नोवल कोरोनावायरस सतह पर काफी देर तक जिंदा रहता है : शोध

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 19 मार्च 2020, 12:53 PM (IST)

न्यूयॉर्क। कोविड-19 बीमारी के लिए जिम्मेदार वायरस, जिसने विश्व स्तर पर 7,000 से अधिक जाने ली हैं, उसके बारे में एक नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि यह वायरस हवा और जमीन पर कई घंटों तक सक्रिय रहता है। अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआइएच) के शोधकर्ताओं ने पाया कि गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम कोरोनावायरस-2 (एसएआरएस-सीओवी-2) वातावरण में तीन घंटे तक, तांबे पर चार घंटे तक, कार्डबोर्ड पर 24 घंटे और प्लास्टिक, स्टेनलेस स्टील पर दो-तीन दिन तक सक्रिय रहता है।

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक निष्कर्ष में एसएआरएस-सीओवी-2 की स्थिरता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है, जिससे कोविड-19 बीमारी पैदा होती है। उसमें एक सुझाव भी दिया गया है कि दूषित वस्तुओं को छूने से और हवा के माध्यम से लोगों में यह वायरस प्रवेश कर सकता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, उनके द्वारा इस कंटेंट को प्रीप्रिंट सर्वर पर साझा करने के बाद इस जानकारी का पिछले दो हफ्तों में काफी बड़े पैमाने में प्रसार किया गया।

रॉकी माउंटेन लैबोरेट्रीज में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिसीज मोंटाना फैसिलिटी के वैज्ञानिकों ने तुलना की कि कैसे एसएआरएस-सीओवी-2 और एसएआरएस-सीओवी-1 से पर्यावरण प्रभावित होता है।

एसएआरएस-सीओवी-1 को गहन संपर्क अनुरेखण और आइसोलेशन उपायों द्वारा खत्म किया गया था, 2004 के बाद से एक भी मामला नहीं आया। अध्ययन के अनुसार एसएआरएस-सीओवी-1 मानव कोरोनोवायरस है जो एसएआरएस-सीओवी-2 की तरह है।

इस शोध में दोनो वायरस के व्यवहार में समानता पाया गया है, जो दुर्भाग्य से बताने में असमर्थ हैं कि यह कैसे कोविड-19 बहुत बड़ा प्रकोप बन गया है।

इस शोध में निष्कर्ष के रुप में एसएआरएस-सीओवी -2 के प्रसार को रोकने के लिए, जिन्हें इन्फ्लूएंजा और अन्य श्वसन सम्बंधी समस्या है, उन्हें सावधानी बरतने की जरूरत है। बीमार लोगों के करीब जाने से बचें, आंखों, नाक और मुंह को छूने से बचें, बीमार होने पर घर में रहें, खांसी या छींक के समय मुंह को रुमाल से ढकें, साफ-सफाई रखें, कीटाणु वाली वस्तुओं और सतहों को छूने से बचें आदि शामिल हैं।

इस अध्ययन को रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स और प्रिंसटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था। (आईएएनएस)

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