दल बदल याचिकाओं पर निर्णय की समय सीमा निर्धारित की जाए जिससे सदस्यता समाप्ति का दण्ड शीघ्र मिल सके: कलराज मिश्र

www.khaskhabar.com | Published : शनिवार, 29 फ़रवरी 2020, 8:12 PM (IST)

जयपुर। राज्यपाल कलराज मिश्र ने राष्ट्रमंडल संसदीय संघ राजस्थान शाखा के तत्वावधान में संविधान की दसवीं अनुसूची के अन्तर्गत अध्यक्ष की भूमिका के संबंध में शनिवार को राजस्थान विधानसभा में आयोजित एक दिवसीय सेमिनार के समापन सत्र के अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा कि दल बदल याचिकाओं पर निर्णय की समय सीमा निर्धारित की जाये जिससे सदस्यता समाप्ति का दण्ड शीघ्र मिल सके और वह विधानमण्डल की सदस्यता से अधिक समय तक वंचित रहे।

राज्यपाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी इस विषय पर अपनी राय प्रकट की है कि पीठासीन अधिकारियों द्वारा दल बदल के निर्णय देने सम्बन्धी अधिकार पर संसद पुनर्विचार करें। उन्होंने कहा कि आज सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि स्पीकर जो खुद किसी पार्टी के सदस्य होते हैं, क्या उन्हें विधायकों और सासंदों की अयोग्यता पर फैसला लेना चाहिए।

मिश्र ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक विकल्प तो यह है कि पीठासीन अधिकारी राजनैतिक विचार धारा से ऊपर उठकर ऎसे प्रकरणों पर निष्पक्ष निर्णय दें। दल बदल याचिकाओं पर निर्णय की समय सीमा निर्धारित की जाये जिससे सदस्यता समाप्ति का दण्ड शीघ्र मिल सके और वह विधानमण्डल की सदस्यता से अधिक समय तक वंचित रहे।

राज्यपाल ने कहा कि दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक विधानसभा में न्यायविदों एवं शिक्षाविदों तथा विधि विशेषज्ञों के साथ इस विषय पर व्यापक विचार विमर्श किया जाए तथा निष्कर्ष को संकल्प के रूप में पारित कर संसद में प्रस्तुत किया जाए ताकि दल-बदल अधिनियम के गैप्स को भरा जा सके।

राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष एवं सी.पी.ए, राजस्थान शाखा के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने समापन सत्र में अपने उद्बोधन में कहा कि देश में लोकतंत्र विकसित हो रहा है। संसदीय लोकतंत्र की मूल आत्मा पार्टी है। पाटियों द्वारा अपनी विचारधारा के अनुसार ही जनता के सामने अपने प्रतिनिधियों को चुनाव के लिए प्रस्तुत किया जाता है। जनता सिद्धान्तों के आधार पर जनप्रतिनिधियों का चुनाव करती है। पार्टी की जिम्मेदारी होती है कि उनके प्रतिनिधि पार्टी की नीतियों के प्रति जिम्मेदार और समर्पित रहे। वहीं वे जिस सदन के सदस्य है उसके नियमों का भी पालन करें। अध्यक्ष की परिकल्पना 10वीं अनुसूची से पहले की है। विधानसभा के नियम और कानून बने हुए हैं। यदि कोई नियम और कानून का पालन नहीं करता है तो अध्यक्ष को अधिकृत किया गया है। उन्होंने कहा कि अध्यक्षीय अधिकार को और ताकतवर या कमजोर किया जाए यह आने वाले समय में निर्णय होगा।

मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत निर्वाचन आयोग सुनील अरोड़ा ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की शुरूआत में कई ऎसे स्पीकर रहे जो अपने आप में एक इन्स्टीट्यूशन थे। उन्होंने स्पीकर की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए उदाहरण स्वरूप बताया कि विट्ठल भाई पटेल ने स्पीकर बनने पर कहा था कि अब मैं किसी पार्टी का प्रतिनिधि नहीं हूं, बल्कि सभी पार्टियों का प्रतिनिधि हूं। इसी प्रकार लोकसभा के प्रथम स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर की स्पीकर के बारे में अवधारण पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने अध्यक्षों की निष्पक्ष भूमिका को संसदीय लोकतंत्र के लिए आवश्यक बताया।

नेता प्रतिपक्ष तथा सीपीए राजस्थान शाखा के उपाध्यक्ष गुलाब चन्द कटारिया ने कहा कि दलबदल मतदाताओं के साथ धोखा है। यह लोकतंत्र को कमजोर करता है। संसदीय लोकतंत्र में दलबदल पर न्यायालयों द्वारा निर्देशित किया जाए यह भी लोकतंत्र को कमजोर करेगा।

समापन सत्र के अन्त में विधायक एवं सीपीए राजस्थान शाखा के सचिव संयम लोढ़ा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि बलबदल कानून को लोकसभा, राज्यसभा तथा विधानसभाओं तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दलबदल कानून को नगरपालिका और पंचायती राज तक ले जाना चाहिए।

राज्यपाल कलराज मिश्र ने सेमिनार के समापन सत्र के आरम्भ में संविधान की प्रस्तावना पढ़कर विधायकों को शपथ दिलाई।

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