सिंह बंधुओं ने धन की हेराफेरी कर रेलीगेयर फिनवेस्ट को डुबोया, CEO के साथ रची साजिश

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 20 अक्टूबर 2019, 8:33 PM (IST)

नई दिल्ली। रेलीगेयर समूह को 3000 करोड़ रुपए की चपत लगाने के मुख्य किरदार मलविंदर मोहन सिंह (एमएमएस) और शिविंदर मोहन सिंह (एसएमएस) बंधु थे। मामले में दर्ज प्राथमिकी (एफआईआर) की जो प्रति आईएएनएस के पास है, उसमें बताया गया है कि किस तरह पैसों की हेराफेरी की गई।

धोखाधड़ी के इस खेल में कंपनी से पहले के बकाये के तौर पर जिस दिन भुगतान प्राप्त किया गया, उसी दिन उसी कंपनी को उतनी ही राशि या उससे अधिक राशि दी गई। कुछ मामले में बही की प्रविष्टियां पूर्व की तारीखों में की गई, जबकि दोबारा भुगतान उसी दिन या एक से दो दिन के अंतराल में किया गया, जब उसी कंपनी को या कुछ अन्य कंपनियों को पैसे दिए गए।

इस प्रकार पूरा मामला सुनियोजित था जिसमें बकाये का पैसा लिया गया और फिर भुगतान किया गया। सिंह बंधुओं ने कंपनी के सीईओ सुनील गोधवानी के साथ मिलकर धोखाधड़ी की पूरी साजिश रची और जानबूझकर रेलीगेयर फिनवेस्ट को डुबोया, ताकि बगैर किसी दखलंदाजी के पैसों की हेराफेरी की जा सके।

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धोखाधड़ी के इस खेल पर गौर करें तो ब्लू लाइन फाइनेंस, जीवाईएस रियल स्टेट, लिगेयर एविएशन, लिगेयर वॉयेज लीनियर कमर्शियल और शारन हॉस्पिटैलिटी से 17 जून, 2009 को 34 करोड़ रुपये प्राप्त किया गया और उसी दिन डिऑन ग्लोबल रेलीगेयर टेक्नोवा बिजनेस इंटेलेक्ट और रेलीगेयर टेक्नोवा आईटी सर्विसेज को 54 करोड़ रुपये का धन मुहैया करवाया गया। इसी प्रकार, 17 जून 2009 को 200 करोड़ रुपये का धन दिया गया और रेलीगेयर फाइनेंशियल कंसल्टेंसी से 100 करोड़ रुपये का दोबारा भुगतान प्राप्त किया गया।

इसके बाद 30 मार्च, 2010 को नौ कंपनियों को 36 करोड़ रुपये दिए गए और उसी दिन छह कंपनियों से 32 करोड़ रुपये प्राप्त किए गए, जबकि रेलीगेयर एविएशन से 13 करोड़ रुपये का दोबारा भुगतान उसी दिन प्राप्त किया गया, जिस दिन उसे 14 करोड़ रुपये दिया गया। फिर 31 जनवरी, 2011 को एडेप्ट क्रिएशन, नियोन रियल्टर्स, एसवीआईआईटी सॉफ्टवेयर और वेक्ट्रा फार्मास्युटिकल्स से 175 करोड़ रुपये का भुगतान प्राप्त किया गया और अगले ही दिन एक फरवरी 2011 को रेलीगेयर एविएशन, ऑस्कर इन्वेस्टमेंट्स, रेलीगेयर कॉमट्रेड, आरएचडीएफसी और आरडब्ल्यू हेल्थ वल्र्ड को 174 करोड़ रुपये मुहैया करवाए गए।

शिकायतकर्ता कंपनी रेलीगेयर फिन्वेस्ट की आंतरिक जांच की एक प्रति से कंपनी के कॉरपोरेट लोन बुक (सीएलबी) के खाते में उपर्युक्त संबद्ध कंपनियों में 2,397 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी उजागर होती है। सीएलबी के खाते में पाई गई विभिन्न प्रकार की चूकों के कारण आरएफएल ने एनसीएलटी (राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण) में इन कंपनियों के खिलाफ ऋणशोधन अक्षमता व दिवाला कोड 2019 के तहत कानूनी कार्यवाही शुरू की। एनसीएलटी के समक्ष सात कर्जदार कंपनियों ने इसकी पुष्टि करते हुए अपना जवाब दाखिल किया, जो वित्तीय धोखाधड़ी, जालसाजी, भरोसा तोडऩे का आपराधिक मामला, धन शोधन, साजिश और नहीं चुकाए गए गैरप्रतिभूति कर्ज/सीएलबी लेन-देन के मामले में एक चौंकाने वाली स्वीकृति है।

शिकायतकर्ता कंपनी मानती है कि इन कंपनियों में पांच कंपनियां- एएंडए कैपिटल सर्विसेज लिमिटेड, श्रीधाम डिस्ट्रिब्यूटर प्राइवेट लिमिटेड (जिसे पहले अभिरुचित डिस्ट्रिब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जाना जाता था,), एनीस अपैरल प्राइवेट लिमिटेड (एनीस), तारा एलॉयस, लिमिटेड (तारा) एमएमएस और एसएमएस के स्टॉकब्रोकर एन.के. घोषाल से संबद्ध हैं और उनके द्वारा नियंत्रित हैं। एन.के. घोषाल के नियंत्रण वाली उपर्युक्त कंपनियों ने एनसीएलटी के समक्ष स्वीकार किया है कि कि एएंडए और कैपिटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड का इस्तेमाल धन का लेन-देन करने के माध्यम के रूप में किया गया और इसके लिए उसे लेन-देन का शुल्क देने का वादा किया गया।

(IANS)