अयोध्या विवाद मामले में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित, 17 नवंबर से पहले आने की उम्मीद

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 16 अक्टूबर 2019, 7:19 PM (IST)

नई दिल्ली। चालीस दिन की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजनीतिक रूप से अति-महत्वपूर्ण 70 वर्ष पुराने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 6 अगस्त से मामले में रोजाना सुनवाई शुरू की थी। इससे पहले अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल मामले को सुलझाने में विफल रही थी। पैनल की अध्यक्षता शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश कर रहे थे।

बुधवार को अपराह्न चार बजे, मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश राजीव धवन बहस कर रहे थे, प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई को समाप्त कर दिया और घोषणा करते हुए कहा कि अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने कहा, सुनवाई पूरी हो चुकी है और फैसले को सुरक्षित रख लिया गया है। ऐसी उम्मीद है कि 17 नवंबर को अपनी सेवानिवृत्ति से पहले प्रधान न्यायाधीश मामले में फैसला सुनाएंगे।

पीठ में न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर शामिल हैं। सुनवाई के अंतिम दिन, न्यायालय खचाखच भरा हुआ था और हिंदू व मुस्लिम दोनों पक्षों के बीच काफी तीखी बहस देखने को मिली। धवन ने एक पिक्टोरियल मैप को फाडक़र अदालत को स्तब्ध कर दिया, जिसे अखिल भारतीय हिंदू महासभा के एक वरिष्ठ वकील द्वारा भगवान राम के जन्मस्थली के तौर पर दर्शाया गया था।

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प्रधान न्यायाधीश ने इस पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह हरकत पीठ को पसंद नहीं आई। दिन के पहले पहर में, हिदू पार्टियों ने बहस की और अदालत से ऐतिहासिक भूल को सही करने का आग्रह किया, जहां हिंदू द्वारा पवित्र माने जाने वाले स्थल पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया था।

वहीं दूसरी तरफ, धवन ने कहा कि मुस्लिम पार्टी बाबरी मस्जिद का निर्माण चाहती है जैसा कि यह 5 दिसंबर 1992 को खड़ा था। उन्होंने कहा, ढहायी गई इमारत हमारी है। इसे दोबारा बनाने का अधिकार भी हमारे पास है। किसी और के पास कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने हिंदू पक्ष के एक वकील के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का भी प्रयोग किया, जिसने इस्लामिक कानून पर बहस की और बताया कि बाबरी मस्जिद एक इस्लामिक संरचना नहीं था।

धवन ने अदालत के समक्ष कहा, सल्तनत की शुरुआत 1206 में हुई, और जाति आधारित समाज में इस्लाम लोगों के लिए काफी आकर्षक विश्वास (फेथ) था। अदालत ने दोनों पक्षों के वकीलों से मामले में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर लिखित दलील दाखिल करने के लिए कहा।