सत्येंद्र शुक्ला
जयपुर । राजस्थान में इस साल भी इंजीनियरिंग शिक्षा का बंटाधार हो गया है । रीप-2019 के जरिये प्रदेश के सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन इस साल भी 22 हजार से अधिक सीटें निजी और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों की खाली रह गई है।
राजस्थान इंजीनियरिंग कॉलेजेज सोसायटी के सचिव श्रीधर सिंह ने बताया कि इस वर्ष रीप-2019 के जरिये कुल 13 हजार 500 ही प्रवेश हुए है, जबकि सीटों की संख्या 36,000 थी। उन्होंने आरोप लगाया कि रीप कन्वीनर संदीप कुमार की हठधर्मिता की वजह से नेपाल के छात्र-छात्राओं का प्रवेश इस साल प्रदेश के निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में नहीं हो सका। साथ ही 12वीं में मैथ्स और फिजिक्स के साथ कंप्यूटर साइंस लेने वाले छात्र-छात्राओं को भी इंजीनियरिंग में प्रवेश नहीं मिल सका। उन्होंने यह भी बताया कि इस साल रीप कन्वीनर और उनकी टीम का सहयोग नहीं मिलने की वजह से छात्र-छात्राओं के प्रवेश कम हुए है।
वहीं रीप कन्वीनर संदीप कुमार से प्रवेश प्रक्रिया के बारे में खास खबर डॉट कॉम ने सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा कि अभी तक इंजीनियरिंग कॉलेजों से डॉटा नहीं मिला है। इसके चलते उन्होंने यह नहीं बताया कि कितने प्रवेश इस साल सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में हुए है।आपको बता दे कि प्रदेश में 14 सरकारी क्षेत्र के इंजीनियरिंग कॉलेज है, जबकि निजी क्षेत्र के इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या अब 89 ही रह गई है।
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वहीं शिक्षण सत्र 2018-2019 में प्रदेश के निजी और सरकारी इंजीनियरिंग
कॉलेजों में रीप (REAP )-2018 के जरिये कुल 39 हजार 127 सीटों पर
छात्र-छात्राओं का प्रवेश होना था, रीप के जरिये प्रदेश के कुल 120
इंजीनियरिंग कॉलेजों में सिर्फ 11 हजार 858 छात्र-छात्राओं ने ही
इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए आवेदन किया था, जबकि सीटों की संख्या 39
हजार 127 थी।
वहीं आपको बता दे कि वर्ष 2017-2018 में रीप
के जरिये निजी क्षेत्र के इंजीनियरिंग कॉलेजों की कुल 43 हजार 446 सीटें
भरी जानी थी, लेकिन 15 अगस्त 2017 तक सिर्फ 13 हजार 864 सीटों पर ही
छात्र-छात्राओं ने प्रवेश लिया था। इसके चलते कुल 29 हजार 612 सीटें निजी
इंजीनियरिंग कॉलेजों की खाली रह गई है।
इससे पहले वर्ष
2016-2017 में कुल 52 हजार 768 सीटें थी, इस दौरान सिर्फ 20420 सीटों पर
प्रवेश हुआ था। इसी तरह वर्ष 2015-2016 में कुल 57 हजार 686 सीटें थी और
आधी से भी कम यानी कि 25 हजार 804 सीटों पर प्रवेश हुआ था।