झारखंड हारने के बाद BJP को याद आए बाबूलाल मरांडी! दोनों पक्षों में शुरू हुई बातचीत

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 09 जनवरी 2020, 7:59 PM (IST)

रांची। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) को आशातीत सफलता नहीं मिलने के बाद झारखंड में नए सियासी परिदृश्य की संभावना जताई जा रही है। बदले सियासी समीकरण में झाविमो का भाजपा में विलय हो सकता है। झारखंड के सियासी फिजाओं में यह बात हवा में तैर रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री और झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कमल थाम सकते हैं।

झाविमो के उम्मीदवार हालिया विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर विजयी हुए थे। झाविमो सूत्रों का दावा है कि बदले सियासी समीकरण में झाविमो का भाजपा में विलय हो सकता है। इसे लेकर दोनों पक्षों में बातचीत भी शुरू हो गई है। झाविमो के तीन विधायक हैं, जो फिलहाल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की अगुवाई वाली सरकार को समर्थन दे रहे हैं।

सूत्र तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि भाजपा ने इसी कारण विधायक दल के नेता और विधासभा में विपक्ष के नेता का चुनाव टाल दिया है और खरमास के बाद इसकी घोषणा करने की बात कही है। माना जा रहा है कि भाजपा बाबूलाल मरांडी को आदिवासी चेहरे के रूप में सामने लाकर यह पद उन्हें दे सकता है।

इस बीच मरांडी ने भी झाविमो की कार्यकारी समिति को भी भंग कर दिया है, जिससे इस बात को और हवा मिल रही है। मरांडी ने भी खरमास के बाद समिति के नामों को तय करने की बात की है। झाविमो के विधायक प्रदीप यादव हालांकि ऐसी किसी संभावना से इनकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं जहां था, वहीं आज भी हूं और आगे भी रहूंगा। मरांडीजी किधर जा रहे हैं यह तो उनसे ही पूछना होगा।

ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

इस मामले में कयास लगाए जाने का जिक्र किए जाने पर उन्होंने दो टूक कहा कि आप जब कयासों की ही बात कर रहे हैं, तो बेहतर है कि अध्यक्ष से बात करें। वैसे, मेरी जानकारी में मैं जहां हूं, वहीं हूं। मरांडी की पार्टी के सभी नेता इस बात से इनकार कर रहे हैं, लेकिन भाजपा और झाविमो के सूत्रों का दावा है कि दोनों दल विलय की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। झारखंड भाजपा के एक नेता ने कहा कि अभी तत्काल यह सबकुछ संभव नहीं, हालांकि इस मामले की बात प्रगति पर है।

मरांडी फिलहाल धनबाद से विधायक हैं। मरांडी साल 2000 में बिहार से अलग होकर बने झारखंड के पहले मुख्यमंत्री थे। उन्होंने 2003 में इस्तीफा दे दिया था और उनकी जगह अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री पद संभाला था। मरांडी ने 2006 में अपनी अलग पार्टी बनाई और तब से वे राज्य में जनाधार बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

भाजपा के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं, राज्य के स्तर पर ऐसी कोई सूचना नहीं है। बड़े नेताओं के स्तर पर ऐसी बातें होती हैं। शायद ऐसी बातें चल रही हों। इधर, भाजपा के एक नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि पार्टी ऐसे आदिवासी चेहरे की तलाश में जरूर है, जिनकी पकड़ संथाल में अच्छी हो और हालिया विधानसभा में आदिवासी चेहरा बन सके।

बहरहाल, झारखंड की सियासत में बदलाव के कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन यह सरजमीं पर कब देखने को मिलता है, यह अभी भविष्य में देखने वाली बात होगी। हालांकि मरांडी के निर्णय से उनके दो विधायक कितने सहमत होंगे, यह भी देखना होगा।

(IANS)