राजा के जमाने से चली आ रही है ये प्रथा, महिलाओं को करना होता है ऐसा...

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 16 नवम्बर 2018, 12:26 PM (IST)

ग्वालियर। दुनिया में हर जगह पर अलग-अलग तरह की प्रथाएं मानी जाती है जो बेहद ही अजीब होती हैं। कुछ जगहों पर अजीबोगरीब प्रथाओं को निभाते हैं उनके लिए ये सही होती है। आज हम आपको एक ऐसा ही दिलचस्प मामला सुनाने जा रहे है जिसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे।

मध्यप्रदेश के श्योपुर के एक गांव में करीब 1000 साल पहले शुरू हुई रिवाज कुप्रथा के रूप में आज भी जिंदा है। इस रिवाज की वजह से महिलाओं को गांव में चप्पल पहन कर चलने की अनुमति नहीं है। कोई महिला चप्पल पहन कर घूमती नजर आती है तो उसकी शिकायत पति से कर दी जाती है।

सवर्ण और बुजुर्गों को सम्मान देने शुरू हुई इस रिवाज की वजह से आंगनवाड़ी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी गांव में घुसने से पहले चप्पल हाथ में लेनी पड़ती हैं।

ये है रिवाज....

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ये है रिवाज....
श्योपुर में कराहल के आदिवासी बहुल आमेठ गांव में सवर्ण परिवारों व बुजुर्गों के सम्मान में महिलाएं चप्पल पहनकर चल नहीं सकतीं। हालांकि गांव से बाहर जाने पर उन्हें चप्पल पहनने की इजाजत हैं, लेकिन रसूखदारों और बुजुर्गों के सम्मान के नाम पर गांव के भीतर महिलाओं को नंगे पैर ही रहना पड़ता है।

गांव की महिलाएं नहीं पहनती चप्पल...

करीब 250 घरों वाले आमेठ की करीब 1150 की आबादी में 600 पुरुष व 350 महिलाएं है, और करीब 200 बच्चे हैं। गांव में हजारों सालों से एक प्रथा चली आ रही है। इसके मुताबिक बड़े व बुजुर्गों के मान-सम्मान देने के नाम पर गांव की महिलाएं उनके सामने चप्पल पहनकर नहीं जा सकती। यहां तक कि उनके घरों के सामने से भी चप्पलें पहनकर नहीं गुजर सकतीं। गांव के बाहर चप्पल पहनने की इजाजत है, लेकिन इस हाल में अगर गांव का कोई बुजुर्ग सामने आ जाए तो महिला को चप्पल उतार कर हाथ में लेनी पड़ती है।

हर मौसम में निभानी होती है रिवाज...

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हर मौसम में निभानी होती है रिवाज...
गर्मी की तपती दोपहर हो, पैर जमा देने वाली कड़ाके की सर्दी या बारिश की कीचड़ से सनी गलियां, इस कुप्रथा को निभाने के लिए आमेठ की महिलाएं गांव के भीतर चप्पलों को हाथ में लेकर नंगे पांव घूमती हैं। हर मौसम में नंगे पांव ही गांव की महिलाओं को काम करना पड़ता है। आदिवासी समाज की इस कुप्रथा में गांव की महिलाओं को बुजुर्गों व बड़ों के मान-सम्मान में घूंघट की ही तरह चप्पलें भी पहनने की इजाजत नहीं है। अब ये कुप्रथा गांव के आस-पास यादव, ब्राह्मण व अन्य समाज की महिलाएं पर भी लागू हो चुकी है। यहां तक कि आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी गांव में घुसने से पहले चप्पलें उतार कर हाथ में लेनी पड़ती हैं। चप्पल पहनकर गांव में प्रवेश करने पर बुजुर्ग एतराज करते हैं। महिला के चप्पल पहने नजर आई महिला को कुलक्षिणी कह कर गांव के बुजुर्ग शिकायत उसके पति से करते हैं। इसके बाद भी कोई महिला इसे नहीं माने तो चौपाल लगाकर फैसला किया जाता है।

राजा बिट्ठल देव के जमाने से चली आ रही प्रथा...

आमेठ गांव को लगभग एक हजार साल पहले राजा बिट्ठल देवल ने बसाया था। इनके राज्य की सीमा में बरगवां, गोरस, पिपराना, कर्राई समेत कराहल क्षेत्र के 30 किमी का इलाका आता था।
राजा बिट्ठल देव के जमाने से ही महिलाओं के चप्पल पहनने पर पाबंदी है। महिला बुजुर्गों के सामने न तो चप्पल पहन सकती थी, और न हीं उनके घरों के आगे से चप्पल पहनकर निकल सकती थी। इसी प्रथा को गांव के आदिवासी समाज ने आज तक जिंदा रखा हुआ है।

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