इस बार छोटा हुआ रावण, अब दूर तक नहीं सुनाई देगा अट्टहास

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 10 अक्टूबर 2018, 4:33 PM (IST)

सुधीर कुमार शर्मा
जयपुर। महंगाई की मार से जहां घर का बजट बिगड़ा हुआ है, वहीं इसकी मार से रावण खुद भी नहीं बच पाया है। जगह-जगह ऊंचे कद के रावण का दूर-दूर तक गूंजने वाला अट्टहास अब शायद उतनी तेजी से नहीं गूंज पाएगा। जी हां, महंगाई की मार इस बार रावण के कद पर असर डाल रही है। अभी रावण बनाने वाले कलाकार छोटे कद के रावण ही बना रहे हैं। पिछली बार हुए नुकसान से सबक लेकर वे कोई रिस्क लेना नहीं चाहते हैं।
देशभर में दशहरा पर रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। महंगाई की मार का असर इस पर भी दिखाई दे रहा है। रावण बनाने वालों का कहना है पिछली बार कई पुतले बच गए। छोटे-छोटे पुतले तो बिक गए, लेकिन बड़े पुतले नहीं बिकने से काफी नुकसान हुआ है। इस कारण इस बार पहले छोटे पुतले बनाकर बेचने शुरू किए हैं। बड़ा पुतला माहौल देखकर बनाना शुरू करेंगे। हालांकि बड़े पुतले बनाने की पूरी तैयारी है।

रावण ही रावण

जगह-जगह बनाए जा रहे पुतलों में रावण ही रावण नजर आ रहे हैं। कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। कलाकारों का कहना है कि छोटे बच्चों से लेकर कालोनियों और समितियों की ओर से भी कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों की कोई डिमांड नहीं आती है। रावण के पुतले ही खरीदे जाते हैं। बड़े स्तर पर होने वाले रावण पुतला दहण कार्यक्रमों में जरूर कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले रावण के पुतले के साथ फूंके जाते हैं, लेकिन वे भी एक-दो जगह ही फूंके जाते हैं। इस कारण इनके पुतले बनाने में रुचि नहीं लेते हैं। उधर पुतले बनाने की सामग्री भी काफी महंगी हो गई है। लागत निकालना ही मुश्किल हो जाता है। बचत तो कहां से होगी।


ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

बहरहाल सदियों पुरानी इस परंपरा को जीवित रखने वाले इन कारीगरों की उम्मीद इस बात पर टिकी है कि सरकार इन पर भी ध्यान देगी और इनके काम को प्रोत्साहन के लिए किसी तरह की मदद उपलब्ध कराएगी।

ये भी पढ़ें - यहां मुस्लिम है देवी मां का पुजारी, मां की अप्रसन्नता पर पानी हो जाता है लाल