कोंडागांव (छत्तीसगढ़)। जिस तरह द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने एक हाथ में
चक्र यानी हथियार और दूसरे हाथ में बांसुरी यानी प्रेम संगीत के साथ जनमानस
को सत्य की जीत का एक संदेश दिया था, ठीक उसी तरह केरल के एक छोटे से गांव
पिथनापिरम जिला कोलम के निवासी ज्योतिमोन अपना जीवन जी रहे हैं।
आजीविका
के रूप में देशभक्ति की राह चुनने वाले ज्योतिमोन का संगीत से भी अटूट
नाता है। जब वे अपनी ड्यूटी पर नहीं होते तो भी वे एक और तपस्या कर रहे
होते हैं बांसुरी से मीठी तान निकालने की।
उनके सहकर्मियों ने बताया
कि ज्योतिमोन जिस निष्ठा से भारत ही नहीं, पूरे विश्व के सबसे बड़े
अर्धसैन्य बल सीआरपीएफ की सेवाओं में समर्पण भाव से कर्तव्य निर्वहन करते
हैं, बिल्कुल वही भाव ड्यूटी से फारिग हो कर एक और ड्यूटी संगीत सेवा के
लिये भी समर्पित हो जाते हैं।
अभ्यास को ही बनाया अपना गुरु :
ज्योतिमोन
ने बताया कि उनके परिवार में कोई भी बांसुरी नहीं बजाता है। संगीत के नाम
पर छोटे चाचा ढोलक व तबला बजाते हैं। पर बचपन से ही उनके कानों में बांसुरी
की मीठी स्वरलहरियां गूंजती थी। कहीं बांसुरी बजे तो मन नाच उठता और इच्छा
होती कि वे भी बांसुरी बजाएं। गांव में बांसुरी बेचने वाला जब बांसुरी
बजाता तो वे भाव विहोर हो जाते। कालांतर में यही आवाज उनके जीवन में आनंद व
तपस्या का हिस्सा बन गई। उम्र के 25वें साल में यह इच्छा इतनी प्रबल हुई
कि खुद ही बांसुरी बजाने का प्रयास करने लगे। किसी एकलव्य की भांति खुद के
अभ्यास को ही अपना गुरु बना लिया है। घंटों प्रयास करने पर जब अभ्यास के
रंग बिखरने लगे तो सुनने वाले भी मोहित होने लगे।
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बांसुरी की तान से अधिकारी भी हुए प्रभावित :
सीआरपीएफ
188वीं बटालियन में सिपाही के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे ज्योतिमोन से
बटालियन के बड़े अफसर भी खासे प्रभावित हैं। इतने कि बल के किसी भी रंगारंग
आयोजन में ज्योतिमोन को अवसर दिया जाना सबसे पहले तय कर दिया जाता है।
आमतौर पर उनका बांसुरी बादन ही कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण भी बन जाता है।
चाहत है रेवी मुरली को गुरु बनाने की :
ऐसा
नहीं है कि ज्योतिमोन अपना गुरु किसी को बनाना ही नहीं चाहते। अपने दिल की
बात शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि वे केरल के ही एल्लपी जिला के आडूर
निवासी प्रख्यात बांसुरी बादक रेवी मुरली के सानिध्य में बांसुरी सीखना
चाहते हंै, पर सीआरपीएफ की नौकरी के चलते फुर्सत नहीं मिल सकेगी।
दिल्ली जाकर खरीदी 20 हजार की बांसुरी :
साधारण
बांसुरी बजाने के बाद उन्होंने हाल ही देश की राजधानी दिल्ली जा कर मशहूर
बांसुरी प्रतिष्ठान से बीस हजार रुपये की बांसुरी का सेट खरीदा है, जिसमें
12 बेहतरीन किस्म की बांसुरी हैं जो अलग-अलग स्केल की है। एक सिपाही का
दिल्ली जा कर बेहद महंगी बांसुरी खरीदना उनके संगीत के प्रति जुनून को ही
दर्शाता है।
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बजाते हैं कई भाषाओं की धुन :
चूंकि ज्योतिमोन
दक्षिण भारतीय से हैं, तो पहले तो वे दक्षिण भारतीय भाषाओं की धुनों को ही
बजाते थे, पर सीआरपीएफ की 116 बटालियन की नौकरी के दौरान वे 6 साल तक
कश्मीर में रहे और अभी बटालियन 188 में लगभग तीन सालों से बस्तर में है, तो
वे हिंदी फिल्मों व लोकगीतों की भी धुनों को शानदार तरीके से बजाते हैं।
हीरो फिल्म की सिग्नेचर बांसुरी की धुन तो ऐसे बजाते हैं, जैसे वह उनकी ही
बनाई धुन हो।
सीआरपीएफ स्थापना दिवस पर बांधा समां :
हाल ही
में सीआरपीएफ ने अपना 79वां स्थापना दिवस मनाया। इस मौके पर 188वीं बटालियन
ने एक बड़ा आयोजन किया, जिसमें पूरी सीआरपीएफ के अलावा उनके आनुसांगिक बल,
पुलिस अधीक्षक कोंडागांव, नगर के गणमान्य नागरिक, मीडिया वर्ग, प्रबुद्ध
वर्ग व स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में ज्यातिमोन ने बांसुरी से
समां बांध दिया। सभी ने उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
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बच्चों को भी सिखाएंगे बांसुरी :
ज्योतिमोन
कहते हैं कि वह अपने बच्चों को भी बांसुरी बजाना सिखाना चाहते हैं। जब भी
अवकाश में घर जाते हैं तो घर-परिवार के लोगों से मिलने के बाद पूरा खाली
समय बांसुरी को ही मिलता है। जब तक घर से बांसुरी की आवाज आते रहती है,
पड़ोसी जानते हैं कि ज्योतिमोन घर पर है। जैसे ही बांसुरी की धुनें आना बंद
हो जाती है, पड़ोसी भी समझ जाते हैं कि ज्योतिमोन ड्यूटी पर चले गए हैं।
परिजन भी उनके संगीत प्रेम को सम्मान देते है और उन्हे प्रोत्साहित करते
हैं।
सीआरपीएफ 188 जिला कोंडागांव के कमांडेट कवींद्र कुमार चंद ने
कहा, ‘‘ज्योतिमोन बेहद अनुशासित व कर्तव्य निष्ठ सिपाही हैं। संगीत के गहरे
जानकार व संगीत के प्रति समर्पित व्यक्तित्व हैं। हम उसके उज्ज्वल भविष्य
की कामना करते हैं।’’
--आईएएनएस
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