नई दिल्ली। जेल की चार-दीवारी की ऊंचाई के अंदर मौजूद दमघोटू 'कोठरी' की कल्पना अच्छे-अच्छों को पसीना क्यों ला देती है? फिलहाल इस सवाल का सबसे माकूल जबाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम (P. Chidambaram ) से ज्यादा भला और कौन दे सकता है? वजह, कल तक जो चिदंबरम हिंदुस्तान के गृहमंत्री और वित्तमंत्री थे, वही आज तिहाड़ जेल के विचाराधीन कैदी नंबर 1449 हैं।
तिहाड़ की सात नंबर जेल की सूनी सी संकरी दमघोटू कोठरी (सेल) में पी. चिदंबरम को रखा गया है, अतीत में वही पी. चिदंबरम वित्त और गृहमंत्री रहते हुए इसी तिहाड़ जैसी देश की और न मालूम कितनी जेलों के इंतजामात के लिए बजट 'ओके' किया करते थे। यह अलग बात है कि, समय का पहिया घूमने पर चिदंबरम जेल पहुंचे, तो जेल में उनके हिसाब से आज कुछ भी 'ओके' नहीं है।
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जेल में पहली सुबह उन्हें उम्मीद रही थी कि नाश्ते में इडली,
वड़ा-डोसा मिलेगा, मगर परोसा गया तिहाड़ के रसोई (लंगर) में बना
दलिया-चाय-बिस्किट, जिसे देखकर उनका मन खिन्न हो गया। ना-पसंद
'ब्रेक-फास्ट' से उपजी झुंझलाहट, जेल की सलाखों के अंदर की मजबूरी के अहसास
ने मगर कुचल डाली।
जेल के बाहर तमाम उम्र नाश्ते में इडली, डोसा,
सांभर-वड़ा खाया था। सो अब अपने वकीलों के माध्यम से इडली-डोसा जेल में दिए
जाने या फिर घर से बना खाना मंगाने की इच्छा को अदालत तक ले गए। अदालत ने
कह दिया कि जेल के अंदर मैनुअल के हिसाब से ही सब कुछ होता है। जेल मैनुअल
में सुबह के नाश्ते में किसी भी कैदी को इडली, डोसा, वड़ा दिये जाने का कोई
प्रावधान नहीं है। आपको वही खाना होगा जो जेल की रसोई में बनेगा।
ऐसे
में एक ही रास्ता बचा, दाल-चावल-रोटी और एक सब्जी, दलिया-चाय-ब्रेड पकोड़ा
(जेल मैनुअल के हिसाब से डाइट) में से ही खाना होगा। सूत्रों के मुताबिक,
'उन्हें जेल की रोटी-सब्जी रोज-रोज खाने का ज्यादा शौक नहीं। ऐसे में
ज्यादातर दाल-चावल खाकर जेल का बुरा वक्त काटना हाल-फिलहाल तो मजबूरी ही
है।'
जेल सूत्रों के मुताबिक, जिन पी. चिदंबरम की कलम से
अरबों-खरबों के बजट 'पास' हुआ करते थे। वक्त ने पलटी मारी तो वही चिदंबरम
तिहाड़ जेल की कोठरी में 'पाई-पाई' को मोहताज हुए बताए जाते हैं।
इसके
पीछे तिहाड़ जेल के ही एक सूत्र ने नाम न खोलने की शर्त पर बताया कि जिस
दिन भी कोई विचाराधीन कैदी जेल की देहरी के भीतर पहुंचता है। उसी दिन या
फिर अगले दिन उसकी मर्जी से या जितनी उसकी सामथ्र्य-इच्छा हो, उसके हिसाब
से वक्त जरूरत के लिए उसके 'प्रिजनर वैलफेयर फंड' में कुछ रुपए परिजनों से
जमा करा लिए जाते हैं। इन रुपयों की अधिकतम सीमा एक सप्ताह में 1500 रुपए
होती है। महीने में इस फंड में अधिक से अधिक 6000 रुपए चार बार में जमा
कराए जा सकते हैं।
इसके बाद कैदी को, एक खास किस्म का एटीएम-कार्ड
(जिस पर कोई नंबर नहीं होता) जेल प्रशासन द्वारा मुहैया करा दिया जाता है।
यह एटीएम इसलिए सौंपा जाता है ताकि, कैदी के पास नकदी तो न रहे, मगर जेल
में रोजमर्रा के छोटे-मोटे खर्च पूरे होते रहें। विशेष किस्म का एटीएम
इसलिए दिया जाता है, क्योंकि किसी जमाने में नकदी को लेकर जेल में अक्सर
मारपीट तक की नौबत कैदियों के बीच आ जाती थी। कई मर्तबा ऐसी भी घटनाएं हुईं
जब कैदी जेल से निकलकर बाहर जाने वाले दिन एटीएम कार्ड जमा करके नकदी जेल
प्रशासन से लेता, तो वो उससे जेल की देहरी के भीतर ही छीन-झपट ली जाती थी।
(आईएएनएस)