बूंदी में देखे गए सफेद पीठ वाले गिद्ध

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 11 जून 2019, 11:54 AM (IST)

बूंदी। जिले के गरड़दा वनखंड में लुप्तप्राय प्रजाति के सफेद पीठ वाले ‘जटायू‘ (गिद्ध) देखे गए है। जिले के जंगलों में दुर्लभ हुए इन पक्षियों के नजर आने से वन्यजीव प्रेमियों ने खुशी जाहिर करतें हुए हाड़ौती में गिद्धों के संरक्षण की प्रभावी कार्ययोजना बनाने की मांग की है।
जिले की समृद्ध जैव-विविधता एवं सघन वन क्षेत्र होने से बूंदी में गिद्धों की कुछ प्रजातियां विपरीत परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करने में सफल रही है। जिले में भारतीय गिद्ध, व इजिप्शियन प्रजाति के गिद्ध तो कभी-कभी दिख जाते थे लेकिन सफेद पीठ या व्हाइट रम्प्ड वल्चर विगत एक दशक से लुप्त हो गए थे। सोमवार को गरड़दा क्षेत्र के फाटी शिला वन खंड में लगभग 50 गिद्धों का समूह नजर आया जिसमें एक दर्जन सफेद पीठ के गिद्ध भी शमिल है।

गिद्धों के लिए उपयुक्त वातावरण एवं पर्याप्त जल स्रोतों से युक्त सघन वन क्षेत्र फाटी शिला को गिद्ध संरक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जाए तो इन लुप्त होते दुर्लभ जीवों को बचाया जा सकता है।

देखते-देखते लुप्त हो गए गिद्ध

बूंदी सहित पूरे राजस्थान में लगभग 20 साल पहले तक बड़े आकार वाले ये पक्षी क्या गांव और क्या शहर लगभग हर जगह पाए जाते थे। तब ये पेड़ों पर, बिजली के खंभों पर, पहाड़ियों पर यहां तक कि घरों की छत पर भी दिख जाते थे। सड़क किनारे किसी मृत जानवर की लाश को घेरे गिद्धों का झुंड या फिर आसमान में गोल-गोल चक्कर काटते गिद्धों का समूह दिखना एक आम बात थी। लेकिन अचानक से ये पक्षी गायब होने लगे और कुछ पहाड़ी कंदराओं तक सिमट कर अपनी प्रजाती का अस्तित्व बचाने में कामयाम रहे। लेकिन जंगलों में भी अब वन्यजीवों के समप्त होने से ये पक्षी भूख-प्यास से दम तोड़ने लगे है जो एक चिंतनीय पहलू है। यदि समय रहते इनके संरक्षण के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो वो दिन दूर नहीं जब केवल ये पक्षी चित्रों में ही देखने को मिलेंगे।

रामगढ़ व भीमलत से बनाई दूरी

जिले के रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य व भीमलत वन क्षेत्र में भी गिद्धों की बस्तियां थी जो विगत एक दशक से उजड़ चुकी है। जिले के तलवास क्षेत्र से भी गिद्ध पलायन कर गए है। भीमलत के नाले में बड़ी संख्या में मृत गिद्धों के अवशेष मिले है जिससे आशंका जताई जा रही है कि भूख के कारण इनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।

बूंदी जिले के जंगलों में विगत एक दशक तक गिद्धों की सभी प्रजातियां मौजूद थी लेकिन गिद्ध संरक्षण के लिए बनी योजनाओं पर जिले में कोई काम नहीं हुआ। अभी भी बरड़ क्षेत्र में इनकी तीन-चार प्रजातियां बची हुई हैं जिनके लिए कार्य योजना बनाई जानी चाहिए।

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