राष्ट्रपति कोविंद ने डॉ. ओमेश भारती को पदमश्री पुरूस्कार प्रदान किया

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 19 मार्च 2019, 4:35 PM (IST)

धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश के जाने माने चिकित्सक डॉ. ओमेश भारती को मंगलवार को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने एक सादे समारोह में पदमश्री पुरूस्कार प्रदान किया। हालही में इसके लिए उनका चयन हुआ था। चिकित्सा क्षेत्र में अपने योगदान के लिये पदमश्री पुरूस्कार पाने वाले डाक्टर ओमेश भारती प्रदेश के जिला कांगड़ा से ताल्लुक रखते हैं, इन दिनों शिमला के रिपन अस्पताल में तैनात हैं।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने ओमेश भारती को बधाई दी है। अपने बधाई संदेश में सीएम ने कहा कि आपके रेबिज रोकथाम के लिए किये गये अति सराहनीय प्रयासों ने प्रदेश का नाम देश विदेश में गौरवान्वित किया है। इससे पहले विशव स्वास्थय संगठन भी रेबिज की रोक के लिये उनकी ओर से की गई सस्ती दवा की खोज के लिये मान्यता दे चुका है। उन्होंने 17 साल के अपने लंबे अनुसंधान के बाद रेबिज के शिकार लोगों के लिये सस्ता ईलाज संभव करवा कर चिकित्सा क्षेत्र में एक नई क्रांति ला दी है। यह उनके अनुसंधान का ही कमाल है कि अब पूरे रेबिज के शिकार लोगों के लिये ईलाज सस्ता हो सकेगा। हालांकि इससे पहले रेबिज का ईलाज आसान नहीं था।

बकौल उनके पूरे विश्व में प्रत्येक वर्ष रेबीज़ से 59,000 लोगों की मौत हो जाती है। वहीं भारत में 20,000 लोग रेबीज़ से अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं । डॉ भारती के अनुसार, किसी जानवर के काटने पर पीडि़त व्यक्ति का समय रहते इलाज न हो और अगर वह रेबीज़ का शिकार हो जाए तो उसकी दर्दनाक मृत्यु हो जाती है। वह बताते हैं कि इसमें न व्यक्ति जीता है और न ही मरता है। इससे पीड़ित मरीजों की मौत उन्हें सौ बार फांसी देने के बराबर है। उनकी मौत का कारण अक्सर समय रहते जानवर के काटने पर इलाज ना कराना होता है। पागल जानवर के काटने का इलाज, इससे पहले बहुत महँगा पड़ता था, और हर इंसान इसका इलाज कराने की क्षमता नहीं रखता है। आपको बता दें कि किसी पागल जानवर के काटने पर रेबीज का सिर्फ रोकथाम हो सकता है। चिकित्सा जगत में रेबीज का आज भी कोई इलाज नहीं है।

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क्यूं होता है रेबीज का निवारण महंगा
अगर किसी व्यक्ति को पागल कुत्ता या अन्य जानवर काट देता है तो उस मरीज़ को दो तरह के इंजेक्शन लगते हैं। एक वैक्सीन और दूसरा सीरम। पहले वैक्सीन नहीं मिलती थी तो इस वजह से लोग मर जाते थे । इसके लिए वैक्सीन को सस्ता किया गया। फिर ये देखा गया कि मरीज़ वैक्सीन तो लगा रहें हैं पर सीरम के इंजेक्शन नहीं लगा रहें हैं। सीरम घोड़े अथवा इन्सान के खून से बनता है और इसको बनाने की प्रक्रिया भी बहुत जटिल होती है, जिसके चलते इसका मूल्य 30,000 रूपये से रूपये 35,000 तक पहुंच जाता है।

महंगा होने के कारण कुछ चुनिंदा अस्पताल ही इसे आवश्यक मात्रा में खऱीद पाते थे। कई बार एक ही मरीज़ में इतना सीरम लगा दिया जाता था कि बाकी मरीज़ों के लिए बच नहीं पाता था। इस कमी के कारण काला बाज़ारी को भी प्रोत्साहन मिलता था, जिसके कारण 5,000 में बिकने वाला सीरम रूपये 9,000 में बिकता था। डॉ भारती के अनुसार, इस कारण लोगों ने 50,000 रूपये से लेकर 60,000 रूपये तक भी रेबीज़ के निवारण पर खर्च किये हैं, और जो लोग इस कीमत को नहीं चुका पाते थे, वे मौत की भेंट चढ़ जाते थे। हिमाचल प्रदेश में हर साल बंदरों व कुत्तों के काटने के चार पांच हजार मामले सामने आते रहे हें। यानि रेबिज के शिकार होने वालों की अच्छी खासी तादाद है। इसका ईलाज कराना अब तक इतना आसान नहीं रहा है। मंहगा ईलाज होने की वजह से कई बार रेबिज के शिकार लोग मौत के मुंह में भी जाते रहे हैं। लेकिन अब शायद ऐसा नहीं होगा।

कई वर्षों की मेहनत, समय, समीक्षा, पढ़ाई और अनुसंधान के बाद डॉ भारती ने पाया कि अगर सीरम को मांसपेशियों में ना लगाकर, सीधा घाव पे लगाया जाए और वैक्सीन के इंजेक्शन को भी सीधा त्वचा पर लगाया जाए तो अधिक सार्थक और सस्ता हो सकता है। डॉ भारती ने बताया,इस वजह से पहले के मुकाबले वैक्सीन पांच गुना, और सीरम 10 गुना कम इस्तेमाल होने लगा है। उनकी खोज के बाद अब पूरे निवारण की कीमत में 100 गुना की कमी आई है। जिससे रेबीज के निवारण की लागत 35,000 रूपये से घटकर मात्र 350 रूपये रह गई है।

वह बताते हैं कि अनुसंधान पूरा होने के बाद इस प्रक्रिया का दस्तावेजीकरण किया गया और उस शोध-पत्र को ‘ह्यूमन वैक्सीन एंड इम्यूनोथेरेपियुटिक्स’ नामक चिकित्सकीय पत्रिका में प्रकाशन किया गया। इसका प्रकाशन होने के बाद डब्लयूएचओ का इस पर ध्यान गया। डॉ भारती के अनुसार, काफी विचार विमर्श और जाँच के बाद ही डब्लयूएचओ की टीम ने विशेषज्ञ समूह बनाया। पूरे विश्व भर से 15 विशेषज्ञों की समिति को वो शोध-पत्र दिया गया। इसके बाद कई बैठकें हुई, मुझसे पूरे तथ्य मंगवाए गए। इतना कुछ होने के बाद ही पिछले महीने डब्लयूएचओ ने पूरी दुनिया को यही इलाज करने की सिफारिश की है।

सन 2000 में जब डॉ भारती ने रेबीज के निवारण पर अनुसंधान करना शुरू किया था, तब उन्हें पता नहीं था कि ये सफलता उन्हें इस स्तर तक मिलेगी और रेबीज के निवारण के लिए उनके द्वारा बनाया गया यह प्रोटोकॉल डब्लयूएचओ पूरी दुनिया के मरीज़ों के लिए इस्तेमाल करने की सलाह देगा। डॉ भारती, इसके अलावा भी कई अन्य प्रोजेक्ट्स पर अनुसंधान कर रहे हैं, जैसे सर्पदंश, कुष्ठ रोग और थैलीसिमिया। वे बताते हैं कि ,ये रिसर्च अभी शुरूआती दौर में चल रहे हैं।