नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में जारी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच भाजपा सरकार बनाने में सफल हुई तो फिर पार्टी का अगला लक्ष्य झारखंड हो सकता है। झारखंड में भी महागठबंधन सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मंत्रिमंडल में शामिल चेहरों व विधायकों में आंतरिक असंतोष जैसे मुद्दों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस के बीच मतभेद की बातें कही जा रही हैं।
इन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा के लिए झारखंड सबसे आसान लक्ष्य हो सकता है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा 26 मार्च को दो सीटों के लिए होने वाले राज्यसभा चुनाव निपटने का इंतजार कर रही है। झारखंड में भाजपा और झामुमो गठबंधन की सरकार पहले भी बन चुकी है। 2009 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सहयोग से ही शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने थे और तब रघुवर दास उपमुख्यमंत्री बने थे।
वहीं बाद में भाजपा के अर्जुन मुंडा और फिर झामुमो नेता हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने थे। 2009 से 2014 के बीच झारखंड ने कुल तीन मुख्यमंत्री देखे हैं। झारखंड भाजपा के एक नेता ने आईएएनएस से कहा कि भाजपा और झामुमो का रिश्ता पुराना है। दोनों दलों के वरिष्ठ नेताओं के व्यक्तिगत रिश्ते भी हैं। जब पूर्व में साझा सरकार बन सकती है तो फिर भविष्य में क्यों नहीं? वैसे भी कांग्रेस के साथ सरकार चलाने में हेमंत सोरेन असहज महसूस कर रहे हैं।
असंतोष ज्यादा बढ़ा तो फिर भाजपा कदम आगे बढ़ाएगी। उन्होंने कहा कि भाजपा जल्दबाजी में नहीं है और पार्टी बिल्कुल फूंक-फूंककर कदम रखेगी। भाजपा ने कहा कि पिछले साल जब हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने थे तब बाबूलाल मरांडी के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के लिए उनके घर पहुंचे थे। मरांडी भले ही महागठबंधन सरकार पर हमले बोलते रहे हों, मगर वे हेमंत सोरेन के परिवार पर निजी टिप्पणी से बचते रहे हैं।
हेमंत सोरेन, बाबूलाल मरांडी का बहुत सम्मान करते हैं। सूत्रों का कहना है कि करीब 14 साल बाद बाबूलाल मरांडी की घर वापसी कराने के पीछे भी भाजपा का यह भी प्लान था कि अवसर मिलने पर झामुमो के साथ सरकार बनाने में आसानी होगी। क्योंकि बाबूलाल मरांडी के रिश्ते सोरेन परिवार के साथ ठीक हैं।
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हेमंत सोरेन जहां विधानसभा चुनाव की रैलियों में कहते थे कि आदिवासी हिंदू
नहीं हैं, वहीं अब वे मुख्यमंत्री बनने के बाद हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग
करते नजर आ रहे हैं। हेमंत सोरेन बीती सात फरवरी को शादी की 14वीं सालगिरह
पर पत्नी और बच्चों सहित वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने के
साथ गंगा आरती में शामिल हुए थे। इसके अलावा वे झारखंड में देवघर व अन्य
मंदिरों में जाकर मत्था टेक चुके हैं।
इन कोशिशों के जरिए आदिवासी हेमंत
सोरेन अपनी हिंदू पहचान पर कहीं ज्यादा जोर देते नजर आ रहे हैं। हेमंत में
आए इस बदलाव के पीछे खास संदेश छिपा बताया जा रहा है। हेमंत ने अपनी
कैबिनेट में ईसाई चेहरे स्टीफन मरांडी को जगह नहीं दी। सूत्रों का कहना है
कि हेमंत लगातार कांग्रेस को यह संदेश देने में जुटे हैं कि अगर सरकार
चलाने में उन्हें स्वतंत्रता नहीं दी गई तो वे नई राह चुनने में संकोच नहीं
करेंगे।
झारखंड के कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह की सरकार में दखलंदाजी से
भी हेमंत परेशान बताए जाते हैं। इसके अलावा, सूत्रों का कहना है कि हेमंत
के पिता और झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन के खिलाफ भ्रष्टाचार, हत्या, हत्या
के प्रयास सहित अन्य कई तरह के आपराधिक केस चल रहे हैं। कुछ मामले दबे पड़े
हैं। हेमंत कभी नहीं चाहेंगे कि फाइलें दोबारा खुलें। कई फाइल केंद्रीय
जांच एजेंसियों के पास हैं। ऐसे में भाजपा के लिए सोरेन परिवार को दबाव में
लेना कहीं ज्यादा आसान है।
(IANS)