नई दिल्ली। कारगिल के युद्ध के समय पाकिस्तान में उच्चायुक्त रहे पूर्व राजनयिक पार्थसारथी ने कहा कि 20 साल पहले कारगिल संघर्ष में भारत ने पाकिस्तान को यह एहसास कराया था कि भले ही वह अपनी नियमित सेना को नियंत्रण रेखा के पार भेजे लेकिन वे हार जाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि और अब पुलवामा हमले के पहले और बाद की गईं सर्जिकल स्ट्राइक ने इस्लामाबाद को यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर भारत को उकसाया गया तो वह सीमा परा कर हमला करने से भी नहीं हिचकेगा।
आईएएनएस से बात करते हुए, पार्थसारथी ने कहा कि 1972 का शिमला समझौता नियंत्रण रेखा की 'पवित्रता पर आधारित' है, और यदि पाकिस्तान इसका उल्लंघन करता है, तो वे कार्रवाई के परिणामों का सामना करेंगे।
संघर्ष के समय अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका के बारे में बोलते हुए, पूर्व राजनयिक ने कहा कि कारगिल युद्ध को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में 'चिंता उचित मात्रा में थी', लेकिन सभी मौसमों में पाकिस्तान का सहयोगी रहा चीन भी इस बाबत कुछ नहीं बोल सका।
पूर्व राजनयिक ने कहा, "मैं स्पष्ट रूप से कहूंगा कि उनके (पाकिस्तान के) साथ चीनी सहयोग, विशेष रूप से सैन्य रूप से, कारगिल के बाद से जारी रहा, परंतु कारगिल पर ही चीन ने कोई टिप्पणी नहीं की थी।"
पार्थसारथी के अनुसार, पिछले कुछ वर्षो में भी पाकिस्तान सेना का रवैया नहीं बदला है। उन्होंने कहा, "मैं उन्हें जानते हुए यह कह सकता हूं कि वे एक और दुस्साहस की कोशिश करेंगे।"
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पार्थसारथी ने कहा, "सुझाव के रूप में अभी तक कुछ भी नहीं है और
कुछ भी नहीं बदला गया है। मुझे नहीं लगता कि व्यक्तिगत घटनाएं इस
(पाकिस्तान सेना) में बदलाव लाएंगी।"
उन्होंने कहा, "उनकी
महत्वाकांक्षाएं और भावनाएं 1971 के बांग्लादेश युद्ध की हार और कारगिल
घुसपैठ की उनकी विफलता के रूप में सामने आती हैं, जिसने दोनों ही मामलों
में उन्हें अपने लोगों और दुनिया की नजर में कम कर दिया है।"
वर्तमान
इमरान खान सरकार के बारे में बोलते हुए, पार्थसारथी ने कहा कि यह
पाकिस्तान के भीतर 'एक चयनित सरकार है न की एक चुनी हुई सरकार। उन्होंने
कहा कि इसे सेना द्वारा देश पर शासन करने के लिए चुना गया है।
--आईएएनएस