नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने पार्टी से
इस्तीफा दे दिया है। आशुतोष के इस्तीफे के साथ आप संयोजक अरविंद केजरीवाल
को बड़ा झटका माना जा रहा है। हालांकि अभी तक आशुतोष के इस्तीफे का
सार्वजनिक रूप से पार्टी ने ऐलान नहीं किया है। आशुतोष ने 2014 लोकसभा
चुनाव के समय दिल्ली के चांदनी चौक से चुनाव भी लड़ा था। लेकिन इस चुनाव
में तीन लाख से अधिक वोट लाने के बावजूद हर्षवर्धन से हार गए थे।
आशुतोष
ने अपने इस्तीफे में पार्टी से अलग होने की वजह को निजी बताई है। वहीं
सूत्रों की मानें तो उनके करीबी और आप के नेता ने बताया है कि आम आदमी
पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ बनी थी लेकिन आशुतोष उसमें रहकर खुद को भटका
हुआ सा महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि वे न सिर्फ पार्टी से बल्कि
राजनीति से ही सन्यास ले रहे हैं। वहीं ये भी कहा जा रहा है कि आशुतोष
पत्रकारिता में अपनी वापसी कर सकते हैं।
आशुतोष से पहले इन-इन नेताओं ने छोड़ा आप का साथ :-
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शांति भूषण-
पार्टी के
वयोवृद्ध और संस्थापक नेता शांति भूषण ने केजरीवाल की तानाशाही के खिलाफ
अपनी आवाज बुलन्द की और आंतरिक लोकतंत्र का सवाल उठाया। उन्होंने पैसे लेकर
टिकट बांटने के आरोप भी लगाए। बदले में केजरीवाल ने उन्हें अपना दुश्मन
मान लिया और बुरा-भला कहते हुए पार्टी के दरवाजे शांति भूषण के लिए बंद कर
दिए।
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प्रशांत भूषण-
अन्ना आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी बनाने
तक केजरीवाल ने जिन मुद्दों पर देश में सुर्खियां बटोरी, वो सारे कानूनी
दांवपेंच प्रशांत भूषण ने अपनी मेहनत से जमा किया। प्रशांत पार्टी का थिंक
टैंक माने जाते थे। पर जैसे ही केजरीवाल की मनमानी का प्रशांत भूषण ने
विरोध किया, आंतरिक लोकतंत्र की बात उठायी - केजरीवाल ने उन्हें बेईज्जत कर
पार्टी से निकालने में देर नहीं की।
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योगेन्द्र यादव-
अन्ना
आंदोलन से लेकर आप तक में थिंक टैंक का हिस्सा रहे। आप को शून्य से शिखर तक
लाने में इनके राजनीतिक विश्लेषण का भरपूर इस्तेमाल किया गया। लेकिन जैसे
ही इन्होंने केजरीवाल की मनमानी का विरोध किया, तो केजरीवाल ने उनके पार्टी
से भी निकाल दिया।
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प्रो. आनन्द कुमार-
इन्होंने लोकसभा का चुनाव
लड़ा। पार्टी को राष्ट्रीय स्वरूप देने के लिए पार्टी और सरकार में एक
व्यक्ति एक पद की बात उठायी तो अरविन्द केजरीवाल भडक़ गये। पार्टी के संयोजक
पद से इस्तीफे का दांव खेलकर केजरीवाल ने प्रो. आनन्द कुमार को एक झटके
में पार्टी से निकाल दिया।
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किरण बेदी-
अन्ना के साथ दो बड़े
चेहरों में एक थीं किरण बेदी। केजरीवाल के पार्टी बना लेने के बाद उनसे दूर
होती चली गयीं। केजरीवाल की तानाशाही रवैये का उन्होंने हमेशा विरोध किया।
बाद में किरण ने बीजेपी का दामन थाम लिया।
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जनरल वीके सिंह-
अन्ना
आंदोलन में खुलकर अरविन्द केजरीवाल के साथ रहे। लेकिन जब केजरीवाल ने
पार्टी बना ली, तो उन्हें नहीं पूछा। अपनी उपेक्षा से नाराज रहे वीके अन्ना
के साथ जुड़े रहे। केजरीवाल की स्वार्थपरक राजनीति देखने के बाद जनरल वीके
