निशा शर्मा
चंडीगढ़। हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनावों में जीते चारों आज़ाद विधायक एक बार फिर वहीं आ खड़े हुए हैं, जहां से उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरु की थी, विधानसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले यह चारों विधायक अपने पदों से इस्तीफे दे कर भाजपा में शामिल हुए थे। इन सब को उम्मीद थी कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा उन्हें टिकट दे देगी, लेकिन जब उम्मीदवारों की सूची जारी हुई तो इनमें से किसी के भी नाम उसमें शामिल नहीं किये गए थे।
विधानसभा में फिर से पहुंचने की चाह रखने वाले इन विधायकों को लगा कि उनके साथ भाजपा ने धोखा किया है। इन्हें अपने-अपने इलाकों में अपनी पैठ का भरोसा है, इसलिए टिकट कटते ही यह फिर से आजाद उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आ गए। इनका एकमात्र मकसद भाजपा को पीछे धकेल कर जीत का सेहरा अपने सिर पर बांधना है।
कैथल जिले का पुंडरी एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां पिछले 23 साल से किसी पार्टी का कोई उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर पाया है। पुंडरी में 1996 से आज़ाद उम्मीदवार ही जीत का परचम फहराते रहे हैं। आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे दिनेश कौशिक ने यहां से 2005 और 2014 के चुनाव में जीत दर्ज की थी। भाजपा ने जब इस क्षेत्र से वेदपाल को उम्मीदवार घोषित कर दिया तो बिना देर किये कौशिक ने पार्टी को अलविदा कह दिया और एक बार फिर आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर लोगों के बीच आ गए।
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पानीपत जिले के समालखा क्षेत्र से पिछले चुनावों में आज़ाद
उम्मीदवार के तौर पर जीते रविंद्र मछरौली भी टिकट की खातिर भाजपा में शामिल
हुए थे। भाजपा ने जब पिछली बार हार गए शशिकांत कौशिक पर एक बार फिर दांव
लगाया तो मछरौली ने पार्टी छोड़ कर आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर ही चुनाव लड़ना
ठीक समझा। सफीदों क्षेत्र से पिछले चुनावों में जीते जसबीर देशवाल ने भी
चुनाव लड़ने के लिए भाजपा छोड़ दी है। देशवाल थोड़े अर्से पहले ही विधायक पद
से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा ने जब कांग्रेस से आये
पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य को टिकट दे दिया तो देशवाल फिर आज़ाद उम्मीदवार
के तौर पर किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतर गए।
मेवात के मुस्लिम
बहुल क्षेत्र पुन्हाना में भी ऐसा ही हुआ है। पिछले चुनावों में पुन्हाना
से रईस खान आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर जीते थे। भाजपा सरकार ने उन्हें
हरियाणा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन की जिम्मेदारी भी दी थी। टिकट की चाह में
रईस खान विधायक पद से इस्तीफा दे कर भाजपा में आ गए थे, लेकिन भाजपा
उम्मीदवारों की सूची में अपनी जगह महिला उम्मीदवार नौक्षम चौधरी का नाम
देखा तो उन्होंने फ़ौरन भाजपा छोड़ दी और एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार के
तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया।
इन चारों आज़ाद विधायकों को
विधानसभा में पहुंचने की इच्छा ही भाजपा में ले गई थी और जब इनमें से किसी
को भी टिकट नहीं मिला तो विधायक बनने की चाह ही इन्हें भाजपा से बाहर ले
आई। कभी इधर, कभी उधर होने वाले इन चारों आज़ाद विधायकों पर पुंडरी, समालखा,
सफीदों और पुन्हाना की जनता इस बार भी भरोसा जाहिर करेगी या नहीं, यह 24
अक्टूबर को साफ़ हो जाएगा।