मध्यप्रदेश में राज परिवार का राजनीतिक एकीकरण, दादी से लेकर पोते तक को भायी भाजपा!

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 10 मार्च 2020, 7:17 PM (IST)

नई दिल्ली। मध्यप्रदेश की राजनीति के महाराज परिवार फिर से राजनीतिक रूप से एक हो रहा है। 25 साल बाद कांग्रेस से निकलकर ज्योतिरादित्य अपनी दादी राजमाता विजया राजे की पार्टी भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से चार बार सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में रहीं राजमाता विजया राजे सिंधिया चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी में लौट आए।

अब ज्योतिरादित्य अपनी दादी की सपनों को साकार करते दिख रहे हैं। ग्वालियर की राजमाता विजया राजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। राजमाता गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं। लेकिन सिर्फ 10 साल में ही उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया। सन् 1967 में विजया राजे जनसंघ में आ गईं। विजया राजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा।

खुद विजया राजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद चुने गए। गुना संसदीय सीट पर सिंधिया परिवार का कब्जा लंबे समय तक रहा। माधवराव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद चुने गए, लेकिन वे बहुत दिनों तक जनसंघ में नहीं रुके। सन् 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयाराजे सिंधिया से अलग हो गए।

1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर केंद्रीय मंत्री भी बने। दूसरी तरफ, विजया राजे सिंधिया की दोनों बेटियां वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भी भाजपा में शामिल हो गईं। कहा जाता है कि भाजपा को खड़ा करने में राजमाता ने भरपूर सहयोग किया। उनके योगदान की वजह से 1984 में विजया राजे सिंधिया की बेटी वसुंधरा राजे को भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया था। वे राजस्थान की मुख्यमंत्री भी बन चुकी हैं। उनके बेटे दुष्यंत भी राजस्थान की झालवाड़ सीट से भाजपा सांसद हैं।

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वसुंधरा राजे की बहन यशोधरा 1977 में अमेरिका चली गईं। सन् 1994 में जब यशोधरा भारत लौटीं तो वह मां की इच्छा के मुताबिक भाजपा में शामिल हो गईं। वे 1998 में भाजपा के ही टिकट पर मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ीं। पांच बार विधायक रह चुकीं यशोधरा राजे शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रही हैं। ज्योतिरदित्य ने अपने पिता की विरासत संभाले रखी और कांग्रेस के मजबूत नेता बने रहे।

माधवराव सिंधिया का निधन 2001 में एक विमान हादसे में हो गया था। इसके बाद गुना सीट पर उपचुनाव कराए गए और ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। साल 2002 से वे लगातार जीतते आ रहे थे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में हार से उन्हें करारा झटका लगा। कभी उनके ही सहयोगी रहे कृष्णपाल सिंह यादव ने ही सिंधिया को हरा दिया।

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार तो बनाई, लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री नहीं बन सके। इसके छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में हार गए। लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे थे।

कांग्रेस हाईकमान से बार-बार गुहार लगाने के बावजूद उन्हें मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी नहीं मिला। इसी बीच शिवराज सिंह चौहान से उनकी मुलाकात ने विवाद को और हवा दे दी। ज्योतिरादित्य के बारे में कहा जा रहा था कि इस बार वे आर-पार के मूड में हैं। लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। भाजपा को भी इसी मौके का इंतजार था।

(IANS)