सुप्रीम कोर्ट का फैसला : SC/ST के प्रमोशन में आरक्षण मिलने का रास्ता साफ

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 26 सितम्बर 2018, 11:16 AM (IST)

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रमोशन में अनुसूचित जातियों (एससी) एवं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के कर्मचारियों को आरक्षण का लाभ देने के बारे में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एससी व एसटी को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य चाहें तो अपने यहां प्रमोशन में आरक्षण लागू कर सकते हैं। कोर्ट के फैसले के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को अब प्रमोशन में आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने कहा कि 2006 में नागराज मामले में उसकी ओर से सुनाए गए उस फैसले को सात सदस्यों की पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है जिसमें एससी एवं एसटी को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं। न्यायालय ने केंद्र सरकार की यह अर्जी भी खारिज कर दी कि एससी/एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए।

कोर्ट ने यह कहा कि एससी-एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारों को एससी-एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाला आंकड़ा इकट्ठा करने की कोई जरूरत नहीं है।

ये भी पढ़ें -
अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ में जस्टिस कुरिएन जोसेफ, आरएफ नरीमन, एसके कौल और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। पीठ ने इस मामले में केंद्र सहित अन्य पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद गत 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

बता दें कि 2006 में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा कि राज्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के पिछड़ेपन पर संख्यात्मक आंकड़ा देने के लिए बाध्य हैं। कार्ट ने कहा कि इन समुदायों के कर्मचारियों को पदोन्नत में आरक्षण देने से पहले राज्य सरकारी नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं प्रशासनिक कार्यकुशलता के बारे में तथ्य पेश करेंगे।

इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू कर अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय (एससी/एसटी) से आने वाले सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि जाति और पिछड़ेपन का ठप्पा अब भी समुदाय के साथ जुड़ा हुआ है।

ये भी पढ़ें - यहां कब्र से आती है आवाज, ‘जिंदा हूं बाहर निकालो’

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पांच न्यायाधीशों वाली और प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ को सूचित किया कि ऐसा कोई फैसला नहीं है जो यह कहता हो कि एससी/एसटी समुदाय के समृद्ध लोगों को क्रीमी लेयर सिद्धांत के आधार पर आरक्षण का लाभ देने से इनकार किया जा सकता है।

वेणुगोपाल से पूछा गया था कि क्या क्रीमी लेयर सिद्धांत को लागू करके उन लोगों को लाभ से वंचित किया जा सकता है जो इससे बाहर आ चुके हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एससी/एसटी समुदाय के पिछड़े लोगों तक आरक्षण का लाभ पहुंच सके। शीर्ष विधिक अधिकारी ने बताया कि हालांकि समुदाय के कुछ लोग इससे उबर चुके हैं लेकिन फिर भी जाति और पिछड़ेपन का ठप्पा अभी भी उन पर लगा हुआ है। पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी हैं।

पांच न्यायाधीशों की पीठ यह देख रही है कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में ‘क्रीमी लेयर’ से जुड़े उसके 12 वर्ष पुराने फैसले को सात सदस्यीय पीठ द्वारा फिर से देखने की जरूरत तो नहीं है।

ये भी पढ़ें - प्यार और शादी के लिए तरस रही है यहां लडकियां!