नई
दिल्ली। संसद के 14वीं लोकसभा के मानसून सत्र का आज (शुक्रवार को)
आखिरी दिन है। राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक को लेकर हंगामा हो सकता
हैं। तीन तलाक विधेयक को लेकर भाजपा ने अपने सभी सांसदों को सदन में उपस्थित रहने के लिए
व्हिप जारी किया है। बिल के प्रावधानों का विरोध कर रहे विपक्ष दल इसपर
जमकर हंगामा करेंगे।
लिहाजा, इस बिल को संसद की मंजूरी मिलने की पूरी
उम्मीद जताई जा रही है। इससे पहले गुरुवार को सरकार ने मुस्लिमों में तीन
तलाक से जुड़े प्रस्तावित कानून में आरोपी को सुनवाई से पहले जमानत जैसे
कुछ संरक्षणात्मक प्रावधानों को मंजूरी दे दी थी। सरकार ने इस कदम से इन
चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है कि तीन तलाक की परंपरा को अवैध
घोषित करने तथा पति को तीन साल तक की सजा देने वाले इस प्रस्तावित कानून का
दुरुपयोग किया जा सकता है।
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केन्द्रीय कैबिनेट ने तीन
संशोधनों को दी मंजूरी...
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि
केन्द्रीय कैबिनेट ने ‘मुस्लिम विवाह महिला अधिकार संरक्षण विधेयक’ में तीन
संशोधनों को मंजूरी दी है। इस विधेयक को लोकसभा द्वारा मंजूरी दी जा चुकी
है और यह राज्यसभा में लंबित है। प्रस्तावित कानून ‘‘गैरजमानती’’ बना
रहेगा, लेकिन आरोपी जमानत मांगने के लिए सुनवाई से पहले भी मजिस्ट्रेट से
गुहार लगा सकते हैं। गैरजमानती कानून के तहत, जमानत पुलिस द्वारा थाने में
ही नहीं दी जा सकती। प्रसाद ने कहा कि प्रावधान इसलिए जोड़ा गया है ताकि
मजिस्ट्रेट ‘पत्नी को सुनने के बाद’ जमानत दे सकें। उन्होंने स्पष्ट किया,
‘लेकिन प्रस्तावित कानून में तीन तलाक का अपराध गैरजमानती बना रहेगा।’
सूत्रों ने बाद में कहा कि मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करेंगे कि जमानत केवल
तब ही दी जाए जब पति विधेयक के अनुसार पत्नी को मुआवजा देने पर सहमत हो।
मजिस्ट्रेट द्वारा तय की जाएगी राशि...
विधेयक के अनुसार, मुआवजे की राशि मजिस्ट्रेट द्वारा तय की जाएगी। एक अन्य
संशोधन यह स्पष्ट करता है कि पुलिस केवल तब प्राथमिकी दर्ज करेगी जब पीडि़त
पत्नी, उसके किसी करीबी संबंधी या शादी के बाद उसके रिश्तेदार बने किसी
व्यक्ति द्वारा पुलिस से गुहार लगाई जाती है। मंत्री ने कहा, ‘यह इन
चिंताओं को दूर करेगा कि कोई पड़ोसी भी प्राथमिकी दर्ज करा सकता है जैसा कि
किसी संज्ञेय अपराध के मामले में होता है. यह दुरुपयोग पर लगाम कसेगा।’
तीसरा
संशोधन तीन तलाक के अपराध को ‘समझौते के योग्य’ बनाता है। अब मजिस्ट्रेट
पति और उसकी पत्नी के बीच विवाद सुलझाने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल
कर सकते हैं। समझौते के योग्य अपराध में दोनों पक्षों के पास मामले को वापस
लेने की आजादी होती है।
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