किंवदंती है कि माताजी अपने भक्तों
के बारे में जानने के लिए निकली थी। वे राजस्थान के डूंगरी गांव में
गलियों में घूम रही थीं। इसी दौरान किसी ने माताजी के ऊपर चावल का गर्म
मांड फेंक दिया। माता के शरीर पर गर्म मांड से फफोले पड़ गए। दर्द से आहत
माता ने लाेगों से पुकार लगाई, मगर किसी ने मदद नहीं की। इसी दरम्यान एक
कुम्हारन ने माताजी के ऊपर ठंडा पानी डाला। इससे उनको पीड़ा में आराम मिला।
उन्होंने माताजी को खाने के लिए बासी राबडी़ और दही दिया। माताजी के शरीर
को ठण्डक मिलने से माता प्रसन्न हो गई। कुम्हारन महिला ने माता के बिखरे
बाल देखकर उनकी चोटी गूंथने की इच्छा जताई। जब वो चाेटी बना रही थी तो उसे
माता जी के बालों में छिपी आंख नजर आई। यह देख वह डर गई। कुम्हार महिला को
डरा देखकर माता अपने असली रूप में उसे नजर आईं। कुम्हारन महिला की मनुहार
पर माताजी ने उसी गांव में रहना स्वीकार कर लिया और उसे अपनी पूजा का
अधिकार भी दिया। तब से आज तक उस गांव का नाम शील की डूंगरी के नाम से
विख्यात है। यहां हर साल शीतला माता का मेला भरता है। शीतला माता की सवारी
भी गधा है। गधा पहले अधिकतर कुम्हारों के पास ही हुआ करता था। माताजी तब से
गधे पर सवार रहती हैं और उनके हाथ में झाडू है।
इसलिए लगाते हैं ठंडे पकवानों का भोग
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इसलिए लगाते हैं ठंडे पकवानों का भोग
शीतलाष्टमी
को बास्योड़ा भी
कहते हैं। इन दोनों शब्दों से प्रतीत होता है ठंडा या बासा। होली के बाद
मौसम में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है। तापमान में धीरे-धीरे बढा़ेतरी
होती जाती है। बास्योड़ा मूलतः इसी अवधारणा से जुड़ा पर्व है। इस दिन ठंडे
पकवान खाए जाते हैं। इस दिन के बाद ठंडा-बासा खाना सेहत बिगाड़ सकता है।
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शीतलाष्टमी के बाद से छाछ, दही का सेवन शुरू कर देना चाहिए। ताकि गर्मी - लू से बचाव हो सके। अब गर्मी बढ़ती जाएगी, ठंडा बासा खाने का सेवन करने से तबीयत खराब हो जाएगी। इसलिए बास्योड़ा के बाद गर्मी के कारण बासा खाना दूषित हो जाता है। जिससे सेहत बिगड़ सकती है। गधे पर सवार माता जी के हाथ झाडू भी साफ-सफाई रखने का संदेश देती है।
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