जयपुर। स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संगठक कश्मीरीलाल ने कहा है कि रासायनिक खेती ने न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चकनाचूर कर दिया, बल्कि गांवों से बड़े पैमाने पर पलायन के कारण रोजगार में कमी भी आई है। कश्मीरीलाल ने रविवार को विश्व संवाद केन्द्र में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि रासायनिक खेती ने हमारी भूमि में जहर घोल दियाइ, इससे अनेक प्राणघातक बीमारियां पैदा हो गई हैं। महंगे कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग से न केवल खेती की लाभप्रदता को कम किया है, बल्कि राष्ट्र के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरे भी पैदा किए हैं।
रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए, स्वदेशी जागरण मंच ने स्वदेशी स्वावलंबन मॉडल का आग्रह किया है, जो कि भारत में 43 लाख से अधिक किसानों को 15 से अधिक पारंपरिक खेती के तरीकों का सफलतापूर्वक अभ्यास किया जा रहा है। कई राज्यों में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती को सफलतापूर्वक अपनाया गया है। जो इस बात का प्रमाण है कि रासायनिक खेती की तुलना में प्राकतिक खेती से उत्पादन वास्तव में बढ़ता है। ये भूमि अब ‘कीटनाशक मुक्त’ हैं और किसान की आय में कम से कम 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
उन्होंने भारत में कृषि की मौजूदा स्थिति और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की दुर्बल स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि पहले तो शहर, गाँवों पर निर्भर थे और दुनिया भर में व्यापार और निर्यात किए जाने वाले इन सामानों और उत्पादों के प्राथमिक आपूर्ति के केंद्र थे। इसके परिणामस्वरूप भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। दुनिया के कुल उत्पाद (जीडीपी) का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा भारत का था, दुर्भाग्य से, आज के गाँव पूरी तरह से बेरोजगारी की मार झेल रहे शहरों पर निर्भर हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि मंच ने हाल ही में क्षेत्रीय वृहत आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) की वार्ताओं, यहां तक की संयुक्त राष्ट्र अमरीका के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं में अधिकांश ध्यान हमारे डेटा को नियंत्रित करने और उसके संबंध में कानून बनाने के हमारे अधिकार को समाप्त करने की ओर है। यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को आरसीईपी वार्ताओं से अलग कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र अमरीका के साथ भी डेटा संप्रभुता के आत्मसमर्पण के साथ व्यापार वार्ताओं में शामिल होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने कहा कि मंच ने हाल ही में क्षेत्रीय वृहत आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) की वार्ताओं, यहां तक की संयुक्त राष्ट्र अमरीका के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं में अधिकांश ध्यान हमारे डेटा को नियंत्रित करने और उसके संबंध में कानून बनाने के हमारे अधिकार को समाप्त करने की ओर है। यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को आरसीईपी वार्ताओं से अलग कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र अमरीका के साथ भी डेटा संप्रभुता के आत्मसमर्पण के साथ व्यापार वार्ताओं में शामिल होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
आर्थिक हितों के साथ-साथ, देश की सीमाओं से परे महत्वपूर्ण डेटा का प्रवाह और स्थानीय सर्वरों की अनुपस्थित, देश की सुरक्षा के लिए भी भारी खतरा उपस्थित करती है। विकसित देश व्यापार एवं निवेश नियमों का हवाला देते हुए डेटा के मुक्त प्रवाह प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। जनवरी 2019 में विश्व व्यापार संगठन के कई देशों ने व्यापार संबंधित ई-काॅमर्स विषय पर वार्ताएं शुरू कर दी हैं। भारत इस प्रकार की किसी भी वार्ता में लिप्त होने से अलग रहा है।
राष्ट्रीय संगठक ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निष्पक्ष मूल्यांकन की आवश्यकता है-उनकी क्षमता, रणनीतिक आवश्यकता, टर्नअराउंड संभाव्यता, बाजार उपयोगिता के अध्ययन के बाद ही विनिवेश रणनीति की आवश्यकता है। इस समय राष्ट्रीय वाहक एयर इंडिया और तेल विपणन कंपनी बीपीसीएल का रणनीतिक विनिवेश करने की योजना बनायी जा रही है। एयर इंडिया को पुनर्गठन और पेशेवर प्रबंधन की आवश्यकता है, विनिवेश की नहीं। ये भावनात्मक स्थिति नहीं हैं, लेकिन एक शुद्ध व्यावसायिक आवश्यकता है।
एयर इंडिया के वित्तीय और अन्य दस्तावेजों की करीबी जांच से पता चलता है कि एयर इंडिया के ऋण और परिसंपत्तियों के पुनर्गठन से न केवल कंपनी की देनदारियों को कम किया जा सकता है, बल्कि राष्ट्रीय वाहक को मुनाफे में वापस लाया जा सकता है। घाटे की एक बड़ी वजह कर्ज की मूल एवं ब्याज की अदायगी है। यह ऋण गलत इरादों के साथ खराब निर्णय लेने के कारण लिया गया था। एयर इंडिया को खराब संपत्ति कहना वास्तव में दर्दनाक और अनुचित है। भारत जैसे विकासशील देश को रणनीतिक और बाजार संतुलन की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय वाहक की आवश्यकता है। प्रेस वार्ता में प्रांत संयोजक डाॅ. शंकरलाल शर्मा, प्रांत संघटक मनोहरशरण भी मौजूद थे।
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