‘उनके मुताबिक मैं पदक नहीं जीत सकती थी लेकिन हार नहीं मानी’

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 05 सितम्बर 2018, 2:39 PM (IST)

नई दिल्ली। स्वप्ना बर्मन का नाम आज सुर्खियों में है। एशियाई खेलों में भारत के लिए हेप्टाथलन का स्वर्ण जीतने के बाद मिली शोहरत और इज्जत से स्वप्ना बर्मन अभिभूत हैं लेकिन जकार्ता जाने से पहले उनके लिए हालात बिल्कुल अलग थे। एशियाई खेलों के लिए जी-जान से तैयारी में जुटीं बंगाल की इस एथलीट को एक समय उनके दोस्तों तक ने नकार दिया था।

ऐसे में स्वप्ना के सामने खुद को साबित करने और उन लोगों को गलत साबित करने की चुनौती थी, जो उनके काफी करीब रहते हुए भी उन्हें पदक का दावेदार नहीं मान रहे थे। स्वप्ना ने हेप्टाथलन में भारत को ऐतिहासिक स्वर्ण दिलाते हुए एक तरफ जहां खुद को साबित किया वहीं उन लोगों की बातों को खारिज कर दिया, जो जकार्ता जाने से पहले उन्हें खारिज किया करते थे।

बंगाल सरकार ने जलपाईगुड़ी के रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना के लिए 10 लाख रुपए का पुरस्कार और सरकारी नौकरी की घोषणा की। हालांकि पुरस्कार राशि देखने और सुनने में काफी कम है लेकिन स्वप्ना ने इसे लेकर कभी कोई नकारात्मक बात नहीं कही। अपने तैयारी के दिनों से ही नकारात्मक लोगों से घिरी स्वप्ना के जीवन में अब रोशनी है और इसी कारण उन्हें जो कुछ मिला, उससे वे संतुष्ट नजर आ रही हैं।

आईएएनएस से बातचीत के दौरान भी स्वप्ना ने यह स्वीकार किया। स्वप्ना ने कहा कि मैं अपनी तैयारी के दिनों से नकारात्मक लोगों से घिरी थी। मेरे दोस्तों तक ने मुझे नकार दिया था। मैंने सबको गलत साबित किया। मैं अब खुश हूं। सरकार ने मुझे नौकरी और 10 लाख रुपए देने का ऐलान किया है, यह मुझे मीडिया के ही माध्यम से पता चला। लोग यह भी कह रहे हैं कि यह रकम कम है लेकिन मुझे किसी से शिकायत नहीं। मैं इससे खुश हूं।

एशियाई खेलों की सात स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल करने वाली स्वप्ना के लिए हालांकि कुछ भी आसान नहीं रहा है। दोनों पैरों में 6-6 अंगुलियां होने के कारण उन्हें अलग परेशानी झेलनी पड़ी और फिर अपनी स्पर्धा से पहले उन्हें दांत में दर्द की शिकायत हुई। यही नहीं, ट्रेनिंग के दौरान उन्हें टखने में भी चोट लगी थी। इन सब मुश्किलों को लांघते हुए स्वप्ना ने अपने सपने को सच साबित किया है।

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स्वप्ना ने कहा, एशियाई चैम्पियनशिप और एशियाई खेलों के बीच में मैं चोटिल हो गई थी। इस दौरान मुझे बहुत चोट लगी हुई थी। मेरे टखने में चोट थी। इसके बावजूद मैं ट्रेनिंग करती थी। कैंप के दौरान मेरे दोस्तों तक ने मुझे नकार दिया था। उनके मुताबिक मैं पदक नहीं जीत सकती थी लेकिन मैंने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा, मैंने जितना सुना, वह यह है कि वे लोग (मेरे दोस्त) कहते थे कि इसको लेकर जाएंगे तो क्या मिलेगा? ये पदक ला सकती है क्या? चोटिल होने के कारण वे मेरी काबिलियत पर शक करने लगे थे।

मुझे उनकी इन बातों का बहुत बुरा लगा। अगर आपके बारे में कोई पहले से ही सोच ले कि आप उस काम को नहीं कर पाएंगी, जिसके लिए आप इतनी मेहनत कर रही हैं तो इससे आपका मनोबल नीचे हो जाता है। स्वप्ना ने कहा कि अपने दोस्तों की बातें सुनकर उन्हें भी लगने लगा कि उनका इंडोनेशिया जाना बेकार है। बकौल स्वप्ना, मुझे लगा कि मैं घर चली जाऊं क्योंकि दोस्तों की बातों को सुनकर मैं बहुत रोई थी।

जब उन्होंने मेरे बारे में ये सब बातें बोलीं तब से मैं एक-एक दिन और एक-एक रात बहुत रोई। लेकिन मेरे सर (कोच) ने कहा कि स्वप्ना तू मेरे ऊपर विश्वास कर। तुम पदक जीतकर आओगी। स्वप्ना ने कहा कि लम्बी कूद उनकी पसंदीदा स्पर्धा थी लेकिन वे इसमें ज्यादा सफल नहीं हो पाईं। हालांकि उन्होंने भाला फेंक अच्छा करने पर खुशी जताई। यह पूछे जाने पर कि जब एक स्पर्धा में आप अच्छा नहीं कर पातीं हैं तो दूसरी स्पर्धा के लिए खुद को कैसे तैयार करती हैं?

उन्होंने कहा कि बस यही सोचती हूं कि एक में अच्छा नहीं किया तो क्या हुआ अभी तो छह बाकी हैं। अगले में अच्छा कर सकती हूं। पहले वाले को भूलकर अगले पर ध्यान देती हूं। मैंने जकार्ता में वैसा ही किया। मैं पहले दिन पिछड़ गई थी। लेकिन मैंने सोचा कि कोई बात नहीं अभी तीन स्पर्धा बाकी है। देखते हैं आगे क्या होता है।

यह पूछे जाने पर कि 800 मीटर से कभी आपकी पसंदीदा नहीं रही और फिर कैसे इसमें अच्छा किया, स्वप्ना ने कहा, मैंने बस यह सोच कर इसमें भाग लिया था कि मुझे चीन की लडक़ी के साथ मुकाबला करना है। अगर वह पहले नंबर पर रही तो मैं भी रहूंगी और अगर वह चौथे नंबर पर रही है तो मैं भी चौथे नंबर पर रहूंगी। कुछ भी हो जाए मुझे उसके साथ रेस समाप्त करनी है।

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