महाशिवरात्रि पर्व पर भोले के जयकारों से गूंजा बैजनाथ धाम, भक्तों की उमड़ी भीड़

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020, 4:26 PM (IST)

धर्मशाला। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर शुक्रवार को देश भर के शिवालयों में अपने अराध्य देव की पूजा अर्चना के लिये श्रद्धालु जुटे हैं, तो इसी तरह हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के प्रसिद्ध बैजनाथ धाम में अर्धनारीशवर के रूप में विराजमान भगवान शंकर के दर्शनों को आ रहे हैं। पूरा नगर भोले के जयकारों से गूंज रहा है। यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु सुबह से ही जुटे हैं। नाचते गाते श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के जयकारों से महौल को भक्तिमय बना रहे हैं।

जिला प्रशासन ने यहां देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं के लिये खास इंतजाम किये हैं। ताकि किसी भी श्रद्धालु को दर्शनों के लिये कोई परेशानी न हो। उन्होंने कहा कि सुरक्षा को चाक चौबंद किया गया है। असामाजिबड़ी तादाद में श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिये उमड़े हैं। जिससे बम-बम भोले के उद्घोष से बैजनाथ नगर शिवमयी हो गया है।

हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ शिव मंदिर में ही रावण ने घोर तपस्या की थी व यहीं उन्हें दशानन होने का वरदान मिला था। तो महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। प्राचीनकाल से ही इस मंदिर के बारे में कई किस्से कहानियां बताई जाती हैं। बैजनाथ मंदिर पर ही बैजनाथ नगर का नामकरण हुआ।

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बैजनाथ मंदिर में स्थित अर्धनारीश्वर शिवलिंग देश के विख्यात एवं प्राचीन ज्योतिर्लिंग में से एक है। हिमाचल सरकार की ओर से बैजनाथ मंदिर में मनाये जाने वाले शिवरात्रि मेले के महत्व को देखते हुए, इसे राज्य-स्तरीय मेले का दर्जा प्रदान किया गया है। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ शिवपुराण में ‘शिवरात्रि’ का बहुत महत्व है, जिसे हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुदशी को शिवरात्री पर्व पूरे देश में श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। शिवरात्रि के पावन पर्व पर आशुतोष भवगान ‘शिव’ की अराधना मनुष्य को कष्टों से छुटकारा तथा मुक्तिदायनी मानी जाती है। ऐसी लोगों में मान्यता प्रचलित है।

महा शिवरात्रि को भगवान शिव एवं पार्वती के विवाहोत्वस के रूप में भी मनाया जाता है, जबकि लिंग पुराण के अनुसार शिवरात्रि को भगवान शिव का अभिर्भाव लिंग रूप में हुआ था, इत्यादि-इत्यादि। विशेषकर महिलाओं द्वारा शिवरात्री व्रत को पति की दीर्घायु के लिये शिवलिंग की पूजा की जाती है।


ऐतिहासिक बैजनाथ शिव मंदिर प्राचीन शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना है, जिसके भीतर भगवान शिव का शिवलिंग अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान है तथा मंदिर के द्वार पर कलात्मक रूप से बनी नंदी बैल की मूर्ति शिल्प कला का एक विशेष नमूना है। श्रद्धालु शिव लिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उसपर विल्व पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर भोले नाथ को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते हैं। एक जनश्रुति के अनुसार द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञात वास के दौरान इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था परन्तु वह पूर्ण नहीं हो पाया था।

स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहुक एवं मनूक नाम के दो व्यापारियों ने पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थल शिवधाम के नाम से उत्तरी भारत में विख्यात है।

इस मंदिर में शिव लिंग स्थापित होने बारे कई किवदंतियां प्रचलित हैं एक जनश्रुति के अनुसार राम रावण युद्ध के दौरान रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिये कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या की थी और भगवान शिव को लंका चलने का वर मांगा ताकि युद्ध में विजय प्राप्त की जा सके। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण के साथ लंका एक पिंडी के रूप में चलने का वचन दिया और साथ में यह शर्त रखी कि वह इस पिंडी को कहीं जमीन पर रखकर सीधा इसे लंका पहुंचायें। जैसे ही रावण शिव की इस अलौकिक पिंडी को लेकर लंका की ओर रवाना हुआ रास्ते में कोरग्राम (बैजनाथ) नामक स्थान पर रावण को लघुशंका लगी और उन्होंने वहां खड़े एक व्यक्ति को थोड़ी देर के लिये पिंडी सौंप दी।

लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा कि जिस व्यक्ति के हाथ मे वह पिंडी दी थी वह ओझल हो चुके हैं और पिंडी जमीन में स्थापित हो चुकी थी। रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने के काफी प्रयास किये परन्तु सफलता नहीं मिल पाई फिर उन्होंने इस स्थली पर घोर तपस्या की और अपने दस सिर कि आहुतियां हवन कुंड में डालीं। तपस्या से प्रसन्न होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर पुन: स्थापित कर दिये।