श्राद्ध
पक्ष प्रारम्भ हो गया है। श्राद्ध का आज दूसरा दिन है। सोलह दिन के लिए
हमारे पितृ घर में विराजमान रहेंगे। अपने वंश का कल्याण करेंगे। घर में
सुख-शांति-समृद्धि प्रदान करेंगे। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध करने
की भी विधि होती है।
यदि पूरे विधि विधान से श्राद्ध कर्म न किया जाए तो
मान्यता है कि वह श्राद्ध कर्म निष्फल होता है और पूर्वजों की आत्मा अतृप्त
ही रहती है।
शास्त्रों के मुताबिक, किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए
ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए। श्राद्ध कर्म में पूरी
श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब,
जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है। श्राद्ध में
गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना
चाहिए।
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श्राद्ध करने के लिए सबसे पहले जिसके लिए श्राद्ध करना है उसकी तिथि का
ज्ञान होना जरूरी है। जिस तिथि को मृत्यु हुई हो उसी तिथि को श्राद्ध करना
चाहिए।
दूसरी बात यह भी महत्वपूर्ण है कि श्राद्ध करवाया कहां पर जा रहा
है। यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए।
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यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें। श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए।
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योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से
तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे
आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए।
इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का
स्मरण करना चाहिए। मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।
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