Chandrayaan 2 : साइकिल और बैलगाड़ी से यात्रा, अंतरिक्ष में ऐसा रहा भारत का सफर

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 14 जुलाई 2019, 6:42 PM (IST)

नई दिल्ली। मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan 2) का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। भारत अंतरिक्ष के इतिहास में एक नया सवेरा लेकर आने वाला है। भारत का चंद्रयान-2 अपने मिशन पर रवाना होगा। ISRO चंद्रयान-2 15 जुलाई तड़के 2.51 बजे लॉन्च होगा। इसे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से GSLV MKIII लॉन्च पैड के जरिए लॉन्च किया जाएगा।

इसके 6 सितंबर को चांद की सतह पर उतरने का अनुमान है। चंद्रयान-2 की कामयाबी के बाद भारत अंतरिक्ष का सुपरवार बन जाएगा। वैज्ञानिक लगातार इस मिशन को सफल बनाने के लिए काम कर रहे हैं। भारत के इस मिशन पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई है।

अभी तक केवल चार देश अमेरिका, रूस, चीन और जापान चंद्रमा पर अपना अंतरिक्ष यान भेज चुके हैं और इनमें से केवल अमेरिका ने चांद पर मानवयुक्त मिशन भेजने में कामयाबी पाई है।

2008 में भारत ने चंद्रयान-1 को चंद्रमा पर भेजा...

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2008 में भारत ने चंद्रयान-1 को चंद्रमा पर भेजा...
भारत ने 2008 में अपने चंद्रयान-1 को चंद्रमा पर भेजा था लेकिन यह चंद्रमा की सतह पर नहीं उतरा था। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की दूरी से उसका चक्कर लगाया था। अपने इस मिशन के दौरान चंद्रयान ने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की खोज की।

चंद्रयान-1 की सफलता ने चंद्रयान-2 मिशन का रास्ता आसान किया। इस मिशन की कामयाबी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों के दिन-रात की मेहनत का परिणाम होगी। इसरो लंबे समय से इस मिशन के लिए काम करता रहा है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता के एक-एक कदम बढ़ाते हुए इसरो ने इतिहास रचा है। एक समय ऐसा भी था जब भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर दुनिया शक की नजरों से देखती थी। आइए भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर एक नजर डालते हैं।

बैलगाड़ी से शुरू हुई थी यात्रा...

बैलगाड़ी से शुरू हुई थी यात्रा...
साल 1969 में इसरो की स्थापना वैज्ञानिक साराभाई ने की। भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत बेहद सीमित संसाधनों के जरिए की। दुनिया के अन्य देशों की तरह इसरो के वैज्ञानिकों के पास सुविधाएं नहीं थीं। पहले राकेट को साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल तक लाया गया था। जबकि एक रॉकेट को बैलगाड़ी से लॉन्चिंग पैड तक पहुंचाया गया था। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि बैलगाड़ी और साइकिल से शुरू होने वाला भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक दिन मंगलयान और चंद्रयान तक पहुंच जाएगा।

चर्च में बैठकें करते थे वैज्ञानिक ...

चर्च में बैठकें करते थे वैज्ञानिक ...
शुरुआत में अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिकों के पास अपना कोई कार्यालय नहीं था। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के वैज्ञानिक केरल के तिरूवनंतपुरम स्थित एक चर्च में अपनी बैठकें करते थें और अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर अपनी चर्चा करते थे। शुरुआत में यही चर्च भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का कार्यालय हुआ करता था। इस चर्च का नाम सैंट मैरी मैगडेलीन है। यह चर्च आज भी मौजूद है। इसे आज अंतरिक्ष संग्रहालय का रूप दिया गया है।

भारत ने
1963 में छोड़ा अपना पहला रॉकेट...

भारत ने 1963 में छोड़ा अपना पहला रॉकेट...
भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम की शुरुआत वैज्ञानिक एसके मित्रा, सीवी रमन और मेघनाद साहा के नेतृत्व में वैसे तो 1920 में शुरू हो गई थी लेकिन अंतरिक्ष से जुड़ी गतिविधियां 1940 और 50 में जोर पकड़ीं। डॉ. विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है।

आधिकारिक रूप से साल 1962 से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास की शुरुआत मानी जाती है। विक्रम साराभाई के नेतृत्व में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन हुआ और साल 1963 में भारत ने अपना पहला रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा।

इस रॉकेट को केरल के थुम्बा रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से प्रेक्षिपित किया गया। इसकी लॉन्चिंग के साथ ही भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई।

अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्पूर्ण पड़ाव...

अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्पूर्ण पड़ाव...
अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर अनुसंधान के लिए एक जनवरी 1965 को थुम्बा में अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र (एसएसटीसी) की स्थापना हुई। इसके बाद जनवरी 1967 में अहमदाबाद में सैटेलाइट टेलिकम्यूनिकेशन अर्थ स्टेशन बनाया गया। इसके अगले साल 1968 में अहमदाबाद में ही एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट कम्यूनिकेशन अर्थ स्टेशन का गठन हुआ और 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अस्तित्व में आया और यहां से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने अपनी गति पकड़ी।

भारत ने 1975 में छोड़ा अपना पहला उपग्रह...

भारत ने 1975 में छोड़ा अपना पहला उपग्रह...
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में 1971 में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की स्थापना हुई। 1972 में अंतरिक्ष विभाग को इसरो के अधीन लाया गया और 19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपने पहले उपग्रह आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में छोड़ा। इस उपग्रह को देश में ही तैयार किया गया था और इसे रूस के अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा गया था। भारत ने 1979 में स्वदेश निर्मित अपना पहला एक्सपेरिमेंटल रिमोट सेंसिंग उपग्रह भास्कर-1 नाम से लॉन्च किया।

1980 में एसएलवी-3 हुआ लॉन्च...

1980 में एसएलवी-3 हुआ लॉन्च...
इसरो ने अपना पहला एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट वेहिकल लॉन्च किया। इसके साथ ही अंतरिक्ष कार्यक्रम में कदम रखने वाला भारत दुनिया का छठवां देश बन गया। एसएलवी-3 से रोहिणी को सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया। साल 1982 में संचार उपग्रह इनसैट-1ए की लॉन्चिंग हुई।

1984 में अंतरिक्ष में राकेश शर्मा...

साल 1984 में भारत और रूस ने संयुक्त रूप से मानवयुक्तअंतरिक्ष मिशन की शुरुआत की। इस मिशन के तहत राकेश शर्मा भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री बने। शर्मा रूसी अंतरिक्ष स्टेशन सोल्युट 7 में आठ दिनों तक रहे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है तो उन्होंने जवाब दिया-सारे जहां से अच्छा...।

पीएसएलवी ने अंतरिक्ष की दुनिया में ताकत बढ़ाई...

साल 1990 के दशक में भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रम की दिशा में अहम कामयाबी हासिल की। इसरो ने अपने अनुसंधान एवं कार्यक्रमों के जरिए अपनी विश्वसनीयता मजबूत कर ली। 1993 में पीएसएलवी ने अपने पहले मिशन की शुरुआत की और इसके अगले साल इस मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया। इसके अगले 20 सालों तक पीएसएलवी ने सफलता के नित-नए रिकॉर्ड कायम किए। पीएसएलवी ने भारत के महात्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-1 और मंगलयान को अंजाम दिया। 1999 में पीएसएलवी ने विदेशी उपग्रहो को अंतरिक्ष में भेजने का काम शुरू किया।

जीएसएलवी और चंद्रयान-1 की कामयाबी...

21वीं सदी में इसरो ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नया आयाम और उसे नई ऊंचाई दी है। 2001 में जीएसएलवी सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ। 2002 में कल्पना, 2003 में जीसैट-2, 2004 में एजुसैट, 2005 में कार्टोसैट-1, 2007 में कार्टोसैट-2 की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग हुई। पीएसएलवी से ही 2008 में भारत के मिशन चंद्रयान-1 को लॉन्च किया गया। यह चंदमा के लिए भारत का पहला मानवरहित मिशन था। चंद्रयान मिशन की कामयाबी के साथ भारत उन छह अंतरिक्ष एजेंसियों के एलीट क्लब में शामिल हो गया जो चंद्रमा पर ऑर्बिटर भेजने की क्षमता रखती हैं।

मंगलयान मिशन से एक और छलांग...

अंतरिक्ष की दुनिया में इसरो ने अपने मंगलयान से एक बड़ी छलांग लगाई। इसे मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) के नाम से जाना जाता है। मंगलयान को 5 नवंबर 2013 को पीएसएलवी-सी 25 से अंतरिक्ष मे छोड़ा गया था। मंगलयान 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंच गया। इसरो की मंगलयान की कामयाबी ने दुनिया को दंग कर दिया। भारत अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की कक्षा में अंतरिक्षयान भेजने वाला दुनिया का पहला देश बन गया।