'कैसा भी संक्रमण, अब 24 घंटे में पकड़ में आ जाएगा'

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 01 अप्रैल 2019, 5:42 PM (IST)

जयपुर। आईसीयू में जीवन-मृत्यु से संघर्ष करने वाले गंभीर मरीजों में संक्रमण बड़ा खतरा है। मगर अब कैसा भी संक्रमण हो उसका पता मात्र 24 घंटे में चल जाएगा। इसके लिए माल्डीटॉफ जांच तकनीक आ गई है। क्रिटीकल केयर पर जयपुर में चल रही इंटरनेशनल कॉफ्रेंस में विशेषज्ञों ने बताया कि अभी तक जांच के बाद भी चार-पांच दिन तक रिपोर्ट नहीं मिल पाती और संक्रमण का पता नहीं चल पाने से उसका असर रोगी के शरीर में गंभीर रूप से फैल जाता था।
दो दिवसीय इटरनल क्रिटिकॉन-2019 कॉफ्रेंस का आयोजन यहां ईएचसीसी हॉस्पिटल में किया जा रहा है। कॉफ्रेंस के अंतिम दिन संक्रमण की रोकथाम पर सत्र हुए।
हिंदुजा हॉस्पिटल मुंबई के डॉ.अशित हेगड़े ने बताया कि आईसीयू मरीजों में सेप्टीसीमिया, निमोनिया और अन्य कई तरह के बेक्टीरियल संक्रमण का खतरा ज्यादा हो जाता है। ऐसे में सुपर बग संक्रमण समय पर पकड़ में नहीं आए तो मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। माल्डीटॉफ तकनीक में खून, मूत्र के अलावा अन्य अंगों से सैंपल लेकर विशेष जांच की जाती है और महज 20 से 24 घंटे में ही संक्रमण की वास्तविक स्थिति सामने आ जाती है।
कॉफ्रेंस के संरक्षक डॉ. राजीव गुप्ता और चेयरमैन डॉ.आर.एस.खेदड़ ने बताया कि दो दिन के कार्यक्रम में क्रिटिकल केयर की अत्याधुनिक तकनीकों के साथ-साथ आईसीयू और वेंटीलेटर मैनेजमेंट तथा इन्फेक्शन कंट्रोल पर खास सत्र हुए।
कॉफ्रेंस के आयोजन सचिव डॉ. वैभव भार्गव व डॉ. किशोर मंगल ने बताया कि इस दौरान लाइव वर्कशॉप में डमी पर आईसीयू मैनेजमेंट की नई तकनीकों की जानकारी दी गई। वहीं गंभीर रोगियों में बिना कट के गले में नली डालने (ट्रकियोस्टॉमी) का प्रदर्शन किया गया।
कार्यक्रम में इटर्नल हॉस्पिटल की को-चेयरपर्सन मंजू शर्मा ने कहा कि यह कॉफ्रेंस क्रिटिकल केयर में कार्यरत नए डॉक्टरों के लिए मील का पत्थर साबित होगी। सीओओ डॉ. तेज कुमार शर्मा ने कहा कि यह गर्व की बात है कि जेसीआई से एप्रूव्ड विश्वस्तरीय सुविधा वाले इटर्नल हॉस्पिटल को यह कार्यक्रम करने का मौका मिला है।

अब बैड पर ही हो सकेगा अल्ट्रासाउंड

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अब बैड पर ही हो सकेगा अल्ट्रासाउंड
मेदांता मेडिसिटी गुडगांव के डॉ.दीपक गोविल ने बताया कि आईसीयू में वेंटीलर वाले मरीज का भी अब बैड पर ही विशेष मशीन से अल्ट्रासाउंड किया जा सकेगा। इससे लंग संक्रमण, पेट में ब्लीडिंग आदि और संक्रमण का पता चल सकेगा। वहीं फ्रांस के प्रो. जीन लुईस टेबुअल ने कार्डियक आउटपुट मॉनीटरिंग के बारे में बताया कि हार्ट कितना पंप कर रहा है, इसकी माप के आधार पर ही दवाइयां तय की जाती हैं।