नई दिल्ली।
सर्वोच्च न्यायालय ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद की जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर बुधवार को अपना आदेश सुरक्षित कर लिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस.के.कौल और न्यायमूर्ति के.एम.जोसेफ की पीठ ने आदेश को सुरक्षित कर लिया, जबकि महान्यायवादी के.के.वेणुगोपाल ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले का बचाव किया।
हालांकि, वेणुगोपाल ने माना कि सौदे का समर्थन कर रही फ्रांस सरकार ने लड़ाकू विमान की आपूर्ति में गड़बड़ी की स्थिति में जिम्मेदारी लेने की गारंटी नहीं दी है।
इससे पहले राफेल मामले में सुनवाई के दौरान कॉमन कॉज के प्रशांत भूषण ने सरकार पर
गंभीर आरोप लगाए और मामले को संविधान पीठ को भेजे जाने की जरूरत पर बल
दिया। उन्होंने कहा कि राफेल डील की पूरी प्रक्रिया में नियमों को ताख पर रख
दिया गया। कैसे 126 लड़ाकू विमानों से घटकर केवल 36 विमानों का सौदा हुआ।
यह फैसला किसने लिया और किस आधार पर प्रधानमंत्री ने 36 राफेल विमानों के
सौदे की घोषणा की।
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भूषण ने कहा कि प्रधानमंत्री को यह अधिकार नहीं है। अब भी
36 एयरक्राफ्ट डिलीवर नहीं हुए हैं, पहला एयरक्राफ्ट सितंबर 2019 तक डिलीवर
होगा।
उन्होंने कहा कि सरकार पहले भी कई बार राफेल का मूल्य बता
चुकी है पर अब वह गोपनीयता का हवाला दे रही है, जो निहायत ही बकवास है। मामला सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए और सीबीआई को पक्षपातरहित
जांच करनी चाहिए। हमने मामले की सीबीआई में शिकायत की पर अब तक कोई
कार्रवाई नहीं हुई है। तब हमने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।
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