राष्ट्रीय एकता, अखण्डता एवं सामाजिक समरसता के लिए कर्तव्यों का निर्वहन जरूरी - कलराज मिश्र

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 03 दिसम्बर 2019, 8:05 PM (IST)

जयपुर। राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि संविधान हमारा मार्गदर्शक है। छात्र-छात्राएं संविधान की जानकारी रखते हुए राष्ट्रीय एकता, अखण्डता व सामाजिक समरसता के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें। साथ ही वे अर्जित शिक्षा और ज्ञान के बल का सदुपयोग सम्पूर्ण मानवता के कल्याण में करें।
राज्यपाल मंगलवार को अजमेर के महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के नवें दीक्षान्त समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। राज्यपाल ने दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह का शुभारम्भ किया। उन्होंने कहा कि गत 26 नवम्बर को पूरे देश में 70वां संविधान दिवस मनाया गया। संविधान की प्रस्तावना में राष्ट्र की मूल भावना का उल्लेख है। संविधान ने हमे मौलिक अधिकार दिए है। संविधान के अनुच्छेद 51 क में हमारे द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों को बताया गया है। मौलिक अधिकार और कर्तव्य, यह दोनों ही संविधान के प्रमुख स्तम्भ है। मौलिक अधिकारों के साथ हम हमारे कर्तव्यों को जाने, समझें और उनके अनुरूप ही अपना कार्य और व्यवहार करें।
राज्यपाल कलराज मिश्र की पहल - संविधान की प्रस्तावना और कर्तव्यों का कराया वाचन
राज्यपाल कलराज मिश्र ने विश्वविद्यालयों के समारोहों में संविधान की प्रस्तावना और मूल कर्तव्यों का वाचन कराने की शुरूआत अजमेर के महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय से की। उन्होंने दीक्षांत समारोह में उपस्थित लोगों को प्रस्तावना व कर्तव्यों का वाचन कराया। उन्होंने कहा कि युवा पीढी को राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इसलिए संविधान में प्रदत्त कर्तव्यों को युवा लोक आचरण में लाकर आगे बढ़ें। इससे निश्चित तौर पर भारत देश को आगे बढ़ाने में और स्वयं के जीवन को भी प्रोन्नत करने में यह कदम बेहतरीन साबित होगा। आमजन को संविधान की जानकारी होना आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता व सामाजिक समरस्ता के लिए कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा। विश्वविद्यालयों में युवाओं को मूल कर्तव्यों का ज्ञान कराने के लिए अभियान चलाया जाए। देश की युवा पीढ़ी को मूल कर्तव्यों के बारे में जानकारी दिलाने के लिए गोष्ठियां व सेमीनार आयोजित की जाएं।
राज्यपाल ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने प्राचीन भारत के उन्नत गौरव और वैदिक ज्ञान - गरिमा का प्रकाश पूरे विश्व में फैलाया। महर्षि दयानन्द को प्रेरणास्त्रोत मानकर इस विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को ज्ञान के प्रकाश की परम्परा का निर्वहन करना होगा। हमें अज्ञानता, अंधकार, भय, भ्रम, नैराश्य एवं अवसाद से समाज को मुक्ति दिलानी है। इसी ज्ञान के आलोक में वैदिक ऋषियों का नाद गूंजता है। उन्होंने छात्रों का आह्वान किया कि वेे अर्जित शिक्षा और ज्ञान के बल का सदुपयोग स्वयं, समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए करें। शिक्षा का लक्ष्य सिर्फ उपाधि पाकर जीविका का उपार्जन ही नहीं है, बल्कि इसका सही उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास, अनुशासन, स्वावलम्बन, चरित्र-निर्माण, समाज और मनुष्यता के प्रति सेवा और समर्पण का भाव है।

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दीक्षांत है पुरातन परम्परा
उन्होंने कहा कि हमारे यहां गुरूकुल परम्परा में शिक्षा के सम्पन्न होने के बाद दीक्षान्त विधि या गुरूमंत्रा देने की परम्परा रही है। इससे शिक्षा के सर्वांगीण सदुपयोग, वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक विकास का संवाहक होने के लिए विद्यार्थी तत्पर रहता था। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि हमारे विश्वविद्यालयों में पाश्चात्य एवं अंग्रेजों के तौर -तरीकों को बदलकर दीक्षांत समारोह को भारतीय परिवेश और परिधान की साज-सज्जा से जोड़ा गया है। इस दीक्षांत परम्परा को सर्वांगीण विकास का संकल्प, सेवा -समर्पण का भाव, वैयक्तिक-पारिवारिक हित साधन के साथ पूरे देश और विश्व कल्याण की भावना और कर्म -साधना जैसे भारतीय जीवन-मूल्यों से भी जोड़ने की महती आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह का अर्थ शिक्षा का समापन होता है लेकिन वास्तव में यह शिक्षा का समापन नही है। यह जीवन की एक नयी शुरूआत है। उपाधि ग्रहण करना मंजिल नहीं है, सिर्फ एक पड़ाव है।

