रांची। बिहार की राजनीतिक में धाक जमाने वाले दलों को झारखंड के विधानसभा चुनाव में खोई प्रतिष्ठा वापस पाना चुनौती बना हुआ है। हालांकि, इन दलों के नेता झारखंड में अपनी खोई जमीन तलाशने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं।
बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) हो या बिहार में सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद), दोनों जहां अपने खोई जमीन पाने के लिए छटपटा रही हैं, वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अपने जातीय समीकरण का जोड़-घटाव कर झारखंड में खाता खोलने के लिए व्यग्र दिख रही है।
वैसे, ये सभी दल झारखंड में भी अपनी 'सोशल इंजीनियरिंग' के सहारे उन जातीय वर्ग में पैठ बनाने की कोशिश में हैं, जिससे वे अब तक बिहार में सफलता पाते रहे हैं।
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उल्लेखनीय है कि राजद और जद (यू) को झारखंड के मतदाताओं ने पिछले
चुनाव में पूरी तरह नकार दिया था। वर्ष 2014 में हुए चुनाव में जद (यू) 11
सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि राजद ने 19 और लोजपा ने एक सीट पर अपने
उम्मीदवार उतारे थे।
ऐसा नहीं कि राजद और जद (यू) को यहां के
मतदाताओं ने पसंद नहीं किया है। झारखंड बनने के बाद पहली बार 2005 में हुए
विधानसभा चुनाव में जद (यू) के छह और राजद के सात प्रत्याशी विजयी हुए थे।
वर्ष
2009 में हुए चुनाव में जद (यू) ने 14 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से दो
जबकि राजद ने पांच सीटों पर विजय दर्ज कर अपनी वजूद बचा ली थी।
लोजपा झारखंड में अब तक खाता नहीं खोल पाई है। दीगर बात है कि प्रत्येक चुनाव में उसके प्रत्याशी भाग्य आजमाते रहे हैं।
इस
चुनाव में जद (यू) ने जहां अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है, वहीं राजद
विपक्षी दलों के महागठबंधन के साथ अब तक खड़ी नजर आ रही है। लोजपा
सत्ताधारी भाजपा के साथ चुनाव मैदान में उतरने के मूड में है।
जद
(यू) पिछले कई महीने से अपने पुराने वोटरों को गोलबंदी करने के प्रयास में
लगा है। जद (यू) की नजर राज्य में दर्जनभर से ज्यादा सीटों पर है। जद (यू)
की मुख्य नजर पलामू, दक्षिणी छोटानागपुर और उत्तरी छोटानागपुर की उन सीटों
पर है, जहां जद (यू) का परंपरागत आधार रहा है। जद (यू) अपने वरिष्ठ नेता
आऱ सी़ पी़ सिंह के नेतृत्व में राज्यभर के चुनिंदा विधानसभा में
कार्यकर्ता सम्मेलन सह जनभावना यात्रा निकालकर अपने वोटबैंक को सहेजने की
कोशिश कर चुकी है।
जद (यू) के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य
प्रवीण सिंह कहते हैं कि जद (यू) पूरे दमखम के साथ इस चुनाव में उतर रही
है। उन्होंने चुनौती के संबंध में पूछे जाने पर कहा कि कोई भी चुनाव चुनौती
होती है।
इधर, लोजपा भी झारखंड में अपने चुनावी अभियान का आगाज कर
चुका है। 20 सितंबर को झारखंड के हुसैनाबाद में लोजपा के अध्यक्ष चिराग
पासवान ने एक जनसभा को संबोधित किया था। लोजपा ने राजग में सीटों की
दावेदारी की है। लोजपा की दावेदारी पांच से छह सीटों पर है। लोजपा के नेता
का कहना है कि लोजपा राजग में हैं और अपनी सीटों पर दावेदारी की है।
राजद
ने भी महागठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी पूरी कर ली है।
बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद 12 सीटों पर अपना दावा ठोंक चुकी है,
मगर अब तक महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
पलामू प्रमंडल और संथाल की कुछ सीटों पर राजद की पुरानी पैठ रही है। इन क्षेत्रों में राजद के उम्मीदवार जीतते भी रहे हैं।
बहरहाल,
झारखंड चुनाव में बिहार के इन दलों द्वारा खोई जमीन तलाशने की कोशिश कितनी
सफल होती है, यह तो चुनाव परिणाम से ही पता चल सकेगा, लेकिन लोजपा के लिए
इस राज्य में खाता खोलना मुख्य चुनौती बना हुआ है।
(आईएएनएस)