ने बीजेपी का साथ देने का फैसला किया।
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शाजिया इल्मी-
शाजिया
इल्मी पत्रकारिता से अन्ना आंदोलन में आईं। आम आदमी पार्टी के चर्चित
चेहरों में से एक थीं। शाजिया महिला विरोधी होने का आरोप लगाते हुए पार्टी
छोड़ दी। अब शाजिया बीजेपी में हैं।
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मेधा पाटकर-
आम आदमी पार्टी
के लिए लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं मेधा पाटेकर ने अपनी उपेक्षा से नाराज होकर
अरविन्द केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। मेधा ने केजरीवाल को मकसद से भटका हुआ
बताया।
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जस्टिस संतोष हेगड़े-
जनलोकपाल का ड्राफ्ट जिन तीन
लोगों ने मिलकर तैयार किया था उनमें से एक हैं जस्टिस संतोष हेगड़े। अन्ना
आंदोलन में सक्रिय जुड़े रहे। पर, राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगने के बाद
केजरीवाल ने हेगड़े को भी किनारा करना शुरू कर दिया। उपेक्षित और अलग-थलग
महसूस करने के बाद जस्टिस हेगड़े ने टीम अन्ना से दूरी बना ली।
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एडमिरल रामदास-
आम
आदमी पार्टी में आंतरिक लोकपाल पूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल रामदास तब भौंचक
रह गये जब उन्हें उनके पद से हटा दिया गया। एडमिरल रामदास ने कहा कि मैं
यह जानकर चकित हूँ कि अब पार्टी को मेरी जरूरत नहीं रही। आंदोलन से लेकर
राजनीतिक दल बनने तक एडमिरल रामदास ने अरविन्द केजरीवाल का साथ दिया, लेकिन
मौका मिलते ही उन्होंने उनसे इसलिए किनारा कर लिया क्योंकि लोकपाल के तौर
पर उन्होंने किसी किस्म के समझौते से इनकार कर दिया था।
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विनोद कुमार बिन्नी-
आप
की दिल्ली में सरकार बनने के बाद सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल की तानाशाही
का विरोध विनोद कुमार बिन्नी ने ही किया था। बिन्नी ने खुलकर केजरीवाल के
खिलाफ आरोप लगाए। इस वजह से उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।
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कैप्टन गोपीनाथ-
भारत में कम कीमत के हवाई यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जी आर गोपीनाथ को भी पार्टी छोडऩी पड़ी।
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पंजाब में आम आदमी पार्टी के 16 बड़े नेताओं ने पार्टी से एक साथ इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देने वाले इन नेताओं ने राज्य के सह-अध्यक्ष डॉ. बलबीर सिंह पर तानाशाही फैसले लेने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि बलबीर सिंह के फैसलों से राज्य में पार्टी की लोकप्रियता कम हो रही है। इस्तीफा देने वालों में पांच जिला अध्यक्ष, छह क्षेत्रीय प्रभारी और दो महासचिव शामिल हैं। पटियाला ग्रामीण सीट के उपाध्यक्ष और प्रभारी करनवीर सिंह तिवाना, महासचिव प्रदीप मल्होत्रा और मंजीत सिद्धू, जालंधर ग्रामीण जिला अध्यक्ष सरवन सिंह, मुक्तसर जिला प्रमुख जगदीप संधू, फाजिल्का जिला अध्यक्ष समरवीर सिद्धू, फिरोजपुर जिला अध्यक्ष मलकीत थींड, समाना हलका प्रभारी जगतार सिंह और चमकौर साहिब हलका चरणजीत सिंह सहित कई अन्य नेता शामिल हैं।
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