भारतीय विश्व को दे रहे हैं दिशा
राज्यपाल ने कहा कि यह सुखद संयोग है कि आज देश की बहुसंख्यक आबादी युवा है। भारत इसी युवा शक्ति, युवा सपनों, युवा संकल्पों, नव ऊर्जा के साथ विकास और चहुमुंखी प्रगति के पथ पर अनवरत आगे बढ़ रहा है। देश का वर्तमान और भविष्य इसी युवा पीढ़ी पर निर्भर है। युवा संकल्पबद्ध होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करें। आज भारतीय युवाओं के ज्ञान और कौशल का पूरे विश्व में वर्चस्व है। भारतीय वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक, शिक्षक और सूचना तकनीक के विशेषज्ञ पूरे विश्व में अपने अर्जित ज्ञान और कौशल से कर्म कर राष्ट्र की कीर्ति बढ़ा रहे है।
प्रकृति के संरक्षण की है आवश्यकता
उन्होंने कहा कि आज दृढ़ संकल्प और एकजुट कर्मसाधना की जरूरत है। शैक्षिक एवं कौशल की उपलब्धियों के साथ हमें सामाजिक एवं मानवीय दायित्वों का भी बोध होना चाहिए। प्रदेश में जल की कमी है। ऊर्जा संरक्षण, पौधारोपण, वन संरक्षण हमारे वर्तमान की ही नहीं, भावी पीढ़ियों के लिए भी चुनौती है। उन्होंनेे प्रसन्नता व्यक्त की कि यह विश्वविद्यालय सामाजिक दायित्वों के निर्वहन के लिए पहल कर रहा है। पहले ‘‘ मोहामी’’ गांव को तथा अब ‘‘नरवर’’ गांव को विकास की दृष्टि से गोद लिया गया है। इससे गांव की समस्याओं का त्वरित निस्तारण होने के साथ ही ग्राम्य जीवन अधिक विकसित एवं सुविधापूर्ण होगा साथ ही युवा गांव से जुड सकेंगे।

हस्ताक्षर अभियान का किया शुभारम्भ
राज्यपाल मिश्र ने भारत के संविधान की 70वीं वर्षगाांठ के अवसर पर चलने वाले हस्ताक्षर अभियान का शुभारम्भ किया। उन्होंने भारतीय संविधान के प्रति जागरुकता पैदा करने के अभियान पर सर्वप्रथम हस्ताक्षर किए। यह अभियान राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा राज्यभर में चलाया जाएगा।
उपाधियों का करें जीवन में सदुपयोग
समारोह के विशिष्ट अतिथि प्रदेश के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री भंवर सिंह भाटी ने कहा कि भारत प्राचीन काल सें ही शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल रहा है। विदेशी छात्र यहां के विश्वविद्यालयों में ज्ञान प्राप्त करने आते थे। यहां की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मानव कल्याण है।

फसल चक्र को जोड़े वर्षा चक्र से
समारोह के मुख्य वक्ता एवं मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्तकर्ता डॉ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि फसल चक्र को वर्षा चक्र के साथ जोड़ना समय की आवश्यकता है। बारिश का पैटर्न रेंडम होने से समस्या में और वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में ज्येष्ठ अमावस्या के दिन फसल चक्र निर्धारण के लिए पूरा गांव एक जगह बैठने की परंपरा है। इसें पुर्नजीवित करना चाहिए। जल साक्षरता के माध्यम से भू जल को बढ़ाने में सभी नागरिकों को अपना योगदान देना चाहिए।
खेल दर्शन पर डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि कनिष्क पांडेय को प्रदान की गई। समारोह में 33 स्वर्ण पदक, एक कुलाधिपति पदक समाज विज्ञान संकाय की काजल उपाध्याय को एवं 18 शोधार्थियों को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति आर.पी.सिंह ने स्वागत उद्बोधन किया।