रक्षाबंधन 2018 : राजा शनि की तरह कड़क व खूंखार होता है इसका स्वभाव... पढ़ें

www.khaskhabar.com | Published : शनिवार, 25 अगस्त 2018, 4:10 PM (IST)

सुधीर कुमार शर्मा

जयपुर। किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है। क्योंकि भद्रा काल में मंगल उत्सवों की शुरुआत और समापन को अशुभ माना जाता है। क्योंकि पुरानों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और राजा शनि की बहन है। शनि की तरह इसका स्वभाव कड़क व खूंखार बताया गया है। इसलिए उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचांग के प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया। भद्रा को होलिका दहन में भी निषिध माना गया है।
ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार भद्रा को शुभ नहीं माना जाता है। भद्रा अलग-अलग होती है। स्वर्ग लोक की भद्रा, पाताल लोक की भद्रा शुभ मानी जाती है और मृत्यु लोक की अशुभ मानी जाती है।

तीनों लोकों में घूमती है भद्रा

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशि के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। भद्रा में अलग-अलग चंद्रमा होते हैं। मेष, वृषभ, कर्क, मकर का चंद्रमा हो तो भद्रा स्वर्गलोक में होती है, जो शुभ मानी जाती है। मिथुन, कन्या, तुला, धनु का चंद्रमा हो तो भद्रा पाताल लोक की होती है। यह भी शुभ मानी जाती है, लेकिन सिंह, वृश्चिक, कुंभ, मीन की भद्रा मृत्यु लोक में होती है, जो अशुभ मानी जाती है। मृत्युलोक की भद्रा में कोई कार्य करने पर उस कार्य का नाश करने वाली मानी गई है। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा का निदान भी धर्म ग्रंथों में बताया गया है।
दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में


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ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार कृष्ण पक्ष की सातवीं और चौदहवीं तथा शुक्ल पक्ष की आठवीं और पंद्रहवीं तिथियों की भद्रा को रात की भद्रा कहा जाता है। यदि दिन की भद्रा रात के समय और रात की भद्रा दिन की समय आ जाए तो उसे प्रतिकूल भद्रा कहा जाता है। इस भद्रा को ज्योतिष की दृष्टि से शुभ माना जाता है। दोपहर के बाद आने वाली भद्रा को भी शुभ माना गया है और जो भद्रा काल दोपहर से पहले आ जाती है वह शास्त्रीय दृष्टि से अशुभ मानी जाती है।
वार के अनुसार भद्रा के नाम

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ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार भद्रा को दिन व वार के अनुसार भी नाम मिले हुए हैं। सोमवार और शुक्रवार की भद्रा ‘कल्याण’ होती है। शनिवार की भद्रा को ‘वृश्चिकी’, गुरुवार की भद्रा को ‘पुण्यवति’ तथा रविवार, मंगलवार और बुधवार की भद्रा को भद्रिका की संज्ञा दी गई है।
भद्रा का पुच्छकाल

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ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार कश्यप संहिता में बताया गया है कि भद्रा की तीस घड़ियों में से पहली पांच घड़ियों को उसका मुख माना गया है और उसके बाद की एक घड़ी गला (कंठकाल), अगली 11 घड़ियां वक्षस्थल और 4 घड़ियां नाभी, 6 घड़ियां कमर (कटिकाल), 3 घड़ियों को इसकी पूंछ माना गया है। मुख काल में कार्य करने से कार्य की हानि, कंठ काल में मृत्यु, वक्ष काल में निर्धनता, कटिकाल में पागलपन, नाभीकाल में पतन तय है। वहीं अगर कोई कार्य पुच्छकाल में किया जाए तो वह निश्चित ही विजय प्राप्त कर लेता है।
भद्रा के ये हैं नाम

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ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार जो व्यक्ति प्रात: काल भद्रा के 12 नामों का स्मरण करता है उसके किसी भी कार्य में बाधा नहीं आती है। भद्रा के इन 12 नामों के सम्मिलित मंत्र ‘धन्या, दधि, मुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली नमो नम:’ का जाप करने पर कोई विघ्न नहीं आता।
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