गुरुनानक जयंती स्पेशल : जानें युगपुरुष की ये बातें...

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 13 नवम्बर 2018, 7:06 PM (IST)

नई दिल्ली। सिखों के पहले गुरु नानकदेवजी की जयंती देशभर में प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाती है। प्रकाश पर्व यानी मन की बुराइयों को दूर कर उसे सत्य, ईमानदारी और सेवाभाव से प्रकाशित करना। इस बार गुरु नानक देव की जयंती 23 नवंबर को हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्री गुरु नानक जी का जन्मदिन भी मनाया जाता है। गुरू नानक जी की जयंती या गुरुपूरब/गुरु पर्व सिख समुदाय मनाया जाने वाला सबसे सम्मानित दिन है।

गुरू नानक जी की जयंती, गुरु नानक जी के जन्म को स्मरण करते हैं। इसे गुरुपूरब/गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘गुरुओं का उत्सव’। इसके तहत विभिन्न गुरुद्वारों से प्रभातफेरी निकाली जाएंगी। सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानकदेवजी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में विशाल नगर कीर्तन निकाला जाता है। इस दौरान पंज (पांच) प्यारे नगर कीर्तन की अगुवाई करते हैं। श्री गुरुग्रंथ साहिब को फूलों की पालकी से सजे वाहन पर सुशोभित करके कीर्तन विभिन्न जगहों से होता हुआ गुरुद्वारे पहुंचता है।

प्रकाश उत्सव के उपलक्ष्य में प्रभातफेरी निकाली जाती है जिसमें भारी संख्या में संगतें भाग लेती हैं। प्रभातफेरी के दौरान कीर्तनी जत्थे कीर्तन कर संगत को निहाल करते हैं। इस अवसर पर गुरुद्वारे के सेवादार संगत को गुरु नानकदेवजी के बताए रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। कहते हैं कि श्री गुरु नानकदेव महाराज महान युगपुरुष थे। नानकदेवजी ने अपना पूरा जीवन समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में समर्पित कर दिया। ऐसे महान युगपुरुष की आज के समय में बहुत जरूरत है।

जानें गुरु नानक जी की ये बातें...

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जानें गुरु नानक जी की ये बातें...

गुरु नानक जी का विवाह बटाला निवासी मूलराज की पुत्री सुलक्षिनी से नानक का विवाह से हुआ। सुलक्षिनी से नानक के 2 पुत्र पैदा हुए। एक का नाम था श्रीचंद और दूसरे का नाम लक्ष्मीदास था।

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गुरु नानक की पहली 'उदासी' (विचरण यात्रा) 1507 ई. में 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया।

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नानक जब कुछ बड़े हुए तो उन्हें पढने के लिए पाठशाला भेजा गया. उनकी सहज बुद्धि बहुत तेज थी। वे कभी-कभी अपने शिक्षको से विचित्र सवाल पूछ लेते जिनका जवाब उनके शिक्षको के पास भी नहीं होता। जैसे एक दिन शिक्षक ने नानक से पाटी पर 'अ' लिखवाया।

तब नानक ने 'अ' तो लिख दिया किन्तु शिक्षक से पूछा, गुरूजी! 'अ' का क्या अर्थ होता है। यह सुनकर गुरूजी सोच में पड़ गए। भला 'अ' का क्या अर्थ हो सकता है। गुरूजी ने कहा, 'अ' तो सिर्फ एक अक्षर है।

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गुरु नानक का सोच-विचार में डूबे रहते थे। तब उनके पिता ने उन्हें व्यापार में लगाया। उनके लिए गांव में एक छोटी सी दूकान खुलवा दी। एक दिन पिता ने उन्हें 20 रूपए देकर बाजार से खरा सौदा कर लाने को कहा। नानक ने उन रूपयों से रास्ते में मिले कुछ भूखे साधुओ को भोजन करा दिया और आकर पिता से कहा की वे 'खरा सौदा' कर लाए है।

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उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान में है। इसी स्थान पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का स्वर्गगमन हुआ।

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