हम श्रीकृष्ण का नाम लेते हैं और राधा का नाम भी जुडा रहता
है। भक्तों का मानना है कि श्रीकृष्ण को श्री राधे के नाम से सम्बोधित किया
जाता है। कई बार बोलते हैं कि राधे-राधे श्याम मिला दें। लोगों की
मान्यता है कि राधा नाम के उच्चारण से भगवान श्री कृष्ण की कृपा शीघ्र
प्राप्त होती है। आप कहीं भी मंदिरों में जाएंगेे तो वहां श्रीकृष्ण की
प्रतिमा के साथ राधाजी की प्रतिमा आप को मिलेगी। मथुरा,वृंदावन कहीं भी चले
जाइए, आपको दोनों की मूर्तियों साथ मिलेगी। मन में कई बार प्रश्न आता है
कि कृष्ण के मथुरा जाने के बाद राधा जी के साथ आखिर क्या हुआ?।
इसके
बारे में कई विद्वानों का मानना है कि कृष्ण से राधा को और राधा से कृष्ण
को कोई जुदा नहीं कर सकता, यह एक गहरा रिश्ता है। विद्वानों ने बताया कि यह
सवाल काफी गहरे हैं लेकिन उससे भी गहराई में जाने के बाद इन सवालों का सही
उत्तर सामने आया है। किवंदतियों में बताया गया है कि बड़े होकर कृष्ण ने
अपनी बांसुरी की मधुर स्वर से अनेक गोपियों का दिल जीता, लेकिन सबसे अधिक
यदि कोई उनकी बांसुरी से मोहित होता तो वह राधा थीं । परंतु राधा से कई
अधिक स्वयं कृष्ण, राधा के दीवाने बताए जाते हैं।
आपको बताते जाए
कि राधा, कृष्ण से उम्र में पांच वर्ष बड़ी थीं। वे वृंदावन से कुछ दूर
रेपल्ली नामक गांव में रहती थीं । वह कृष्ण की मधुर बांसुरी की ध्वनी से
खींची चली वृंदावन पहुंच जाती थी। कृष्ण भी राधा से मिलने वहां जाते थे।
कृष्ण के मामा कंस ने उन्हें और उनके दाऊ बलराम को मथुरा बुलाया। इधर
कान्हा के घर में मां यशोदा तो परेशान थी हीं लेकिन कृष्ण की गोपियां भी
कुछ कम उदास नहीं थीं। कृष्ण को राधा की चिंता सताने लगी, वे सोचने लगे कि
जाने से पहले एक बार राधा से मिल लें, इसलिए मौका पाकर वे राधा से मिलने
गए।
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राधा-कृष्ण के इस मिलन की कहानी अद्भुत बताई जाती है। इसके बाद माता-पिता के दबाव में आकर राधा को विवाह करना पड़ा, और विवाह के बाद अपना जीवन घर-गृहस्थी के नाम करना पड़ा। लेकिन दिल के किसी कोने में कृष्ण का ही नाम लेती थीं। जब राधा काफी वृद्ध हो गई थी। फिर एक रात वे चुपके से घर से निकल गई और घूमते-घूमते कृष्ण की द्वारिका नगरी में जा पहुंची। आखिरकार उन्होंने काफी सारे लोगों के बीच खड़े कृष्ण को खोज लिया। राधा को देखते ही कृष्ण के खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
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कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त कर दिया, वे दिन भर महल में रहती, महल से सम्बंधित कार्यों को देखती और जब भी मौका मिलता दूर से ही कृष्ण के दर्शन कर लेती। इसी दौरान राधा के मन में कृष्ण से दूर हो जाने का डर सताता रहता था, एक शाम वे महल से चुपके से निकल गई । अंतिम समय पर जब राधा को कृष्ण की आवश्यकता पड़ी, वह अकेली थी और बस किसी भी तरह से कृष्ण को देखना चाहती थी। यह तमन्ना उत्पन्न होते ही कृष्ण उनके सामने आ गए। कृष्ण को सामने देख राधा काफी प्रसन्न हो गई।
दूसरी ओर, राधा का अंतिम समय भी नजदीक आ गया। कृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांगे लेकिन राधा ने मना कर दिया। फिर राधा ने एक ही मांग की कि आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी। कृष्ण ने बांसुरी ली और बजाने लगे , बांसुरी सुनते-सुनते राधा ने अपना शरीर त्याग दिया और दुनिया से चली गई। उनके जाने के बाद कृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी ।
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