Shravana Putrada Ekadashi : आज है श्रावण पुत्रदा एकादशी, व्रत रखने से भर जाती है सूनी गोद

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 11 अगस्त 2019, 11:26 AM (IST)

हिंदू धर्म में श्रावण पुत्रदा एकादशी (Shravana Putrada Ekadashi) का विशेष महत्‍व है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि जो व्यक्ति श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है उसे वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि पुत्र प्राप्ति की चाह रखने वाले दंपत्ति मिलकर एकादशी का व्रत रखते हैं।

कब है श्रावण पुत्रदा एकादशी...

हिन्‍दू कैलेंडर के मुताबिक पौष शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी (Sharavana Putrada Ekadashi) कहते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह एकादशी हर साल सावन के दौरान अगस्‍त महीने में आती है। इस बार पुत्रदा एकादशी 11 अगस्‍त आज है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्व...

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श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्व...
आमतौर पर एकादशी तिथि हर महीने पड़ती है लेकिन इनमें से श्रावण पुत्रदा एकादशी का सबसे अधिक महत्व है। हिंदू धर्म में इस एकादशी को बेहद खास माना जाता है। मान्यता है कि श्रावण पुत्रदा एकादशी का उपवास रखकर जो दंपत्ति पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा...
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महिष्मतीपुरी के राजा महीजित को कोई संतान नहीं थी। तब महामुनि लोमेश ने बताया कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का उपवास रखने से राजा को पुत्र की प्राप्ति हो सकती है। राजा ने व्रत रखकर भगवान की आराधना की और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से इसे श्रावण पुत्रदा एकादशी के रुप में मनाया जाता है। पुत्र की कामना रखने वाले ज्यादातर लोग श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखकर पूरी श्रद्धा से भगवान की आराधना करते हैं और घर के चिराग की कामना करते हैं।

पूजा व्रत विधि...
- एकादशी के दिन सुबह उठकर भगवान विष्‍णु का स्‍मरण करें।
- फिर स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें।
- घर के मंदिर में श्री हरि विष्‍णु की मूर्ति या फोटो के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्‍प लें।
- भगवान विष्‍णु की प्रतिमा या फोटो को स्‍नान कराएं और वस्‍त्र पहनाएं।
- भगवान विष्‍णु को फलों का भोग लगाएं। पूजा में तुलसी, मौसमी और तिल का प्रयोग करें।
- इसके बाद श्री हरि विष्‍णु को धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा-अर्चना करें और आरती उतारें।
- पूरे दिन निराहार रहें। शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें।
- रात्रि के समय जागरण करते हुए भजन-कीर्तन करें।
- अगले दिन यानी कि द्वादश को ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और यथा सामर्थ्‍य दान दें।
- अंत में खुद भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें।

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