हर साल 2 लाख लीवर प्रत्यारोपण की जरूरत, किया जाए अंगदान के लिए प्रोत्साहित : राष्ट्रपति

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 15 जनवरी 2020, 7:58 PM (IST)

नई दिल्ली। भारत में हर साल लगभग दो लाख लोगों के लीवर खराब हो रहे हैं, यानी हर साल इतने लोगों को लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) की आवश्यकता होती है। लेकिन इनमें से महज कुछ हजार का ही लीवर प्रत्यारोपण संभव हो पा रहा है। इसमें सबसे बड़ी बाधा लीवर की कमी है, जिसके लिए लोगों को अंगदान करने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है। यह बात यहां राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार को कही।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यहां यकृत और पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) के 10वें स्थापना दिवस और 7वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने इस मौके पर अंगदान के लिए रोडमैप बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि ज्यादा से ज्यादा रोगियों को लीवर प्रत्यारोपण का लाभ मिल सके।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में हमें हर वर्ष करीब दो लाख लीवर प्रत्यारोपणों की आवश्यकता पड़ती है, जबकि केवल कुछ हजार लीवर ही प्रत्यारोपित हो पाते हैं। कुछ और सार्वजनिक अस्पतालों में लीवर प्रत्यारोपण कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है और आईएलबीएस इस संबंध में आवश्यक विशेषज्ञता प्रदान कर सकता है। लेकिन सबसे कठिन काम अंगदान को प्रोत्साहित करना और इसके बारे में जागरूकता फैलाना है।

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उन्होंने कहा कि किसी की जान बचाने के लिए आवश्यक अंग और उसकी उपलब्धता के बीच काफी अंतर है। अंगदान के बारे में जागरूकता की कमी की वजह से दानदाताओं की कमी रहती है। आईएलबीएस लीवर दान के लिए प्रोत्साहित करने के तरीके बताने के लिए एक रोडमैप तैयार करे, ताकि संबंधित प्रक्रिया में सुधार लाया जा सके और वर्तमान की तुलना में अधिक संख्या में लीवर प्रत्यारोपित किए जा सकें।

राष्ट्रपति ने कहा कि लीवर की बीमारियां बढऩे के मामलों का संबंध हमारी खराब जीवनशैली है। वर्तमान में चार भारतीयों में से एक का चर्बीदार लीवर होता है और अत्याधिक चर्बी होने के कारण इनमें से 10 प्रतिशत लीवर की बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। यह स्थिति मधुमेह और दिल की बीमारी का पूर्व लक्षण है और मधुमेह के मरीज को अन्य की तुलना में लीवर की बीमारी अधिक देखने को मिलती है।

आईएलबीएस जैसे संस्थान का कर्तव्य है कि वह अनुसंधान करे, जिससे हमारी जीवनशैली और लीवर की बीमीरियों के बीच संबंध स्पष्ट हो सके। इससे जीवनशैली में बदलाव पर आधारित रोकथाम प्रणाली विकसित करने में मदद मिलेगी।

(IANS)