वन्यजीव गणना के अनुसार, जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य में 13 पैंथर्स देखे गए है जो इंगित करता है कि सांभरों ने नए परिवेश में खुद को अच्छी तरह से ढाल लिया है और इस प्रकार पुनः उत्पादन सफल है। इधर, वर्ष 2020 के लिए वॉटर हॉल वन्यजीव गणना 5 जून 2020 को निर्धारित है जो कि अभयारण्य में सांभर की आबादी की सटीक स्थिति प्रदान करेगी।