अयोध्या/नई दिल्ली। अयोध्या विवाद मामले में 70 सालों तक चली कानूनी लड़ाई और सुप्रीम कोर्ट में 40 दिनों तक लगातार चली सुनवाई के बाद शनिवार को ऐतिहासिक फैसला आ गया। फैसला विवादित जमीन पर रामलला के हक में सुनाया गया। फैसले में कहा गया कि राम मंदिर विवादित स्थल पर बनेगा और मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में पांच एकड़ जमीन अलग से दी जाएगी।
अदालत ने कहा कि विवादित 02.77 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के अधीन रहेगी। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर बनाने के लिए तीन महीने में एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया गया है। राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया, लेकिन साथ ही कहा कि निर्मोही अखाड़े को ट्रस्ट में जगह दी जाएगी।
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अदालत ने बाबरी मस्जिद विध्वंस पर कहा कि मस्जिद को गिराना
कानून का उल्लंघन था। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन
पर नहीं बनी थी। एएसआई के मुताबिक मंदिर के ढांचे के ऊपर ही मस्जिद बनाई गई
थी।
प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आस्था के आधार पर
फैसले नहीं लिए जा सकते हैं। हालांकि यह विवाद सुलझाने के लिए संकेतक हो
सकता है। अदालत को लोगों की आस्था को स्वीकार करना होगा और संतुलन बनाना
होगा। अदालत ने कहा कि रामजन्मभूमि कोई व्यक्ति नहीं है, जो कानून के दायरे
में आता हो।
अदालत ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट पर भरोसा जताते
हुए कहा कि इस पर शक नहीं किया जा सकता। पुरातत्व विभाग की खोज को नजरअंदाज
नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अंग्रेजों के शासनकाल में राम चबूतरा
और सीता रसोई में पूजा हुआ करती थी। इसके सबूत हैं कि हिंदुओं के पास
विवादित जमीन के बाहरी हिस्से पर कब्जा था।
अदालत ने माना कि हिंदू
इसे भगवान राम की जन्मभूमि मानते हैं। मुस्लिम इसे मस्जिद कहते हैं।
हिंदुओं का मानना है कि भगवान राम केंद्रीय गुंबद के नीचे जन्मे थे। यह
व्यक्तिगत आस्था की बात है। अदालत ने कहा कि अयोध्या में राम के जन्म का
किसी ने विरोध नहीं किया है।
कोर्ट ने फैसले में कहा कि सुन्नी वक्फ
बोर्ड को नई मस्जिद के निर्माण के लिए अलग जमीन दी जाए। अदालत ने कहा कि
या तो केंद्र सरकार अयोध्या में अधिग्रहित जमीन में से सुन्नी वक्फ बोर्ड
को पांच एकड़ जमीन दे या फिर उत्तर प्रदेश सरकार अयोध्या शहर में कहीं और
मुस्लिम पक्ष को जमीन दे।
अदालत ने जहां विवादित जमीन रामलला
विराजमान को दिया, वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड को जमीन देने की बात कही। इससे
यह स्पष्ट हो गया कि अदालत ने मामले में इन दोनों को ही पक्षकार माना है।
अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमीन को तीन हिस्सों में बांटने के
फैसले को अतार्किक करार दिया। अयोध्या फैसले के मद्देनजर देशभर में सुरक्षा
सख्त कर दी गई है और कई शहरों में इंटरनेट बंद कर दिया गया।
इससे
पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 30 सितंबर, 2010 को अयोध्या में
विवादित 2.77 एकड़ भूमि का फैसला सुनाया था, जिसमें उसने मामले के तीनों
पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर जमीन
बांटने का फैसला किया था।
हालांकि तीनों पक्षों ने यह फैसला मानने
से इंकार कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14
याचिकाएं दायर की गईं। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पिछले नौ वर्षो से लंबित
था।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच
न्यायाधीशों की पीठ ने 16 अक्टूबर को इस विवादास्पद मुद्दे पर अपनी सुनवाई
पूरी की थी। पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति
अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर
शामिल हैं।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित मुद्दे को
सुलझाने के लिए मध्यस्थता का आदेश दिया था, लेकिन यह विफल रही। आखिरकार
अगस्त में शीर्ष अदालत ने मामले में सुनवाई शुरू की।