यह बात हम सभी जानते है कि बच्चे क्रिसमस के त्योहार का इंतजार काफी बेसब्री से करते हैं क्योंकि उन्हें स्कूल में 'जिंगल बेल जिंगल बेल जिंगल ऑन द वे' गाने का मौका मिलता है। इस अवसर पर क्रिसमस ट्री को सजाना बेहद खास माना जाता है। इस त्योहार पर सिर्फ ईसाई धर्म के लोग ही नहीं बल्कि सभी अपने घर पर सजाते हैं।
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क्रिसमस ट्री की मान्यताएं
यूरोपीय के कुछ देशों में
क्रिसमस के पेड़ की टहनियों का उपयोग भूत भगाने के लिए किया जाता है। इस
जगहों की मान्यता है कि क्रिसमस के पेड़ की टहनियों को रोपने से भूत-प्रेत
और बुरी आत्माएं भाग जाती हैं।
बता दें कि क्रिसमस ट्री को सजाने की
परंपरा जर्मनी से शुरू हुई थी। 19वीं सदी की यह परंपरा इंग्लैंड में
पहुंची जहां से पूरी दुनिया में फैल गई। क्रिसमस ट्री की कहानी प्रभु यीशु
के जन्म से शुरु होती है। जब उनका जन्म हुआ तब उनके पिता मरियम एवं जोसेफ
को बधाई देने वालो ने स्वर्गदूत भी थे।
कहा जाता है कि उन्होंने
सदाबाहर फर को सितारों से रोशन किया था। तब से ही सदाबहार क्रिसमस फर के
पेड़ को क्रिसमस ट्री के रूप में मान्यता मिली। क्रिसमस ट्री को सजाने का
प्रचलन 17वीं शताब्दी से शुरू हुआ।
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कई देशों में ऐसी मान्यता है
क्रिसमस ट्री सजाने के लिए घर के बच्चों की आयु लम्बी होती है। सिर्फ इतना
ही नहीं घर के लोगों का स्वास्थय भी सही रहता है। इससे घर में सकारात्मक
ऊर्जा का प्रवाह होता है।
क्रिसमस ट्री को लेकर कई मान्यताएं भी
हैं। प्राचीन रोम में एक मान्यता के अनुसार एक वृक्ष की एक छोटी शाखा को एक
शिशु ने भोजन और आवास के बदले कुछ आदिवासियों को दी थी। ऐसा माना जाता है
कि वह शिशु ओर कोई नहीं, स्वयं प्रभु यीशुमसीह थे।
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