गया। बिहार के गया (सुरक्षित) लोकसभा सीट पर पिछले कई चुनावों में राजनीतिक दलों की मझधार में फंसी नाव को मांझी ही किनारे लगाते रहे हैं। इस लोकसभा चुनाव में भी सभी प्रमुख राजनीतिक दल मांझी के सहारे ही भंवर में फंसी नाव को मझधार से निकालने में जुटे हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने इस चुनाव में निवर्तमान सांसद हरि मांझी का टिकट काटकर राजग में शामिल जनता दल (युनाइटेड) के विजय कुमार मांझी को मांझी बनाकर गया के चुनावी मझधार में उतारा है, जबकि विपक्षी दल के महागठबंधन ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को चुनावी भंवर में उतारा है।
यूं तो गया संसदीय क्षेत्र में कुल 13 प्रत्याशी चुनावी मझधार में फंसे हैं, लेकिन मतदाता किस नेता की नैया पार कराएंगे, यह स्पष्ट नजर नहीं आ रहा है। हां, मतदाताओं के बातचीत से यह जरूर नजर आता है कि गया में कोई मांझी ही अपनी नाव को सकुशल चुनावी भंवर से निकाल पाएगा। यहां मुख्य मुकाबला राजग और महागठबंधन के बीच ही माना जा रहा है। ज्ञान स्थली और मोक्ष भूमि माने जाने वाले गया में वैसे तो कई समस्याएं हैं, लेकिन देश और विदेश के पर्यटकों से भरे रहने वाले इस क्षेत्र की पहचान बिहार में ही नहीं, बल्कि देश के प्रमुख पर्यटनस्थलों में की जाती है।
गया सुरक्षित संसदीय क्षेत्र बिहार के सबसे अधिक दलित जनसंख्या वाला क्षेत्र है। इस संसदीय क्षेत्र में शेरघाटी, बाराचट्टी, बोधगया, गया टाउन, बेलागंज तथा वजीरगंज विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों से परिपूर्ण गया संसदीय क्षेत्र में वर्ष 2009 और 2014 में हुए चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार हरि मांझी यहां से सांसद चुने गए थे। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में हरि मांझी को 3,26,230 वोट (मत) मिले थे, वहीं दूसरे नंबर पर रहे रामजी मांझी को 2,10,726 वोट मिले थे।
तीसरे नंबर पर जीतन राम मांझी रहे जो जद (यू) के टिकट पर चुनावी मैदान में थे। जीतन राम मांझी को 1,31,828 वोट से ही संतोष करना पड़ा था। गया का बोधगया आज दुनियाभर के बौद्धों का सबसे पवित्र स्थान है। गया सीट पर विजय प्राप्त करने के लिए सभी दलों के उम्मीदवार एड़ी-चोटी का प्रयास कर रहे हैं, यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारक गया की धरती पर आ रहे हैं।
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राजग के स्टार प्रचारक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार में अपने
चुनावी अभियान की शुरुआत करने के लिए मंगलवार को यहां पहुंचेंगे। स्थानीय
नेता और प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने के प्रयास में लगे हुए हैं, लेकिन
मतदाताओं की चुप्पी सभी उम्मीदवारों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। गया
के वरिष्ठ पत्रकार बिमलेंदु कहते हैं कि वर्ष 1996 से इस क्षेत्र में छह
बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें चार बार भाजपा के उम्मीदवार जीते हैं।
भाजपा की परंपरागत सीट माने जाने वाली इस सीट के जद (यू) के खाते में चले
जाने से भाजपा के कई कार्यकर्ता नाराज जरूर हैं, मगर पार्टी के फैसले को
लेकर सभी जद (यू) के उम्मीदवार को विजयी बनाने की बात कर रहे हैं। उन्होंने
कहा कि इस क्षेत्र में मुख्य समस्या किसानों के लिए सिंचाई और नक्सलवाद
रही है। उन्होंने बताया, गया लोकसभा में मांझी समाज की संख्या ढाई लाख है
जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की कुल जनसंख्या पांच लाख है।
इसके
अलावा अन्य जातियों के भी मत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि दोनों गठबंधन
में मुकाबला कांटे का है। कोई जीते और कोई हारे परंतु अंतर काफी कम होगा।
बाराचट्टी के रहने वाले युवा मतदाता अनुभव मांझी कहते हैं, चुनाव के दौरान
तो सभी नेता वोट मांगने आते हैं, लेकिन यह चुनाव देश की सुरक्षा और
प्रधानमंत्री पद के लिए है।
ऐसे में जाति नहीं, प्रधानमंत्री उम्मीदवार को
देखने की जरूरत है। शेरघाटी के एक बुजुर्ग शिवलाल पासवान विकास को लेकर
नाराज हैं। उन्होंने गांवों की हालत बताते हुए कहा कि क्या यही विकास है?
बिहार में लोकसभा चुनाव के सभी सात चरणों में मतदान होना है। गया में पहले
चरण में 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे।
(IANS)