कोलकाता। ज्ञान-विज्ञान और कला-साहित्य के लिए चर्चित महानगर कोलकाता सिटी ऑफ जॉय के साथ-साथ नोबल विजेताओं का शहर भी है। छह में पांच क्षेत्रों के नोबल विजेताओं का कोलकाता से किसी न किसी प्रकार से जुड़ाव रहा है। कोलकाता की धरती जहां पर इस समय भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (आईआईएसएफ) का आयोजन चल रहा है वह भौतिक विज्ञान में भारत के प्रथम नोबल विजेता डॉ. सीवी रमण की कर्मस्थली रही है।
इस शहर में उन्होंने नोबल पुरस्कार हासिल करने की इबारत लिखी थी। यह एक बड़ा संयोग है सात नवंबर को उनकी जयंती है और देश-विदेश के वैज्ञानिक यहां जुटे हैं और विज्ञान व प्रौद्योगिकी की उपलब्धियों का उत्सव मना रहे हैं। चंद्रशेखर वेंकट रमण का सात नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उनके पिता गणित और भौतिकी के प्राध्यापक थे। विरासत में प्राप्त विज्ञान की प्रतिभा और अभिरुचि का ही परिणाम था कि 1906 में उनका पहला शोध पत्र लंदन की फिलॉसोफिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढऩे की सुविधा नहीं मिलने के कारण सीवी रमण ने सरकारी नौकरी का रुख किया। भारत सरकार के वित्त विभाग की प्रतियोगिता परीक्षा में प्रथम आने के बाद वे 1907 में असिस्टेंट अकाउंटेंट जनरल बनकर कलकत्ता (कोलकाता) आए थे। लेकिन विज्ञान के प्रति उनका लगाव बना रहा और यहां वे इंडियन एसोसिएशन फोर कल्टीवेशन ऑफ साइंस और कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं में शोध करते रहे। बाद में डॉ. रमण ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में बतौर प्राध्यापक अपनी सेवा प्रदान की। उन्हें 1930 में भौतिकी में नोबल पुरस्कार मिला। उनके अनुसंधान कार्य को रमण प्रभाव के रूप में जाना जाता है।
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हर साल 28 फरवरी को इसलिए राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है क्योंकि
1928 में 28 फरवरी को ही उन्होंने रमण प्रभाव की खोज की थी। सीवी रमण को
1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 21 नवंबर 1970 को महान
वैज्ञानिक डॉ. सीवी रमण चल बसे। मालूम हो कि देश के पहले नोबल विजेता
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्मस्थल और कर्मस्थल दोनों कोलकाता ही है।
शांति का
नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाली मदर टेरेसा की भी कर्मस्थली यहीं रही है।
कोलकाता ने अमत्र्य सेन और अभिजीत बनर्जी के रूप में अर्थशास्त्र में दो
नोबल विजेता दिए हैं। इसके अलावा मलेरिया परजीवी की खोज के लिए चिकित्सा का
नोबल प्राप्त करने वाले रोनाल्ड रॉस ने भी कोलकाता में ही यह खोज की थी।
रॉस को 1902 में नोबल पुरस्कार मिला था। इस प्रकार, कोलकाता के पहले नोबल
विजेता रॉस ही थे।
(IANS)